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धर्म की गुप्तता का कारण / जन्म से सब शूद्र / दुबारा जन्म गुरु की सन्निधि में / शास्त्रों को न लिखने का आग्रह / आध्यात्मिक विज्ञान के खतरे / विचारों का संप्रेषण / भीड़ का, एकांत का, संत का, असंत का मन पर अलग-अलग प्रभाव / दूसरों के मन को प्रभावित करना / एकाग्रता के प्रयोग शुद्ध हृदय व्यक्ति को ही बताए जाते हैं / रासपुतिन की अथक खोज / कुछ छोटे-मोटे सूत्रों का मिलना / धन की ही नहीं-सूत्रों की भी चोरी / बौद्ध भिक्षु की हृदय-शुद्धि के लिए चार प्राथमिक साधनाएं-मैत्री, करुणा, मुदिता, उपेक्षा / बुद्ध के चार ब्रह्म-विहार और पतंजलि के यम, नियम आदि पांच प्राथमिक चरण / महेश योगी के मंत्र-योग से खतरा / हत्यारे और चोर को सीधे शांति मिले तो खतरा है / जीसस की कहानी : आंखों का दुरुपयोग / मंत्र जाप से बेईमान अपनी बेईमानी में अधिक कुशल! / बुरे काम में सफलता खतरनाक है / इंस्टेंट काफी—इंस्टेंट मेडिटेशन / पश्चिमी मन शुद्धि की प्रक्रिया के लिए राजी नहीं / आत्मघाती शांति / पहले शुद्धि की प्रक्रिया जरूरी / वैराग्य और अभ्यास दोनों एक साथ जरूरी क्यों हैं? / वैराग्य के अनुभवों को संचित करने का अभ्यास जरूरी / वैराग्य के अनुभव की निरंतर चोट-मन पर / वैराग्य के क्षणों का पुनः-पुनः स्मरण / मन का एंटिडोट-वैराग्य / मन भी एक अभ्यास है / मन के विपरीत वैराग्य की संगृहीत शक्ति / मृत्यु के धक्के से बचने के हमारे उपाय / सिद्धांतों के, व्याख्याओं के बफर / अभ्यास अर्थात बिना बफर के जीना / वैराग्य के आने के लिए सब द्वार-दरवाजे खुले रखना / मरघट-वास और वैराग्य का उदय / कृष्ण का कहना कि सब कुछ मैं ही हूं-अर्जुन के समर्पण के लिए / कृष्ण बड़े अहंकारी से मालूम पड़ते हैं / कृष्ण का प्रयास है कि अर्जुन को अपने अहंकार की व्यर्थता का बोध हो / अर्जुन को मिटने के लिए राजी करना / कृष्णमूर्ति द्वारा कृष्ण से ठीक उलटा प्रयोग / कृष्णमूर्ति की बातों से अज्ञानियों के अहंकार को सहारा / अहंकार का दीया और भीतर का सूर्य / चंद्रमा द्वारा औषधियों को शीतलता का गुण मिलना / सूर्य द्वारा उत्तेजना के गुण मिलना / सोम-रस की खोज-विज्ञान द्वारा / सोम-रस अर्थात चंद्र-रस, शांतिदाई रस / पश्चिम के साइकेडेलिक ड्रग्ज / समाज सोम-रस जैसी चीजों के विरोध में / समाज को उत्तेजित, दौड़ने वाले लोगों की जरूरत / आनंद, प्रसन्नता, शांति-समाज-विरोधी गुण / हिप्पियों से भयभीत-अमेरिका / सब मैं हूं-उत्तेजना भी, शांति भी / सबके भीतर छिपा अंतर्यामी मैं हूं / अंतर्यामी की खोज ः नेति-नेति से / अपोहन अर्थात संशय विसर्जन–अचुनाव होश / आत्म-बोध, मैं हूं / नाम, पद, प्रतिष्ठा-स्वभाव नहीं है / स्वभाव अर्थात भीतर का अनाम, अरूप चैतन्य / ज्ञान मैं हूँ / ज्ञान अर्थात नालेज नहीं-वरन प्रज्ञा / वेदों की तीन सार बातें-आत्म-बोध, प्रज्ञा और अचुनाव होश / अंतर्यामी को जानने वाले की वाणी वेद है / उसका मौन, उसका उठना-बैठना वेद है । पहला पड़ाव: बाहर का गुरु / दूसरा पड़ावः भीतर का गुरु।
पुरुषोत्तम की खोज ...247
आप अपने ध्यान प्रयोगों में एकाग्रता की अपेक्षा साक्षी-भाव पर जोर क्यों देते हैं? / एकाग्रता से शक्ति और साक्षी-भाव से शांति उपलब्ध / मनो-ऊर्जा का एक दिशा में बहना / सांसारिक व्यक्ति, वैज्ञानिक, और संगीतज्ञ की सफलता एकाग्रता के कारण ही / एकाग्रता से मन और अहंकार का प्रबल होना / साक्षी-भाव से अहंकार व मन का मिटना / एकाग्रता में द्वैत है और साक्षी-भाव में अद्वैत / एकाग्रता का उपयोग साक्षी-भाव के लिए / एकाग्रता में खतरा-भटकने का / शक्तिशाली व्यक्ति के लिए एकाग्रता आसान / कमजोर व्यक्ति ही मन के वश में / पचास साल तक अशांत रहना सरल, लेकिन पांच मिनट शांत होना कठिन / विचारशक्ति से वस्तुओं को गतिशील करने के रूस में प्रयोग / एकाग्रता की शक्ति का उपयोग करने से उसका क्षीण होना / विवेकानंद द्वारा एकाग्रता की शक्ति का क्षुद्र उपयोग / शांत साधक में उपद्रवी विचार नहीं उठते / शक्ति मिलते ही बिगड़ने की संभावना को बल / साक्षी-भाव की शांति में बुराई के बीजों का जल जाना / शक्ति हो, लेकिन वासना न हो, तो व्यक्ति परमात्मा का उपकरण हो जाता है / कर्ता-भाव हटते ही परमात्मा सक्रिय / अहंकारी व्यक्ति को साक्षी-भाव न जंचेगा / सिद्धियों एवं शक्तियों की आकांक्षा धार्मिक नहीं है / मिटने की-ना-कुछ होने की सतत भावना करो / शक्ति की खोज है संसार और मिटने की खोज है धर्म / बिना शास्त्रों में भटके, गुरु की खोज क्यों संभव नहीं है? / शास्त्रों से असफलता पाकर ही गुरु की खोज का प्रारंभ / मुरदा शास्त्रों से अहंकार को कोई चोट नहीं / जीवित व्यक्ति के चरणों में झुकने में अहंकार को पीड़ा / शास्त्र से अपने ही अनुकूल अर्थ निकाल लेना / शास्त्रों पर स्वयं का ही अचेतन मन अरोपित / अदभुत चीनी पुस्तक आई-चिंग / मन-पसंद अचेतन अर्थ निकालने की सुविधा / बादलों में हाथी, घोड़े आदि देखना / शब्दों में सत्य धुंधला हो जाता है / शास्त्र में स्वयं को पढ़ना / बुद्धिमानी का लक्षण–यह बोध–कि शास्त्र में नहीं मिला / जीवित व्यक्ति के साथ अड़चनें / जीवित गुरु को धोखा देना असंभव / शास्त्र से ऊब गए व्यक्ति में साधना की प्यास / दार्शनिक बातों में गुरु के पास समय खराब करना / शास्त्र जहां समाप्त होते हैं, गुरु वहां शुरू होता है / बुद्ध और महावीर