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* गीता दर्शन भाग-7 *
जाऊं अपनी आंखों में, मेरा अहंकार कितना ही प्रतिष्ठित हो जाए, लौटो। हम क्या करें? लेकिन फिर भी मूल और उदगम के सामने मुझे नत होना है। क्योंकि कोई भी अपने उदगम से ऊपर नहीं जा सकता।
पिने बीज से ज्यादा नहीं होता। हो भी नहीं सकता। व र्तमान में जीना तभी संभव है, जब अतीत से छुटकारा बीज में पूरा वृक्ष छिपा है। कितना ही विराट वृक्ष हो जाए, वह
हो जाए। उसके पहले कोई वर्तमान में जी नहीं छोटे-से बीज में छिपा है। और उससे अन्यथा होने की कोई नियति | सकता। इन दोनों बातों में कोई विरोध नहीं है। वर्तमान नहीं है। और अंतिम फल जो होगा वृक्ष का, वह यह होगा कि उन्हीं | | में वही जी सकता है, जिसके मन पर अतीत का कोई बोझ नहीं। बीजों को वह फिर पुनः पैदा कर जाए।
अतीत का बोझ हो, तो वर्तमान में जीने का उपाय नहीं। उदगम से आप कभी बड़े नहीं हो सकते। मूल से कभी विकास __ और अतीत का बोझ आपके ऊपर है। यह अतीत में लौटने की बड़ा नहीं हो सकता। वृक्ष कभी बीज से बड़ा नहीं है, कितना ही | प्रक्रिया उस बोझ को काटने का उपाय है। उससे छुटकारा चाहिए, बड़ा दिखाई पड़े। इस अस्तित्वगत घटना की गहरी प्रतीति । | वह गिर जाए। जैसे वस्त्रों को छोड़कर कोई नग्न खड़ा हो जाए, माता-पिता के प्रति आदर से भर सकती है।
ऐसा अतीत छूट जाए और आप नग्न वर्तमान में खड़े हो जाएं, तो लेकिन आप माता-पिता की तरह इसको मत सुनना; इसको बेटे | | ही वर्तमान में जी सकेंगे, तो ही क्षण-क्षण होने का अनुभव होगा। और बेटी की तरह सुनना। यह आपके माता-पिता के प्रति आपकी | | ये दो बातें विरोधी मालूम पड़ सकती हैं। लेकिन अतीत में श्रद्धा के लिए कह रहा हूं। अब जाकर अपने घर में आप अपने | लौटना वर्तमान में जीने की कला है। बच्चों से श्रद्धा मत मांगने लगना। क्योंकि तब आप बात समझे ही | ___ अतीत में जीने को नहीं कह रहा हूं आपसे कि आप अतीत में नहीं, चूक ही गए।
| जीएं। अतीत में जीने का कोई उपाय नहीं है। जो जा चुका वह जा और जिस समाज में भी माता-पिता के प्रति श्रद्धा कम हो| | चुका, वह अब है नहीं। उसमें जीएंगे कैसे? कल तो बीत गया। जाएगी, उस समाज में ईश्वर का भाव खो जाता है। क्योंकि ईश्वर | और कल को लाने का अब कोई मार्ग नहीं है। आदि उदगम है। वह परम स्रोत है।
लेकिन कल की स्मृति भीतर टंगी रह गई है। वह अभी भी मौजूद अगर आप अपने बाप से आगे चले गए हैं तीस साल में, आपके | है। कल बीत चुका, सांप जा चुका; उसकी केंचुली आपके मन में और बाप के बीच अगर तीस साल की उम्र का फासला है, आप इतने अटकी रह गई है। आगे चले गए हैं बाप से, तो परम पिता से, परमेश्वर से तो आप वह जो कल की स्मृति आपके मन में आज भी मौजूद है, उस बहुत आगे चले गए होंगे। अरबों-खरबों वर्ष का फासला है। अगर | स्मृति से छुटकारा चाहिए। उस स्मृति से आपका रस समाप्त हो परमात्मा मिल जाए, तो वह बिलकुल महाजड़, महामूढ़ मालूम | जाए। उस स्मृति के न तो आप पक्ष में रहें, न विपक्ष में। न तो उस पड़ेगा। जब पिता ही मूढ़ मालूम पड़ता है, अगर परमात्मा से आपका | स्मृति से लगाव रहे और न घृणा। उस स्मृति से आपका सारा संबंध मिलन हो, तो वह तो आपको मनुष्य भी मालूम नहीं पड़ेगा। छूट जाए, जैसे वह हुई या नहीं हुई बराबर हो जाए। तो आप अतीत
पीछे की ओर, मूल की ओर, उदगम की ओर सम्मान का बोध | | से मुक्त हो गए; तो आपने अतीत की स्लेट को पोंछकर साफ कर अत्यंत विचार और विवेक की निष्पत्ति है। वह प्रकृति से नहीं | | दिया। तब ही आप वर्तमान में जी पाएंगे। तब आपकी आंखें मिलती। विमर्श, चिंतन, ध्यान से उपलब्ध होती है।
उज्ज्वल होंगी, ताजी होंगी, नई होंगी। और आप जो भी देखेंगे, ___ पर ध्यान रखना, जो भी मैं कह रहा हूं, वह आपसे बेटे और | उसमें आपकी आंखों पर पड़ी हुई अतीत की धूल बाधा नहीं देगी। बेटियों की तरह कह रहा हूं, पिता और माता की तरह नहीं। | वह धूल नहीं है वहां; दर्पण स्वच्छ है।
| तो अतीत में लौटने की प्रक्रियाएं वर्तमान में जीने की विधियां
हैं। और जो व्यक्ति अतीत में लौटने से डरता है. वह डरता ही दूसरा प्रश्न: आपने पहले कहा है, क्षण-क्षण जीयो, इसलिए है कि अतीत बहुत भारी है। अतीत का स्मरण ही उसको वर्तमान में जीयो। अब आप कह रहे हैं, अतीत में | बेचैन और विचलित कर देता है। उसका अर्थ है कि मन में भीतर
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