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________________ और गीता दर्शन भाग-7 ठहरे, तो ही मैं सुखी हो सकता हूं। | मरे और सूखे पत्ते हैं। उनसे तो वासना भी कहीं ज्यादा जीवंत है। कृष्ण कहते हैं, नदी का स्वभाव बहना है; नदी को तुम बहने दो। इसलिए अक्सर यह होता है कि वासनाओं में डूबा हुआ साधारण रोकने में न शक्ति व्यय करो और न समय खोओ। तुम नदी नहीं हो, | | मनुष्य भी परमात्मा के ज्यादा निकट होता है, बजाय उन लोगों के, इतना जान लेना काफी है। और नदी बहती रहे, न बहती रहे, इससे जो केवल वेद के पत्तों में ही डूबे रहते हैं। उनका मूल से संबंध तुम्हें कुछ लेना-देना नहीं है। तुम नदी को भूल जा सकते हो, नदी बिलकुल ही टूट जाता है। विस्मृत की जा सकती है। तुम अपना स्मरण कर सकते हो। वासना के पार जाना है, लेकिन वासना के पार जाने के दो उपाय और आदमी पर दोनों का मिलन है, वह जो अविनाशी है | | हैं। अगर आप वृक्ष की शाखा पर बैठे हों, तो शाखा से पार जाना परमात्मा, वह; और वह जो अविनाशी संसार है, वह; दोनों आदमी | | है, लेकिन पार जाने के दो उपाय हैं। या तो शाखा के पीछे जाएं, की रेखा पर मिलते हैं। वहां सीमा दोनों की मिलती है। आपके | जहां मूल है; और या शाखा की तरफ आगे जाएं, जहां पत्ते हैं। दोनों भीतर दोनों अविनाशी हैं। वह जिसकी स्थिति कभी नाश नहीं होती। हालत में आप शाखा से हट जाएंगे। है, वह; और जिसकी प्रक्रिया कभी नाश नहीं होती है, वह; दोनों | इसलिए ज्ञान को पकड़ लेने वाले लोग भी संसार से एक अर्थ की बाउंड्री आप हैं। दोनों की सीमा, दोनों का मिलन आप हैं। | में दूर हो जाते हैं। लेकिन परमात्मा के निकट नहीं हो पाते। परमात्मा सीमा से संसार शुरू होता है, नीचे की तरफ; ऊपर की तरफ के निकट होने के लिए शाखा का छूटना जरूरी है, लेकिन पत्तों की परमात्मा शुरू होता है। आगे की तरफ संसार शुरू होता है, पीछे दिशा में नहीं, मूल की दिशा में। की तरफ परमात्मा शुरू होता है। मूल की तरफ परमात्मा है, | और इस संसाररूप वृक्ष को जो पुरुष मूल सहित तत्व से जानता शाखाओं की तरफ संसार है। है, वही वेद के तात्पर्य को जानने वाला है। मल ऊपर की ओर शाखाएं नीचे की ओर हैं. ऐसे संसाररूप तो वेद का तात्पर्य वेद में नहीं छिपा है. इस संसार की परी पीपल के वृक्ष को अविनाशी कहते हैं; तथा जिसके वेद पत्ते कहे अभिव्यक्ति में छिपा है। और जो व्यक्ति इस वृक्ष को मूल सहित गए हैं, उस संसाररूप वृक्ष को जो पुरुष मूल सहित तत्व से जानता | तत्व से जानता है, जो इस वृक्ष के मूल को, शाखा को, पत्तों को, है, वह वेद के तात्पर्य को जानने वाला है। | फूलों को, बीजों को, सबको पूरी तरह जान लेता है तत्व से, वही यह बहुत ही अदभुत वचन है। इस संसार के पत्तों को कृष्ण कह | व्यक्ति वेद के तात्पर्य को जानने वाला है। रहे हैं वेद। परमात्मा है मूल, ये शाखाएं हैं संसार, और इन ___ आप ऋग्वेद कंठस्थ कर सकते हैं। और कंठस्थ करने में यह हो शाखाओं पर लगे हुए पत्ते हैं ज्ञान। ज्ञान बहुत दूर है परमात्मा से। सकता है कि आपको संसार जानने का न समय मिले, न उपाय रहे। यह जरा जटिल लगेगा। मैंने सुना है एक यहूदी फकीर बालशेम के संबंध में। उसका वासना भी परमात्मा के ज्यादा निकट है, ज्ञान उससे भी ज्यादा बड़ा आश्रम था और दूर-दूर से खोजी उसके आश्रम में वर्षों आकर दूर है। क्योंकि वासना शाखाएं है, ज्ञान तो बहुत ही दूर है; पत्ता तो रुकते थे। एक युवक वर्षों पहले आया था और अब तो बूढ़ा हो आखिरी बात है। पत्ते के बाद फिर कुछ भी नहीं है। पत्ता अंत है। गया था। उसने सारे यहूदी शास्त्र कंठस्थ कर लिए थे। तालमुद जिसको हम वेद कहते हैं, ज्ञान कहते हैं, जिसको हम बड़ी उपलब्धि | उसकी जबान पर बैठा था। उसकी ख्याति काफी फैल गई थी। यहां मानते हैं, उसको कृष्ण कह रहे हैं, वह पत्तों की भांति है। तक कि लोग आश्रम में आते, तो बालशेम से न मिलकर, उस जैसे कोई आदमी पत्तों को गिनता रहे और सोचे कि मूल को युवक, उस बूढ़े-जो कभी युवक था, और शास्त्रों को कंठस्थ उपलब्ध हो गया। ऐसे कोई वेद को कंठस्थ कर ले; उसने पत्ते करते-करते बढ़ा हो गया था-उससे जाकर मिलते। इकट्ठे कर लिए; मूल से उसका कोई संबंध नहीं। और अगर एक दिन एक आदमी ने आकर बालशेम को कहा कि यह बासनाओं का दुश्मन हो, तो पत्ते काट ले, तो मुर्दा पत्ते इकट्ठे हुए। व्यक्ति इतना जानता है शास्त्रों को, यह व्यक्ति अनूठा है; आप वे पत्ते जिंदा भी नहीं हैं। इसके संबंध में कभी कुछ भी नहीं कहते! बालशेम ने कहा, किसी ___पुराने शास्त्र वृक्षों के पत्तों पर लिखे गए थे; बड़ी अच्छी बात को कहना मत; वह शास्त्रों के संबंध में इतना जानता है कि मैं सदा थी। मुर्दा पत्ते, सूखे पत्ते, उन पर शास्त्र लिखे गए थे। सभी शास्त्र | | चिंतित रहता है कि वह संसार को कब जानेगा? और जो संसार को
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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