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के महापंडित शिष्य / शास्त्रों की पूर्णाहुति सदगुरु में / शास्त्र की ठीक समझ में ही शास्त्र का अतिक्रमण / शास्त्र बड़े प्यारे हैं-अगर समझ हो / शब्दों के साथ नाजुक व्यवहार / अध्ययन अर्थात अर्थ को निचोड़ो / पाठ अर्थात सहानुभूति और प्रेम से उसे गाओ, उसमें रमो / धम्मपद पढ़ा-अब बुद्ध की तलाश करो / गीता पढ़ी-अब कृष्ण को खोजो / बुद्ध पुरुष सदा उपलब्ध हैं / सदगुरु स्रोत है-शास्त्रों का / बुद्ध, महावीर, कृष्ण, क्राइस्ट-नए नाम-रूपों में उपलब्ध / पुराने नामों से हमारा मोह है / इसलिए गीता, बाइबिल, धम्मपद पर बोलता हूं / शास्त्र से गुरु पर और गुरु से स्वयं पर आना है / पुरुषोत्तम की व्याख्या / तीन स्थितियां : शरीर अर्थात संसार, और आत्मा, तथा परमात्मा / क्षर पुरुष, अक्षर पुरुष और पुरुषोत्तम / जैन विचार में केवल दो तत्व—पुदगल और आत्मा / अतिक्रमण के लिए तीसरा जरूरी / हिंदू, ईसाई, मुसलमान-त्रैत मानते हैं / कृष्ण कहते हैं : मैं तीसरा हूं / शरीर
और मन की परतों के पार छिपा साक्षी-भाव ही पुरुषोत्तम है / शरीर की पहली पर्त पर रुके हुए हैं अधिकतम लोग / शरीरवादी नास्तिक पोर्च को ही घर समझे हुए हैं / नास्तिक बंद हो जाता है-अपनी आंतरिक संभावनाओं के प्रति / आत्मा अर्थात मैं-भाव से युक्त चेतना / साक्षी अर्थात अस्मिताशून्य शुद्ध चैतन्य / भूख और भूख की प्रतीति—इन दो को देखने वाला तीसरा / हर अनुभव में तीनों मौजूद / तीसरे के प्रति संवेदनशील होने के लिए प्रयोग करें / साक्षी के बोध से जीवन का एक लीला मात्र हो जाना / स्वयं पर हंसने की कला / स्वयं को भी दूर खड़े हो कर देखना / शरीर है रथ, सोच-विचार है आत्मा, और साक्षी चेतना है सारथी / जीवन एक चल-चित्र सा चलता रहता है—साक्षी देखता रहता है / पुरुषोत्तम की प्रतीति एकमात्र साम्राज्य है / बिना पुरुषोत्तम को जाने व्यक्ति भिखमंगा है / पुरुषोत्तम को पाया कि सब पाया / निकट ही है पुरुषोत्तम-पुकार चाहिए, प्यास चाहिए, अभीप्सा चाहिए।
प्यास और धैर्य... 263
बिना शास्त्रों से गुजरे मैंने आपको गुरु मान लिया है, तो क्या मेरा रास्ता गलत है? / अनंत जन्मों की यात्रा है / समर्पण की पात्रता के साथ ही किसी के प्रति गुरु-भाव का उदय / गुरु-भाव के आते ही आमूल-क्रांति प्रारंभ / व्यक्तित्व का प्रभाव और समर्पण का भ्रम / समर्पण का भाव स्थायी हो, तो शास्त्रों की जरूरत न रही / स्वानुभव का बीज और गुरु की वर्षा / आरोपित प्रभाव के प्रति सावधानी / ऊपर से ओढ़ा गया भक्ति-भाव / वास्तविक रूपांतरण की व्यावहारिक कसौटी / भाव को कृत्य बनाएं / मैं आपको प्रभावित करने के लिए नहीं बोलता / लंबे समय से आपको सुनकर भी मैं अपने को वहीं का वहीं पा रहा हूं, फिर मैं क्या आशा रख सकता हूं? / तुम नहीं बदले, तो कसूर किसका है? / सुनकर कोई नहीं बदलता / सुनना भी व्यसन बन जाता है / सुनना सुगम है; कुछ भी करना नहीं पड़ता / पढ़ने से भी कम मेहनत—सुनने में / सुनकर-बदलने के सूत्र लेना / केवल सुनें ही मत, उसको जीएं-उसको आत्मसात करें / ध्यान पर विचार न करें-उसमें स्वयं डूबें / मेरी बातों को सुनकर अनुभव की यात्रा पर निकल जाएं / जीवन में • जो भी मूल्यवान है, उसे कोई दूसरा आपके लिए नहीं कर सकता / प्रभु के लिए समग्ररूपेण आतुरता और अनंत धैर्य क्या विपरीत अतियां नहीं हैं? / नहीं; वे परिपूरक हैं / एक क्षण में पाया जा सकता है, यदि अनंत धैर्य हो / शांत व्यक्ति ही धैर्यवान / दुखी व्यक्ति अधैर्य में होता है / अधैर्य बाधा है, क्योंकि अधैर्य तनाव है । अधैर्यवान परमात्मा को बहुत मूल्यवान नहीं समझता / बुद्ध शुरू में एक साल चुप बिठाते थे / पूरा जीवन भी गंवाना पड़े तो तैयार हों / भक्त और आस्तिक अर्थात जिसकी कोई शिकायत नहीं है / गहन प्यास और अनंत धैर्यः एक ही रेखा के दो छोर / सभी रेखाएं वर्तुलाकार हैं / जीवन भी वर्तुलाकार है / दो अतियों का वर्तुल में मिलना / छलांग हमेशा अति से संभव / झेन फकीरों की तत्काल संबोधि और तीव्रतम अभीप्सा / सूफियों का अनंत धैर्य और समर्पित प्रतीक्षा / अंत पर जोर या प्रक्रिया पर जोर / क्या गुरु के जाल में फंसना, तड़पना और मरना रूपांतरण के लिए अनिवार्य है? / निश्चित ही / अहंकार डरता है–फंसने और मिटने से / फंसने से डरोगे, तो जीवन से ही वंचित रह जाओगे / फंसे बिना प्रेम का अनुभव असंभव / शिष्यत्व प्रेम का चरम शिखर है / फंस कर भी मुक्त बने रहने की परम कला / परतंत्रता-समर्पण की कमी के कारण / जहां प्रतिरोध-वहां बंधन / गुरु की परम मुक्ति से आपका मिलन / गुरु की धारा के साथ बहने पर मुक्ति का अनुभव / गुरु के पास जा कर पहले प्यास का बढ़ना / अभीप्सा का गहन होना / तड़पन का उत्ताप-बिंदु / गुरु यानी अहंकार की मृत्यु / गुरु से बचने की युक्तियां खोजना / मृत्यु द्वार है अमृत का / फंसना-तड़पना-मरना ः एक ही मार्ग की सीढ़ियां हैं / पुरुषोत्तम परमात्मा ही केंद्र है / भजन अर्थात सतत सर्वत्र उसी का बोध / ठंड से, भय से बचने के लिए राम-राम जपना / सतत भजन कैसे संभव? / निष्पाप होना हमारा स्वभाव है / कृत्य से मेरा होना सदा अलग है / पाप अर्थात निष्पापता का विस्मरण / दुविधा प्रारंभ-मन के तल पर / युद्ध संभव-शरीर के तल से या पुरुषोत्तम के तल से / स्वानुभव के पहले समझना असंभव / रहस्यमय एवं गोपनीय–पुरुषोत्तम का अनुभव / ज्ञान की कुंजियों के खतरे / सुन कर पुरुषोत्तम की खोज प्रारंभ करना।