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________________ * दृढ़ वैराग्य और शरणागति * जाएगा, जब हम सब जान लेंगे। अब वैज्ञानिक कहते हैं कि वह | वृक्ष उससे निकल आता है। लेकिन जो बीज आप बोते हैं, उससे दिन कभी भी नहीं आएगा। क्योंकि जितना हम जानते हैं, उतना पता यह वृक्ष निकलता है ? क्योंकि वह बीज तो सड़ जाता है, गल जाता चलता है कि और भी जानने को शेष है। जितना हम जानते हैं, उतने है, मिट्टी में मिल जाता है। उस बीज से यह वृक्ष निकलता नहीं। उस ही अनजान तथ्य सामने आ जाते हैं जिनको जानने की चुनौती मिल बीज को कभी तोड़कर आपने देखा है? कहीं आप इस वृक्ष को खोज जाती है। एक समस्या हल नहीं होती, पचास खड़ी हो जाती हैं। पाएंगे? उस बीज में कहीं यह वृक्ष मिलता भी नहीं है खोजने से। उसको हल करने के कारण ही पचास समस्याएं उठ आती हैं, वैज्ञानिक, वनस्पतिशास्त्री भी कहते हैं कि बीज में कोई शून्य से पचास प्रश्न उठ आते हैं। ही वृक्ष निकलता है। बीज तो केवल उस शून्य को अपने भीतर अब विज्ञान का भरोसा डगमगा गया है। अब विज्ञान भी मानता | छिपाए हुए है। बीज तो सिर्फ खोल है; भीतर कोई शून्य छिपा है। है कि कोई अंतिम ज्ञान उपलब्ध हो सकेगा, इसकी आशा नहीं है। बीज की खोल टूटकर मिट्टी में मिल जाती है; उस शून्य से ही वृक्ष सब कामचलाऊ ज्ञान है। रिलेटिविटी का यही मतलब है कि सब | निकलता है। ज्ञान कामचलाऊ है। हम जितना जानते हैं, उतने तक ठीक है। तो बीज के भीतर जो छिपा शून्य है, वही उदगम है। और जब बाकी जितना हम और ज्यादा जानेंगे, सब गड़बड़ हो जाएगा। तक हम उस शून्य में प्रवेश न कर जाएं, तब तक मूल का, सत्य परमात्मा ही जाना जा सकता है। उसकी स्थिति है। इसलिए धर्म | का कोई अनुभव संभव नहीं है। के अतिरिक्त ज्ञान का कोई भी द्वार नहीं है। इसलिए बुद्ध ने तो अपने सारे धर्म को शून्यता की छाया दे दी, विज्ञान कामचलाऊ उपयोगिता का द्वार है, ज्ञान का नहीं। उससे शून्यता का रंग दे दिया। और कहा कि शून्य में प्रवेश कर जाओ, जो भी हम जानते हैं, वह करीब-करीब सत्य है, एप्राक्सिमेटली। | तो ब्रह्म की उपलब्धि है। और कोई ब्रह्म नहीं है। लेकिन करीब-करीब सत्य का कोई मतलब नहीं होता।। | जो भी दिखाई पड़ता है, वह खोल है। उस खोल के भीतर न करीब-करीब सत्य का असत्य ही मतलब होता है। या तो कोई चीज | दिखाई पड़ने वाला छिपा है। उस अदृश्य को जानने की दो बातें सत्य होती है या नहीं होती। करीब-करीब सत्य का कोई अर्थ नहीं कृष्ण कह रहे हैं। पहले तो वैराग्य से अहंकार, ममता और वासना होता। पर उपयोगिता विज्ञान की है। को काट डालें। ज्ञान धर्म के माध्यम से उपलब्ध होगा। और ज्ञान तभी उपलब्ध वैराग्य का क्या मतलब है? वैराग्य का मतलब है, यह बोध कि होगा, जब हम स्थिति को उपलब्ध हो जाएं। अगर परमात्मा की जहां-जहां मुझे सुख का खयाल होता है, वहां सुख नहीं है। यह स्थिति है और हमारी गति है, तो मिलन नहीं हो सकता। समान शास्त्र से पढ़कर नहीं आ जाएगा। संसार को ही उसके पूरे तत्व में समान का ही मिलन संभव है। जब हम भी स्थित होंगे. तो उससे समझने से आएगा। मिलन हो जाएगा। उस जैसे जब होंगे, तब हमारा उससे मिलन हो आपने बहुत प्रयोग किए हैं। जहां-जहां सुख की छाया दिखी है, जाएगा। | वहां-वहां दौड़े हैं। फिर वहां सुख पाया या नहीं? अगर नहीं पाया, ठहरते ही उस ठहरे हुए का अनुभव शुरू हो जाता है। और | कभी भी नहीं पाया...। जहां भी प्रतिबिंब दिखा, वहीं गए और ठहरने का एक ही उपाय है। इस संसार के वृक्ष को समझने से कुछ | मृग-मरीचिका मिली। जहां भी ध्वनि मिली, वहीं गए, लेकिन पाया न होगा, वरन अहंता, ममता और वासना, इन तीनों को वैराग्यरूपी | | कि सिर्फ खाली घाटियों में गूंजती आवाज थी। इंद्रधनुषों की खोज शस्त्र द्वारा काटकर, उसके उपरांत उस परम पद परमेश्वर को | की। बड़े रंगीन थे दूर से; पास गए, खो गए। हाथ में कुछ भी न अच्छी प्रकार खोजना चाहिए। आया। इन सारे जीवन के अनुभवों का जो निचोड़ है, वह वैराग्य है। वृक्ष को खोजने में न पड़ें। वृक्ष को तो काट ही दें। और उसको | | तो किसी शास्त्र को पढ़ने से वैराग्य नहीं आ जाएगा; कि आप खोजने में चलें, जिसका पतन वृक्ष है। जिससे गिरकर वृक्ष पैदा हो | | भर्तृहरि का वैराग्य-शतक पढ़ लें और सोचें कि वैराग्य आ जाएगा। रहा है, उस मूल उदगम को खोजने चलें। उस बीज को पकड़ें, उस भर्तृहरि को वैराग्य-शतक का अनुभव आया गहन भोग से। मूल स्रोत को पकड़ें। भर्तृहरि ने दो किताबें लिखी हैं। एक का नाम है, श्रृंगार-शतक। कभी आपने बीज को तोड़कर देखा? बीज आप बोते हैं; एक वह उसका पहला अनुभव है, संसार का अनुभव। तब उसने भोगा। 191
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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