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** दृढ़ वैराग्य और शरणागति
अस्वाभाविक घटना घटती है, बहुत बहुमूल्य । क्योंकि वहां प्रेम प्रकृति के चक्र से मुक्त हो जाता है; वहां प्रेम सचेतन हो जाता है।
इसलिए सभी प्राचीन संस्कृतियां माता-पिता के लिए परम आदर का स्थापन करती हैं । और इसे सिखाना होता है। इसके संस्कार डालने होते हैं। इसके लिए पूरी संस्कृति का वातावरण चाहिए, पूरी हवा चाहिए, जहां कि यह ऊपर की तरफ उड़ना आसान हो सके।
नीचे की तरफ उतरने में कुछ भी गौरव गरिमा नहीं है। कठिन और भी है। जब एक बच्चा पैदा होता है, तो बच्चा तो निर्दोष होता है, सरल होता है । और बड़ी बात है - वही उसका गुण है, जिसकी वजह से आपका प्रेम उसकी तरफ बहता है - असहाय होता है, हेल्पलेस होता है । असहाय को प्रेम देने में आपके अहंकार को बड़ी तृप्ति मिलती है। असहाय को बड़ा करने में आपको बड़ा रस आता है। फिर बच्चा निर्दोष होता है। उसको घृणा करने का तो कोई उपा भी नहीं। उस पर कठोर होने में आपको मूढ़ता मालूम पड़ेगी ।
पर जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, वैसे-वैसे आपका प्रेम सूखने लगता है; वैसे-वैसे आप कठोर होने लगते हैं ! जैसे-जैसे बच्चा अपने पैरों पर खड़ा होने लगता है, वैसे-वैसे आप और बच्चे के बीच खाई बढ़ने लगती है। क्योंकि अब बच्चा असहाय नहीं है। और अब बच्चे का भी अहंकार पैदा हो रहा है। अब बच्चा भी संघर्ष करेगा, प्रतिरोध करेगा, बगावत करेगा, लड़ेगा। अब उसकी जिद्द और उसका हठ पैदा हो रहा है। उससे आपके अहंकार को चोट पहुंचनी शुरू होगी।
नवजात बच्चे को प्रेम करना बड़ा सरल है। लेकिन जैसे ही बच्चा बड़ा होना शुरू होता है, प्रेम करना मुश्किल, कठिन होने लगता है।
ठीक इससे उलटी बात खयाल में रखें कि बच्चे के लिए आपको प्रेम करना बहुत कठिन है, घृणा करना सरल है। क्योंकि आप शक्तिशाली हैं । और निर्बल हमेशा शक्तिशाली को घृणा करेगा। शक्तिशाली दया बता सकता है निर्बल के प्रति, लेकिन निर्बल को दया बताने का तो कोई उपाय नहीं है। निर्बल शक्तिशाली को घृणा करेगा।
बच्चा अनुभव करता है, असहाय है और आप शक्तिशाली हैं। बच्चा अनुभव करता है, वह परतंत्र है और सारी शक्ति, सारी परतंत्रता का जाल आपके हाथ में है। जैसे ही बच्चे का अहंकार बड़ा होगा - बड़ा होगा ही, क्योंकि वही गति है जीवन की —जैसे ही बच्चा सजग होगा और समझेगा मैं हूं, वैसे ही आपके साथ
संघर्ष शुरू होगा। आप चाहेंगे आज्ञा माने, और बच्चा चाहेगा कि आज्ञा तोड़े। क्योंकि आज्ञा मनवाने में आपके अहंकार की तृप्ति है और आज्ञा | तोड़ने में उसके अहंकार की तृप्ति है। और बच्चे के मन में आपके लिए घृणा होगी, और आपका प्रेम सिर्फ जालसाजी मालूम होगी। | क्योंकि प्रेम के नाम पर आप बच्चे का शोषण कर रहे हैं, ऐसा बच्चे को प्रतीत होगा। और सौ में नब्बे मौके पर बच्चा गलती में भी नहीं है। प्रेम के नाम पर यही हो रहा है।
यह सारी घृणा बच्चे में इकट्ठी होगी। अगर बच्चा लड़का है, तो पिता के प्रति घृणा इकट्ठी होगी, अगर लड़की है, तो मां के प्रति घृणा इकट्ठी होगी। कोई बेटा अपने बाप आदर नहीं कर पाता। | आदर करना पड़ता है, मजबूरी है, लेकिन भीतर से बगावत करना चाहता है। कोई लड़की अपनी मां को प्रेम नहीं कर पाती । दिखलाती है; वह शिष्टाचार है। लेकिन भीतर ईर्ष्या, जलन और संघर्ष है।
इसलिए गुरजिएफ की बात मूल्यवान है कि जो व्यक्ति अपने | मां-बाप को प्रेम कर पाए, उसे ही मैं मनुष्य कहता हूं। क्योंकि यह बड़ी कठिन यात्रा है।
इसलिए आप अगर अपने बच्चों को प्रेम करते हैं, तो बहुत गौरव मत मान लेना। सभी अपने बच्चों को प्रेम करते हैं; आपके बच्चे भी करेंगे। इसमें कोई विशेषता नहीं है। लेकिन अगर आप अपने मां-बाप के प्रति आदर करते हैं, प्रेम करते हैं, सम्मान रखते हैं, तो जरूर गौरव की बात है, जरूर महत्वपूर्ण बात है। क्योंकि | यह एक चेतनागत उपलब्धि है। और यह तब ही हो सकती है, जब आप मूल के प्रति श्रद्धा से भर जाएं।
अन्यथा हर बेटे को ऐसा लगता है कि बाप मूढ़ है । और | जैसे-जैसे आधुनिक विकास हुआ है शिक्षा का, वैसे-वैसे यह प्रतीति और गहरी होने लगी है।
शायद बाप उतना पढ़ा-लिखा न हो, जितना बेटा पढ़ा-लिखा | है | बाप बहुत-सी बातें नहीं भी जानता है, जो बेटा जान सकता है। रोज ज्ञान विकसित हो रहा है। इसलिए बाप का ज्ञान तो पिछड़ा हो जाता है; आउट आफ डेट हो जाता है।
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तो बेटे के मन में स्वभाविक हो सकता है कि बाप कुछ भी नहीं जानता। श्रद्धा कैसे पैदा हो ? श्रद्धा किन्हीं तथ्यों पर आधारित नहीं हो सकती। श्रद्धा तो सिर्फ इस बात पर आधारित हो सकती है कि पिता उदगम है, स्रोत है; और जहां से मैं आया हूं, उससे पार जाने का कोई उपाय नहीं। मैं कितना ही जान लूं, मैं कितना ही बड़ा हो