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गीता दर्शन भाग-7 *
तो सख्त है। वह टूट जाएगा, झक नहीं सकता।
लेकिन हिंदुओं ने मौलिक तत्व को पकड़ लिया है, कि कहीं से भी झुकना आ सके, और किसी भी तरह शरण जाने का भाव पैदा हो सके, तो वही परम साधना है।
स्वभावतः. मान और मोह नष्ट हो जाएगा। और जैसे-जैसे मान-मोह-आसक्ति नष्ट होते हैं, वैसे-वैसे परमात्मा के स्वरूप में स्थिति बनने लगेगी। क्योंकि ये ही हिलाते हैं। इनकी वजह से कंपन होता है। इनकी वजह से बेचैनी और अशांति होती है। इनकी वजह से गति होती है।
परमात्मा में जिसकी स्थिति बनने लगती है, सुख-दुख नामक द्वंद्वों से विमुक्त हुए ज्ञानीजन उस अविनाशी पद को, परम पद को प्राप्त होते हैं।
वह परम पद छिपा है भीतर। जैसे ही हमारा हिलन-डुलन बंद हो जाता है, कंपन शांत हो जाता है, ज्योति थिर हो जाती है, वह परम पद हमें उपलब्ध हो जाता है। जो सदा से हमारा है, जो सदा से हमारा रहा है, हम उसके प्रति प्रत्यभिज्ञा से भर जाते हैं। हम पहचान जाते हैं कि हम कौन हैं! मैं के मिटते ही मैं कौन हूं, इसकी पहचान आ जाती है। आज इतना ही।
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