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________________ * गीता दर्शन भाग-7* पूरा जगत धुआं-धुआं है। स्थिति केवल परमात्मा की है। और | बड़ी हूं। और जानने का उपाय भी नहीं। जब तक स्थिति उपलब्ध न हो, तब तक कोई भी ठहराव समझ का, | __आप भी दर्पण से ही जानते हैं कि आप कौन हैं। और तो कोई बुद्धि का नहीं हो सकता। तब तक ज्ञान की कोई अवस्था नहीं है। उपाय नहीं। दर्पण यानी छाया! इसलिए हिंदुओं की सारी चेष्टा इस बात में रही है कि कैसे आप लोमड़ी बड़ी चिंतित भी हुई, क्योंकि कहां पाएगी हाथी? और गति से मुक्त हों और स्थिति को प्राप्त हों। कैसे दौड़ना बंद हो और भूख बढ़ने लगी और खोजती रही, खोजती रही। दोपहर हो गई, ठहरना आए। कैसे प्रवाह रुके, थम जाए। नदी बहते-बहते कैसे | सूरज ऊपर आ गया; अभी तक भोजन भी नहीं मिला। और हाथी एकदम जम जाए, बर्फ हो जाए। सब चीजें ठहर जाएं। को पाने का खयाल, तो भूख भी हाथी जैसी, हाथी को पचाने जैसी ___ इस भीतर के चित्त की दौड़ के रुक जाने का नाम ही ध्यान है। भीतर हो गई। क्योंकि सारा मन का खेल है। भीतर कुछ भी न दौड़े, कोई गति न रहे, कोई प्रवाह न रहे, सब लेकिन हाथी मिला नहीं; भोजन मिला नहीं। नीचे झुककर उसने चीजें फ्रोजन हो जाएं, जड़ हो जाएं, ठहर जाएं, सब कंपन समाप्त | फिर छाया देखी। सूरज अब ऊपर आ गया, तो छाया करीब-करीब हो जाएं; उसी क्षण आप परमात्मा हो गए। जब तक आप बहते हैं, खो गई। तो लोमड़ी ने कहा, अब तो एक चींटी भी मिल जाए तो तब तक संसार है। जब आप ठहरते हैं, तब आप परमात्मा हैं। भी काम चलेगा। __ परमात्मा ही समझा जा सकता है। यह बड़ा विरोधाभासी ___ संसार छाया की तरह है। और बचपन में हर आदमी सोचता है लगेगा। क्योंकि विज्ञान कहता है, संसार समझा जा सकता है; | कि हाथी नहीं मिला, तो काम नहीं चलेगा। और बुढ़ापे में हर परमात्मा को समझने का कोई उपाय नहीं। परमात्मा का पता ही नहीं | आदमी जानता है कि चींटी भी मिल जाए, तो भी काम चलेगा। चलता है कि वह कहां है! समझना दूर, यह भी तय करना मुश्किल छाया छोटी होती जाती है। है कि है भी या नहीं। और गीता कहती है कि सिर्फ परमात्मा ही | सभी बच्चे सिकंदर होना चाहते हैं। सभी बूढ़े कहने लगते हैं, समझा जा सकता है, क्योंकि वह थिर है। वह जाना जा सकता है; | अंगूर खट्टे हैं। सभी बच्चे संसार को जीतने निकलते हैं। सभी बूढ़े उस पर भरोसा किया जा सकता है; वह रिलाएबल है। ऐसा नहीं | | वैराग्य की बातें करने लगते हैं। इसलिए नहीं कि वैराग्य आ गया। ख उठाकर देखेंगे और जब दुबारा आंख खोलेंगे, इसलिए कि छाया सिकुड़ गई। और अब इतने से भी काम चल तो वह बदल गया। वह वही होगा—इस जन्म में, अगले जन्म में, जाएगा। और कुछ न भी मिला, तो भी काम चल जाएगा। कल्पों-कल्पों बाद, युगों-युगों बाद-आप जब भी लौटकर वैराग्य का मतलब है, छाया सिकुड़ गई। यह वैराग्य कोई आएंगे, वह वही होगा। | वास्तविक नहीं है। अगर यह वैराग्य वास्तविक हो, तो जवानी में वह कूटस्थ है, वह ठहरा हुआ है, वहां कुछ भी बदलता नहीं। | भी आ सकता था। इसके लिए बुढ़ापे तक रुकने की कोई जरूरत आप कितना ही परिभ्रमण करें, कितना ही समय व्यतीत करें, जब न थी। भी आप लौटेंगे, आप पाएंगे, घर वैसा का वैसा है, सब वही है। यह जो लोमड़ी का कहना है कि चींटी से भी काम चल जाएगा, वहां रत्तीभर कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। यह कोई बुद्धिमत्ता नहीं है। अगर यह बुद्धिमत्ता होती, तो सुबह भी यह अपरिवर्तित ही समझा जा सकता है। क्योंकि यह भरोसे | | छाया की भ्रांति में आने का कोई प्रयोजन न था। सिर्फ छाया सिकुड़ योग्य है। इस पर श्रद्धा की जा सकती है। संसार तो भरोसे योग्य नहीं है। वह तो छाया की भांति है। इस संसार को समझने का ठीक-ठीक उपाय नहीं है, क्योंकि खलील जिब्रान की एक बड़ी प्रसिद्ध कहानी है। एक लोमड़ी प्रतिपल बदल रहा है। इसकी कोई स्थिति नहीं है। इसलिए इस सुबह-सुबह उठी। भोजन की तलाश पर निकली। सूरज उगता था | | अहंता, ममता और वासनारूप अति दृढ़ मूलों वाले संसाररूप उसके पीछे। बड़ी लंबी छाया लोमड़ी की बनी। लोमड़ी ने अपनी | | पीपल के वृक्ष को दृढ़ वैराग्य शस्त्र द्वारा काटकर...। छाया देखी और सोचा, आज तो एक हाथी मिले, तभी पेट भर | | इसको जानने में उलझने की भी कोई जरूरत नहीं है। क्योंकि पाएगा! इतनी लंबी छाया कि एक हाथी के बिना भोजन का कोई | इसको जान-जानकर भी कोई कभी जान नहीं पाता। उपाय नहीं। और छाया से ही लोमड़ी जान सकती है कि मैं कितनी विज्ञान सोचता था, इसी सौ वर्ष पहले, कि जल्दी ऐसा दिन आ 190
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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