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* दृढ़ वैराग्य और शरणागति *
इस वृक्ष को वैराग्यरूप शस्त्र द्वारा काटकर, उसके उपरांत उस | और जिस परमेश्वर से यह पुरातन संसार-वृक्ष की प्रवृत्ति परम पद परमेश्वर को अच्छी प्रकार खोजना चाहिए कि जिसमें गए | विस्तार को प्राप्त हुई है, उस ही आदि पुरुष के मैं शरण हूं, इस हुए पुरुष फिर पीछे संसार में नहीं आते। और जिस परमेश्वर से यह प्रकार दृढ़ निश्चय करके नष्ट हो गया है मान और मोह जिनका पुरातन संसार-वृक्ष की प्रवृत्ति विस्तार को प्राप्त हुई है, उस ही आदि | तथा जीत लिया है आसक्तिरूप दोष जिन्होंने और परमात्मा के पुरुष के मैं शरण हूं, इस प्रकार दृढ़ निश्चय करके...। | स्वरूप में है निरंतर स्थिति जिनकी तथा अच्छी प्रकार से नष्ट हो इस प्रक्रिया को थोड़ा सजगता से समझ लें।
| गई है कामना जिनकी, ऐसे वे सुख-दुख नामक द्वंद्वों से विमुक्त हम सब बार-बार जन्मते हैं, बार-बार मरते हैं। लेकिन हर मरण हुए ज्ञानीजन उस अविनाशी परम पद को प्राप्त होते हैं। मूर्छा में है, और हर जन्म भी मूर्छा में है। इसलिए आपको कुछ ___ यह सूत्र, कि मैं उस आदि पुरुष, उस आदि उदगम के शरण हूं, याद नहीं कि पहले भी आप थे। यह जन्म आपको पहला मालूम बहुमूल्य है। शरण का भाव बहुमूल्य है। क्योंकि वासना भी काटी पड़ता है, और यह मौत जो आती है, आखिरी मालूम पड़ती है। | जा सकती है वैराग्य से, फिर भी अहंकार शेष रह जाता है। वासना क्योंकि दोनों तरफ अंधकार है। स्मृति खो गई है। होशपूर्वक मर तोड़ी जा सकती है वैराग्य से, लेकिन तब वैराग्य का अहंकार सघन सकें, तो होशपूर्वक जन्म होगा।
हो जाता है कि मैं विरागी हूं, कि मैं त्यागी हूं, कि मैंने इतना छोड़ा, लेकिन मरना अभी दूर है, भविष्य में है। पीछे लौटा जा सकता | कि मैंने वासना नष्ट कर दी। एक गहन अग्नि जलने लगती है। है। और जो जन्म हो चुका है आपका चालीस, पचास, साठ साल अहंकार नए रूप ले लेता है, सूक्ष्म, पर और भी प्रगाढ़। पहले, उस जन्म को होशपूर्वक फिर से देखा जा सकता है। उसकी __इसलिए कृष्ण एक शर्त जोड़ते हैं, वैराग्य के शस्त्र से काटकर पूरी फिल्म आपके भीतर संगृहीत है। जैसे मैं बोल रहा हूं और टेप | | मैं उस आदि पुरुष के शरण हूं, ऐसा दृढ़ भाव करें। रिकार्ड कर रहा है। मैं बोल चुनूंगा, फिर आप टेप को लौटा लें, ___ यह वैराग्य कहीं मेरे अहंकार को भरने का कारण न बने। क्योंकि तो फिर से सुन सकेंगे।
जब तक मैं हूं, तब तक मूल उदगम में खोना आसान नहीं; तब तक आपका मस्तिष्क बिलकुल टेप का यंत्र है। वह सब रिकार्ड कर | बूंद अपने को पकड़े है, सागर में खोने को राजी नहीं है। रहा है। वहां कुछ भी नहीं खोया है। जो भी आपने कभी जाना है,। | मूल उदगम में मैं मैं नहीं रह जाऊंगा, मेरी अस्मिता खो जाएगी। वह वहां अंकित है। आप पीछे इस रिकार्ड का उपयोग करना सीख | | मेरा सत्व बचेगा, मेरी चेतना बचेगी, लेकिन मैं का रूप खो जाएं, इसे लौटाकर बजाना सीख जाएं, तो आप उन अनुभवों से | जाएगा, मैं का नाम खो जाएगा। सभी नाम-रूप विलीन हो जाएंगे। फिर गुजर सकते हैं, जिनसे आप बेहोशी में गुजर गए हैं। आप | यदि साधक वैराग्य को साधते-साधते साथ में शरणागति के पिछले जन्म में वापस जा सकते हैं, और पिछले जन्म के पीछे मृत्यु | भाव को न साधे, तो भटक जाता है। तब वैसा साधक हो सकता में जा सकते हैं। और तब यात्रा का द्वार खुल जाता है। | है शुद्ध हो जाए, लेकिन उसकी शुद्धि में भी जहर होगा। पवित्र हो
इस भांति जो व्यक्ति पीछे लौटता है होशपूर्वक, उसकी आगे के | | जाए, लेकिन उसकी पवित्रता निर्दोष न होगी। उसकी पवित्रता में लिए भी होश की क्षमता निर्मित हो जाती है। वह मरेगा. लेकिन | भी दोष होगा। शुभ हो जाए, सच्चा हो जाए, नैतिक हो जाए; होशपूर्वक मरेगा। वह जन्मेगा, लेकिन होशपूर्वक जन्मेगा। वह | लेकिन उसकी नीति, उसकी सचाई, उसकी शुभ्रता, भीतर एक मूल जीएगा, लेकिन होशपूर्वक जीएगा। और जो व्यक्ति होशपूर्वक | गलत भित्ति पर खड़े होंगे। वे अस्मिता की भित्ति पर खड़े होंगे। मैं जीने लगा, संसार उसे नहीं बांध पाता। बांधती है हमारी मूर्छा। | शुद्ध हूं, मैं शुभ हूं, मैं नैतिक हूं, यह भाव बना ही रहेगा। और यह
वैराग्य के द्वारा ममता, अहंता और वासना को काटकर जो | | आखिरी दीवार हो जाएगी। मैं हूं, यह बना ही रहेगा। और जब तक व्यक्ति परमेश्वर को खोजता है, मूल उदगम को खोजता है, वह | | मैं हूं, तब तक परमात्मा नहीं है। व्यक्ति फिर संसार में वापस नहीं आता।
__ लोग मुझसे पूछते हैं कि परमात्मा को हम खोजते हैं, मिलता नहीं फिर संसार में वापस आने का कोई कारण नहीं रह जाता। संसार है। मैं उनसे कहता हूं, तुम जब तक खोजोगे, तब तक मिलने का में हम वापस होते हैं बार-बार मूर्छा के कारण, सोए हुए होने के | | कोई उपाय भी नहीं है! क्योंकि तुम ही बाधा हो। यह खोजने वाला कारण।
ही उपद्रव है। और जब तक यह खोजने वाला न खो जाए, तब तक
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