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गीता दर्शन भाग-7 *
आप किसी को पूर्ण मान लें, तो भीतर से केंद्र मिट गया। दोनों ही | | से चले हैं, तो आपको पता होगा कि आपने कई दफा धोखा दिया। अवस्था में आप मिट जाते हैं।
किसको धोखा दे रहे हैं। लेकिन अकेले ताश खेलने में भी लोग जैन-बौद्ध पहली धारणा को मानकर चलते हैं। परिणाम वही है। धोखा देते हैं। शून्य हो जाना है, शांत हो जाना है, मौन हो जाना है। अहंकार को अड़चन है। अड़चन आदमी के साथ है। कोई भी विधि हो, भूल जाना है, विसर्जित कर देना है। इसलिए वे अशरण की बात अड़चन रहेगी। तो कृष्ण और जरथुस्त्र और क्राइस्ट की मान्यता है बोल सकते हैं। अशरण की इसलिए-थोड़ा समझ लेना जरूरी | | कि जो आदमी गुरु के सामने भी धोखा दे लेता है और अपने है क्योंकि महावीर कहते हैं कि अहंकार इतना सूक्ष्म है कि तुम | अहंकार को बचा लेता है, उसको अकेला छोड़ना खतरनाक है। जब शरणागति करोगे, तो उसमें भी बच सकता है।
| कम से कम दूसरे की आंखें, दूसरे की मौजूदगी सम्हलने का मौका उनकी बात में सचाई है। महावीर कहते हैं कि जब तुम किसी की बनेगी। और इसमें सचाई है। शरण में जाओगे, तो तुम ही जाओगे। यह तुम्हारा ही निर्णय होगा। जैन साधना ने बड़े अहंकारी साधु पैदा किए। जैन साधु में तुम ही सोचोगे, तय करोगे, कि मैं शरण जाता हूं। तो यह तुम्हारे विनम्रता दिखाई नहीं पड़ती, अकड़ दिखाई पड़ती है। अकड़ का मैं का ही निर्णय है। इसमें डर है कि मैं छिप जाएगा, मिटेगा नहीं। कारण भी है, क्योंकि साधना करता है, सचाई से जीता है, ब्रह्मचर्य क्योंकि तम सदा मालिक रहोगे। जब चाहो. अपनी शरण वापस ले साधता है, उपवास करता है, तप करता है। अकड़ का कारण भी सकते हो।
है। अकारण नहीं है अकड़। लेकिन कारण हो या अकारण हो, अर्जुन कृष्ण से कह सकता है कि बस, बहुत हो गया। अब मैंने अकड़ रोग है। और चूंकि शरण जाने का कहीं कोई उपाय नहीं है, आपके चरणों में जो सिर रखा था, वापस लेता हूं। तो कृष्ण क्या | इसलिए मैं कर रहा हूं, यह धारणा मजबूत होती है। करेंगे?
दोनों के खतरे हैं। दोनों के लाभ हैं। जिस व्यक्ति को लगे कि आप किसी व्यक्ति को गुरु चुनते हैं, वह आपका ही चुनाव है। | खतरा कहां है, वहां वह न जाए। कल आप गुरु को छोड़ देते हैं, तो गुरु क्या कर सकता है। अगर अगर आप बहुत धोखेबाज हैं और बहुत बेईमान हैं, और अपने आप शरण जाने के बाद भी छोड़ने में समर्थ हैं, तो यह शरण झूठी | को भी धोखा देने में समर्थ हैं, सेल्फ डिसेप्शन आपके लिए आसान हई और धोखा हआ और आपने सिर्फ अपने को भलाया, विस्मत है, तो महावीर का मार्ग आपके लिए खतरनाक है। अगर आप किया, लेकिन मिटे नहीं।
अपने को धोखा देने में असमर्थ हैं, तो महावीर का मार्ग आपके यह डर है। इस डर के कारण महावीर ने कहा, यह बात ही | लिए सुगम है। उपयोगी नहीं है। दूसरे की शरण मत जाओ; अपने को ही सीधा साधक को निर्णय करना होगा, कैसे जाए। लेकिन प्रयोजन एक मिटाओ। दूसरे के बहाने नहीं, सीधा। यह सीधा आक्रमण है। ही है कि साधक को मिटना पड़ेगा। या तो सीधा मिट जाए, शून्य
कृष्ण, राम, मोहम्मद, क्राइस्ट, जरथुस्त्र, वे सब शरण को हो जाए; या दूसरे के चरण में जाकर खो जाए और लीन हो जाए। मानते हैं कि शरण जाओ। उनकी बात में भी बड़ा बल है। क्योंकि यह शरणागति कैसे आएगी? वे कहते हैं कि जब तुम शरण जाकर भी नहीं मिटते हो और अपने | अपनी स्थिति समझने से। अपनी वास्तविक स्थिति समझने से। को धोखा दे सकते हो, तो जो व्यक्ति दूसरे के बहाने अपने को यह ठीक-ठीक समझ लेने से कि मैं क्या हूं। धोखा दे सकता है, वह अकेले में तो धोखा दे ही लेगा। जो दूसरे | च्यांग्त्सू एक कब्रिस्तान से निकल रहा था। सुबह का अंधेरा था; की मौजूदगी में भी धोखा देने से नहीं बचता, जहां कि एक गवाह | | भोर होने में देर थी। एक आदमी की खोपड़ी से उसका पैर टकरा भी था, जहां कि कोई देख भी रहा था, वह अकेले में तो धोखा दे | गया। तो उस खोपड़ी को अपने साथ ले आया। उसे सदा अपने ही लेगा।
| पास रखता था। अनेक बार उसके शिष्यों ने कहा भी, इस खोपड़ी आप ताश खेलते हैं, तो आप दूसरों को धोखा देते हैं। लेकिन | को फेंकें; यह भद्दी मालूम पड़ती है। और इसे किसलिए रखे हैं? लोग हैं, जो कि पेशेंस खेलते हैं, अकेले ही खेलते हैं, अपने को | तो च्वांग्त्सू कहता था, इसे मैं याददाश्त के लिए रखे हूं। जब भी ही धोखा दे देते हैं। अगर आपने अकेले ही ताश के पत्ते दोनों तरफ मेरी खोपड़ी भीतर गरम होने लगती है, मुझे लगता है कि मैं कुछ
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