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* दृढ़ वैराग्य और शरणागति *
तुम कभी नहीं जान सकते हो। और वह तुम्हारे भीतर छिपा है। | नेहरू जिंदा थे और मोरारजी सत्ता में थे। मोरारजी ने नमस्कार किया
इसलिए दुनिया में हिंदू धर्म को समझने में बड़ी अड़चन हुई है। आचार्य तुलसी को। आचार्य तुलसी तो नमस्कार किसी को कर हिंदू धर्म सबसे कम समझा गया धर्म है। क्योंकि उसके रूप ऐसे नहीं सकते, सिर्फ आशीर्वाद दे सकते हैं। अनगढ़ दिखाई पड़ते हैं। पर उनके अनगढ़ होने का कारण है। मोरारजी किसी साधु से कम साधु नहीं हैं। कोई जैन साधु उतना कारण है कि बड़ी गहरी बात हिंदुओं की पकड़ में आ गई। ईश्वर अहंकारी नहीं हो सकता। वे भी पक्के नैतिक पुरुष हैं; बिलकुल महत्वपूर्ण नहीं है; झुकता हुआ साधक, झुका हुआ साधक, शरण | पत्थर की तरह। चोट तत्काल लग गई। और जो पहला सवाल में गया हुआ साधक।
उन्होंने पूछा वह यह कि मैंने हाथ जोड़कर नमस्कार किया; आपने तो जहां शरण मिल जाए, जिसके माध्यम से मिल जाए। वह है हाथ जोड़कर जवाब क्यों नहीं दिया? और आप ऊपर क्यों बैठे हैं; या नहीं, यह भी गौण है। शरण मिल जाए, तो सब हो जाता है। और मुझे नीचे क्यों बिठाया है?
कृष्ण कह रहे हैं, उस आदि पुरुष के मैं शरण हूं, इस प्रकार दृढ़ दोनों साधु पुरुष हैं! और बड़ी अड़चन खड़ी हो गई। और निश्चय करके नष्ट हो गया है मान और मोह जिसका...। दस-बीस विद्वान सारे मुल्क से बुलाए गए थे गोष्ठी के लिए; उसी
स्वाभाविक है; जो भी शरण जाएगा, उसका मान और मोह नष्ट में मुझे भी निमंत्रित किया था उन्होंने। मैं समझा कि गोष्ठी तो हो जाएगा। और जो शरण नहीं गया, उसका मान और मोह कभी | समाप्त हो गई। क्योंकि अब वह कैसे चलेगी! यह पहला ही प्रश्न नष्ट नहीं होता।
है। और मोरारजी ने कहा, जब तक इसका जवाब न मिले, आगे इसलिए मैं कई दफा चकित होता हूं। जैन या बौद्ध भिक्षु गहन कुछ बात करने का प्रयोजन नहीं है। मान से भर जाते हैं। जैनों को तो शरण जाने का और भी उपाय नहीं। तुलसीजी चुप रहे। अब क्या कहें! क्योंकि जैन साधु को आज्ञा बौद्धों ने तो बुद्ध को ही शरण जाने का उपाय बना लिया। महावीर नहीं है कि नमस्कार करे किसी को। कोई नमस्कार योग्य है भी ने कहा, अशरण रहो; किसी की शरण मत जाओ।
नहीं। शरण किसी की जाना नहीं है। बात में कुछ गलती नहीं है। अगर अशरण रहकर भी मैंने कहा कि अगर यह नियम है, तो दूसरे को भी नमस्कार करने निरअहंकारी हो सको, तो इससे बड़ी और कोई बात नहीं है। फिर | से रोकना चाहिए। जैसे ही कोई दूसरा नमस्कार करे, कहना जरूरत भी नहीं है शरण जाने की। लेकिन कौन रह सकेगा बिना चाहिए, रुको! उसका नमस्कार ले लेना और फिर अपनी तरफ से शरण जाए निरअहंकारी? कभी करोड़ में एकाध कोई व्यक्ति, जो नमस्कार न देने का नियम जरा बेईमानी है। या उसको कहना चाहिए
न गया हो और निरअहंकारी हो जाए। शरण जा-ज़ाकर भी कि सावधान! आप करो; आपकी मरजी। हम लौटाएंगे नहीं। अहंकार नहीं मिटता। झक-झककर भी नहीं झकता. तो बिना झके और मोरारजी को मैंने कहा कि आपको उनका ऊपर बैठना बहत कठिन है। महावीर का झक गया होगा: महावीर के पीछे अखर रहा है कि अपना नीचे बैठना अखर रहा है. यह साफ हो चलने वालों को मुश्किल खड़ी है। वह झुक नहीं पाता। | जाना चाहिए, फिर कुछ बात आगे चले। क्योंकि ऊपर तो एक
इसलिए जैन साधु बड़ी साधना करता है। वैसी साधना संभवतः | छिपकली भी चल रही है; उससे आपको कोई एतराज नहीं है। आप दुनिया में कोई भी धर्म का साधु नहीं करता है। उसकी साधना प्रगाढ़ नीचे बिठाए गए हैं, इससे अड़चन है। अगर आपको भी ऊपर है। लेकिन उसका अहंकार भी उतना ही प्रगाढ़ है। इसलिए जैन बिठाया गया होता, तो कोई अड़चन न थी। साधु जिस अकड़ से चलता है, वैसी अकड़ की हम सूफी फकीर नैतिक पुरुष कितना ही नैतिक हो जाए, धार्मिक नहीं हो पाता। में कल्पना भी नहीं कर सकते। सूफी फकीर तो सोचकर चकित ही | मोरारजी की नैतिकता में संदेह नहीं है। आचार्य तुलसी की नैतिकता हो जाएगा कि क्या कर रहे हो तुम! इतनी अकड़! जैन साधु किसी | में कोई संदेह नहीं है। दोनों साधु पुरुष हैं। पर अहंकार सघन है। को नमस्कार नहीं कर सकता। क्योंकि कोई है ही नहीं जिसकी शरण | और जब साधु का अहंकार सघन हो, तो असाधु से भी खतरनाक जाना है।
| होता है। उसको झुकाया नहीं जा सकता। असाधु तो थोड़ा डरता मैं एक बड़े जैन साधु आचार्य तुलसी के साथ मौजूद था; कई | | भी है कि मैं असाधु हूं; साधु डरता ही नहीं। उसको झुकाएंगे कैसे? वर्ष पहले। मोरारजी देसाई उनको मिलने आए। तब वे सत्ता में थे। । असाधु तो खुद अपने डर के कारण झुका रहता है। साधु की अकड़
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