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* गीता दर्शन भाग-7 *
साहा!
उसने सब भूलें कीं, जो कोई भी समझदार आदमी करेगा। जो कोई | मेरे लिए नए घर न बनाने पड़ेंगे। क्योंकि मैंने आधार ही गिरा दिया, भी हिम्मती आदमी करेगा, उसने वे सब भूलें कीं। उसने अपने को | अब कोई बुनियाद ही न रही। भूलों से बचाया नहीं। क्योंकि भूलों से जो बचता है, वह अनुभव वैराग्य के शस्त्र का अर्थ है, भीतर एक सजगता। वासना से भी बच जाता है। वह संसार के सब गली-कूचों में भटका। उसने | जहां-जहां धोखा देने लगे, वहां-वहां सजगता रुकावट बन जाए। संसार की सब पगडंडियां छान डालीं। उसने बुरे और भले का भेद वहां-वहां हम पुनः स्मरण कर सकें कि इस तरह की वासना में हम भी नहीं किया। जहां उसकी वासना ले गई, गया। लेकिन होश बार-बार उतर चुके हैं। सजग रखा और इस बात को जांचता रहा कि जहां-जहां वासना ले .. मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी मरने के करीब थी। तो उसने मुल्ला जाती है, वहां कछ मिलता है या नहीं।
से कहा कि मुल्ला, शादी तो तुम करोगे ही मेरे मरने के बाद। शादी हर बार असफलता मिली। सुख कभी भी न पाया। सदा ही भ्रांति तो तुम करोगे ही, यह निश्चित है। नसरुद्दीन ने कहा, जल्दी नहीं सिद्ध हुई। वासना ने जहां-जहां मार्ग दिखाया, वहीं-वहीं व्यर्थता करूंगा। पहले कुछ दिन आराम करूंगा। हाथ आई, वहीं-वहीं विषाद मिला।
यह विवाह काफी थका दिया है। इस विवाह ने काफी दुख दे हजारों वासनाओं के मार्गों पर चलकर जब एक ही अनुभव होता | दिया है। लेकिन इससे कोई वैराग्य उत्पन्न नहीं हुआ है। थोड़े दिन है निरपवाद रूप से, तो वैराग्य का जन्म होता है। वैराग्य वासना आराम करके वासना फिर सजग हो जाएगी। वासना फिर ताजी हो की असफलता का सतत अनुभव, उसका सार-निचोड़ है। और | जाएगी। विश्राम के बाद वासना की मांग फिर खड़ी हो जाएगी। तब यह बात कठिन नहीं रह जाती; अहंकार को, ममता को, वासना | आप भी बहुत बार वैराग्य की हलकी झलक से भरते हैं। हर को काट देना जरा भी कठिन नहीं रह जाता।
वासना के बाद वैराग्य की झलक हर आदमी को आती है। हर __ वैराग्य की प्रतीति का अर्थ है, जहां-जहां वासना कहती है सुख | संभोग के बाद क्षणभर को प्रत्येक स्त्री-पुरुष को यह प्रतीति होती है, वहां-वहां सुख नहीं है। जहां-जहां वासना कहती है सुख है, | है कि बस, बहुत हुआ; व्यर्थ है। लेकिन थोड़ी देर आराम के बाद वहां-वहां दुख है; और जहां-जहां वासना कहती है दुख है,। | फिर वासना सजग हो जाती है। तो वह जो क्षणभर का अनुभव था, वहां-वहां सुख है। वासना धोखा देती है, प्रवंचक है, दि ग्रेट वह शस्त्र नहीं बन पाता। वह जो अनुभव था, संगृहीत नहीं होता। डिसीवर। इस प्रतीति का नाम वैराग्य है। और तब सुख में खोजना वह बूंद-बूंद की तरह खो जाता है, कभी गागर भर नहीं पाती। बंद, और दुख में खोज शुरू होती है।
साधक बूंद-बूंद अनुभव को इकट्ठा करता है और गागर को भरता दुख की खोज को हम तप कहते हैं। तपश्चर्या का अर्थ है, अब | है। वह बूंद-बूंद को खो जाने नहीं देता। मैं सुख में नहीं खोजता; सुख में खोजा और नहीं पाया; अब मैं दुख __ आपके अनुभव में और बुद्ध के अनुभव में बहुत फर्क नहीं है। में खोजूंगा। क्योंकि अगर सुख में खोजने से दुख मिला, तो बस, इतना ही फर्क है कि आपके पास कोई गागर नहीं है, जिसमें संभावना है कि शायद दुख में खोजने से सुख मिल सके। विपरीत | आप अपनी बूंदें भर लेते। आपको उतने ही अनुभव हुए हैं, ज्यादा यात्रा करूंगा।
हो गए होंगे, क्योंकि बुद्ध को मरे पच्चीस सौ साल हो गए। बुद्ध वैराग्य अनुभव है वासना की विफलता का। और जैसे ही यह से ज्यादा अनुभव आपको हो चुके हैं। लेकिन बूंद-बूंद होते हैं, खो अनुभव गहरा हो जाता है, यह अनुभव शस्त्र बन जाता है। तब जाते हैं। इकट्ठे नहीं हो पाते हैं; उनकी चोट नहीं बन पाती। शस्त्र साधक अपने भीतर वैराग्य के शस्त्र को लिए रहता है। जैसे ही निर्मित नहीं हो पाता। वासना उससे कहती है वहां सुख, वहीं वह शस्त्र से गिराकर काट __ अपने अनुभवों को इकट्ठा करें। अनुभवों को खो जाने मत दें। डालता है। वह कहता है, मैं जानता हूं; यह बहुत बार हो चुका। क्योंकि उनके अतिरिक्त ज्ञान का और कोई मार्ग नहीं है। बूंद-बूंद
बुद्ध को जब पहली समाधि उपलब्ध हुई, तो उन्होंने जो पहले इकट्ठा करके आपके पास इतनी अनुभव की क्षमता हो जाएगी कि शब्द अपने भीतर कहे-किसी और से नहीं, खुद से कहे-वे ये | वासना कमजोर पड़ जाएगी। काटना भी नहीं पड़ता, अनुभव ही थे कि बस, हे काम के देवता, अब तुझे मेरे लिए कष्ट न करना काफी होता है। अनुभव ही काफी होता है, वासना से लड़ना भी पड़ेगा। मैं भी दौड़ा और मेरे कारण तू भी काफी दौड़ा। अब तुझे नहीं पड़ता। वासना धीरे-धीरे निर्वीर्य हो जाती है।
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