________________
* मूल-स्रोत की ओर वापसी *
लेकिन प्रक्रिया जारी रहेगी।
छोड़ देता है, जो समझ लेता है कि यह चलती ही रहेगी; मेरे ठहराने संसार की प्रक्रिया अविनाशी है और परमात्मा का सत्व | से ठहरने वाली नहीं; जो अपने को ठहरा लेता है और इस प्रक्रिया अविनाशी है। परमात्मा का होना अविनाशी है और संसार की गति की चिंता छोड़ देता है, उसे हम ज्ञानी कहते हैं। अविनाशी है। परमात्मा की स्थिति अविनाशी है और संसार की हम सब की कोशिश यही है कि प्रक्रिया ठहर जाए। आप सुख गति अविनाशी है।
में हैं, तो आप सोचते हैं, सुख ठहर जाए, रुक जाए। आप संसार घूमता ही रहता है। इस घूमते संसार को बदलने की बिलकुल छाती से लगाकर बैठ जाते हैं कि सुख कहीं छूट न जाए; कोशिश व्यर्थ है। इस घूमते संसार को ठहराने की कोशिश व्यर्थ | जो मिला है कहीं खो न जाए। है। वह उसका स्वभाव नहीं है। इसे थोड़ा समझ लें।
लेकिन यहां कोई चीज टिकती नहीं। इसमें कोई आपकी क्योंकि आधुनिक सारा चिंतन इस बात पर जोर देता है कि यह कमजोरी नहीं है, यहां वस्तुओं का स्वभाव ऐसा है कि यहां कोई संसार रोका जा सकता है, बदला जा सकता है। मार्क्स, एंजिल्स, | चीज टिकती नहीं। जैसे आग गरम है, इसमें आग का कोई कसूर लेनिन, उन सबका खयाल है कि आज नहीं कल समाज में समता | नहीं है। आग को पकड़ेंगे, तो जलेंगे। इसमें आग का कोई कसर आ जाएगी। मार्क्स से लोगों ने पूछा कि समता के बाद फिर क्या नहीं है; पकड़ने के मोह में भूल है। संसार का स्वभाव है कि वह होगा? मार्क्स ने कहा, फिर कुछ भी नहीं होगा; समता ठहरेगी। बदलेगा। इसलिए यहां जो भी आप पा लेते हैं, उसको ठहराना फिर समता के बाद कोई परिवर्तन नहीं होगा।
चाहते हैं। यहां मार्क्स बिलकुल भ्रांत है। यहां कृष्ण की बात बहुत गहरी __ मेरे पास निरंतर लोग आते हैं। थोड़ा ध्यान करते हैं; मन थोड़ा है। यहां कुछ भी चीज ठहरती नहीं। यहां समता भी नहीं ठहरेगी। । | शांत होता है; वे कहते हैं कि यह शांति ठहर जाए। यहां कोई भी स्थिति स्थिर नहीं हो सकती; कभी नहीं हुई, कभी | | इस संसार में कुछ भी ठहरेगा नहीं। यह शांति भी नहीं ठहरेगी। होगी भी नहीं। यहां हर चीज बनेगी और मिटेगी। घूमना इसका यह भी संसार का ही हिस्सा है, यह भी कुछ करने से मिली है। यह स्वभाव है।
खो जाएगी। एक और शांति है, जो ठहरेगी; लेकिन वह संसार का मार्क्स जैसा प्रगाढ़ चिंतक भी कमजोर हो जाता है अपने सिद्धांत | हिस्सा नहीं है। वह शांति इस समझ से पैदा होती है कि जहां सब के मामले में। मार्क्स कहता है, हर चीज बदलेगी। पूंजीवाद टिक बदलता है, वहां ठहराने का पागलपन मैं न करूंगा। बदलता जाए। नहीं सकता; जाएगा; क्रांति होगी। सामंतवाद टिका नहीं; क्रांति सुख आए, दुख आए; शांति हो, अशांति हो; मैं दूर खड़ा देखता हुई; गया। संसार बदलता रहा है।
ही रहूंगा। मैं इनमें से किसी को भी पकडूंगा नहीं और किसी को मार्क्स खुद कहता है, डायनैमिक, डायलेक्टिकल संसार है। धकाऊंगा नहीं। मैं सिर्फ द्रष्टा रह जाऊंगा। गत्यात्मक है और द्वंद्वात्मक है। यहां हर चीज बदल रही है। | ऐसा जो सुख-दुख को देखने में लग जाता है, वह इस संसार पूंजीवाद भी बदलेगा। लेकिन तब अपने ही सिद्धांत से उसको बड़ा | | के चक्र से बाहर छलांग ले लेता है। संसार तो चलता ही रहता है। मोह है। फिर जब साम्यवाद आ जाएगा, तब कोई गति नहीं होगी! वह इसके बाहर हो जाता है।
गति संसार का स्वभाव है। यहां कोई भी चीज ठहरेगी नहीं। यहां तो दो बातें हैं। या तो आप संसार को बदलने में लगें; इसको हम जो आज ऊपर आएगा, कल नीचे जाएगा। जाना ही पड़ेगा। | मूढ़ता कहे। और या आप अपने को बदल डालें, इसे हम ज्ञान कहे। अन्यथा औरों के ऊपर आने का कोई उपाय नहीं होगा। और यह | आधुनिक चिंतन पूरी तरह संसार को बदलने पर जोर देता है और ऊपर आ सका इसीलिए, क्योंकि कोई नीचे चला गया। जो सत्ता | चीजों को ठहरा लेने पर जोर देता है। इसलिए इतना दुख है और में आएगा, वह सत्ता से नीचे जाएगा। जो अमीर होगा, वह गरीब | दुख रोज बढ़ता जाता है। आज का मन सुखी हो ही नहीं सकता, होगा। जो आज सफल है, कल असफल होगा। जो आज जिंदा है, | | क्योंकि उसकी सारी दृष्टि संसार पर है। कल मरेगा। लेकिन यह प्रक्रिया जारी रहेगी।
जैसे कोई आदमी नदी के किनारे खड़ा है और सोचता है कि नदी और अगर कोई इस प्रक्रिया को ठहराने की कोशिश में लग ठहर जाए। और नहीं ठहरती, इसलिए परेशान है। और जब तक न जाए, तो उसको हम अज्ञानी कहते हैं। जो इस प्रक्रिया की फिक्र ही ठहरेगी, तब तक वह दुखी होगा। क्योंकि उसकी धारणा है कि नदी
173|