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* गीता दर्शन भाग-7 *
कुछ हो जाते हैं। सबसे ऊपर कैलकुलेशन, हिसाब हो जाता है। महावीर जैसे नग्न खड़े व्यक्ति के पास भी आत्मा है; सब कुछ चालाकी है। लेकिन हिंदू हिसाब से कलियुग है। आखिरी वक्त है; है। बाहर से कुछ भी नहीं है। कैसे नापते हैं! सबसे बुरा वक्त है।
इस युग से ज्यादा दुखी कोई युग नहीं था। इस युग से ज्यादा इसे विकास कहें या इसे पतन कहें? बूढ़े को बच्चे का विकास | विक्षिप्तता किसी युग में नहीं थी। फिर भी हम कहे चले जाते हैं, कहें? या बूढ़े को बचपन का खो जाना कहें, पतन कहें? अगर | संपन्न हैं। फिर भी हम कहे चले जाते हैं, वैभवशाली हैं। आप से कोई पूछे, तो दोनों में क्या होना चाहेंगे? उससे निर्णय हो सच है, बात तो सच है। इतनी संपन्नता भी कभी नहीं थी। इतनी जाएगा। क्योंकि जो आप होना चाहेंगे, वही पाने योग्य है, वही विपन्नता भी कभी नहीं थी। पर दो अलग कोण हैं नापने के। एक श्रेष्ठ है। जो आप न होना चाहेंगे, वहीं कुछ भ्रांति, भूल, कहीं कुछ | कोण है, जो धन से नापता है, पदार्थ से नापता है। और एक कोण अंधकार है।
है, जो चेतना से नापता है। कोई भी बूढ़ा नहीं होना चाहता और कोई भी सिर्फ गणित में नहीं | चेतना की दृष्टि से मनुष्य का पतन हुआ है परमात्मा से। इसलिए जीना चाहता। क्योंकि जीवन के आनंद की कोई भी झलक मस्तिष्क | हम चेतना को फिर वापस उसी स्थिति में ले जाएं, जहां से परमात्मा में कभी नहीं उतरती। जीवन का आनंद, जीवन का नृत्य, जीवन की से हमारा संबंध छूटता है। फिर हमारी धारा वहीं मिरे, तो वही परम सुगंध तो हृदय ही अनुभव करता है। मस्तिष्क सब कुछ दे सकता निष्पत्ति होगी। है, सिवाय आनंद को छोड़कर। और हृदय के साथ शायद सब कुछ | लेकिन पदार्थ की दृष्टि से, साधन-सामग्री की दृष्टि से हम रोज खो जाएगा, सिर्फ आनंद बचेगा। लेकिन सब कुछ खोकर भी विकास कर रहे हैं। हम विकास कर रहे हैं, यह कहना भी शायद आनंद बचाने जैसा है।
ठीक नहीं है; क्योंकि मशीनें खुद ही विकास कर रही हैं। अब तो जिसको हम वैज्ञानिक विकास कहते हैं, वह विज्ञान का विकास | | आदमी को उसमें हाथ बंटाने की भी जरूरत नहीं है। कंप्यूटर हैं; होगा। ज्यादा बड़ी मशीनें हमारे पास हैं, ज्यादा बड़े मकान हमारे | वे विकास करते चले जाएंगे। पास हैं। लेकिन वे आनंद का विकास तो नहीं हैं। क्योंकि उन बड़े __ और वैज्ञानिक कहते हैं, इस सदी के पूरे होते-होते हम ऐसी मकानों में भी दुखी लोग रह रहे हैं। झोपड़ों में भी इतने दुखी लोग | मशीनें पैदा कर लेंगे, जो मशीनों को जन्म दे सकें, अपने से बेहतर नहीं थे, जितने बड़े मकानों में दुखी लोग रह रहे हैं। और जिनके मशीनों को जन्म दे सकें। वह बिल्ट-इन हो जाएगा, कि मशीन जब पास कुछ भी न था, कोई औजार न थे, कोई शस्त्र-साधन न थे, टने के करीब आए. मिटने के करीब आए, तो अपने से बेहतर वे भी इससे ज्यादा आनंदित थे। हमारे पास एटामिक मिसाइल्स हैं, | मशीन को जन्म दे जाए। जैसे आप एक बच्चे को जन्म दे जाते हैं। चांद पर पहुंचने के उपाय हैं, लेकिन सुख का कोई कण भी नहीं है। | तब तो फिर आपकी बिलकुल भी जरूरत नहीं होगी। तब मशीनें __ कैसे हम नापते हैं, यह सवाल है। अगर आप सिर्फ रुपयों के | विकसित होती रहेंगी। आप अपने घर भी बैठे रहे, जैसे थे वैसे रहे, ढेर से नापते हैं कि आदमी का विकास हुआ कि पतन, तो विकास | तो भी मशीनें विकसित होती रहेंगी। हुआ है। अगर आप आदमी में देखते हैं और नापते हैं, तो पतन | | मशीन ही विकसित हो रही है। आदमी खो रहा है। इस हिसाब हुआ है। तो आपकी दृष्टि पर निर्भर करेगा। क्या दृष्टिकोण है? से पतन है। मापदंड क्या है? क्राइटेरियन क्या है ? नापते कैसे हैं? ___ इसमें पूरा पूरब सहमत है। बुद्ध, लाओत्से, कृष्ण, सब सहमत
हिंदू चिंतन, उपनिषद के ऋषि या गीता के कृष्ण, मनुष्यता से हैं; जीसस, मोहम्मद, सब सहमत हैं; जरथुस्त्र, कनफ्यूसियस, नापते हैं। क्या आपके पास है, यह मूल्यवान नहीं है; आप क्या हैं, | | सब सहमत हैं कि बचपन श्रेष्ठतम है, शुद्धता की दृष्टि से। और यही मूल्यवान है। कितना आपके पास है, यह व्यर्थ हिसाब है। इसलिए जब कोई व्यक्ति, लाओत्से कहता है, पुनः बचपन को कितनी आत्मा है! कितना सत्व है! कितना चैतन्य है! आप क्या | उपलब्ध हो जाता है, तब वह संत हो गया। वर्तुल पूरा हुआ। उदगम हैं। बीइंग से नापते हैं, हैविंग से नहीं। आपके बैंक बैलेंस से आपके | से फिर मिलना हो गया। कृष्ण भी यही गीता में कह रहे हैं। होने का कोई नाता नहीं है। आप नग्न खड़े हों, तो भी कोई फर्क अब हम सूत्र को लें। नहीं पड़ता, तो भी आपके भीतर सत्व हो सकता है।
इस संसार-वृक्ष का रूप जैसा कहा है, वैसा यहां नहीं पाया
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