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* गीता दर्शन भाग-7 *
तो बहुत अनूठा अनुभव हुआ। जेनोव एक बूढ़ी महिला की प्रथम को उपलब्ध होने से। चिकित्सा कर रहा था। उसकी उम्र थी अस्सी वर्ष। उसकी आंखें मेरी यह पूरी चेष्टा है कि ध्यान में पहली, प्राइमल स्क्रीम पैदा खराब हुए बीस साल हो गए थे। उसे कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता हो जाए और आपका रो-रोआं चीख उठे। और उस चीख में था। और जब जेनोव ने उसे याद दिलाया और वह वापस लौटने सारा उपद्रव विलीन हो जाए, जैसे तूफान के बाद सब शांत हो जाता लगी और उसने याद किया कि जब मैं छः वर्ष की थी, तब की मुझे | है, ऐसे पीछे सब शांत हो जाए। तो आपको मूल का पहली दफा एक घटना याद आती है। जैसे ही उस घटना को उसने स्मरण करना दर्शन होगा। और वह मूल परमात्मा है।
आंख की शक्ति वापस लौट आई। वह खद आगे दौडते जाने में नहीं पीछे प्रथम जो आप थे. उसे फिर से हैरान हो गई, क्योंकि उसे दिखाई पड़ने लगा। उसका चित्त ही छः | पा लेने में उपलब्धि है। यह विरोधाभासी लगेगा। जो आप सदा से वर्ष का नहीं हुआ, उस क्षण में उसका पूरा शरीर भूल गया कि वह रहे हैं, उसी को पा लेना गंतव्य है। और कुछ भी पाने की दौड़ व्यर्थ अस्सी साल की बूढ़ी स्त्री है। लेकिन चिकित्सा के बाद उसकी | | है। और कुछ भी पाने की दौड़ सिवाय संताप और चिंता के कुछ आंख फिर अस्सी साल की हो गई। सिर्फ धारणा...। भी न लाएगी। व्यक्ति जो पैदा हुआ है, उसी को पा ले। जो सदा
जेनोव कहता है कि जैसे-जैसे व्यक्ति पीछे लौटते हैं, उनका से था, उसको पुनः अनुभव कर ले। जो उसके होने के भीतर छिपा चेहरा बदलने लगता है। शांत हो जाता है, निर्दोष हो जाता है, जैसे | ही है, जिसे पाने को रत्तीभर भी कुछ करने की जरूरत नहीं है, जो बीच की सारी धूल हट गई, बीच का सारा कचरा कट गया। और | वह है ही, उसके पुनः दर्शन, उसकी पुनः उपलब्धि करनी है। जब कोई व्यक्ति उस क्षण में पहुंचता है, जिसको वह प्राइमल । हे अर्जुन, जिसका मूल ऊपर की ओर तथा शाखाएं नीचे की स्क्रीम कहता है. पहली जो रुदन की आवाज बच्चे को जन्म के ओर हैं. ऐसे संसाररूप पीपल के वक्ष को अविनाशी कहते हैं। समय हुई थी, जब बच्चा पैदा होता है, वह जो चीख की पहली और यह संसार कभी नष्ट नहीं होता, यह कभी विनष्ट नहीं होता। आवाज थी, जो पहली स्क्रीम थी, उसको जब कोई व्यक्ति फिर से लेकिन एक बड़े मजे की बात है कि यह प्रतिपल विनष्ट भी होता है। याद कर लेता है, और याद ही नहीं कर लेता, उसको पुनः जीता है, | यह विनष्ट होता है और बनता है, मिटता है और बनता है। और ठीक उसी तरह की चीख फिर से निकलती है...।
परमात्मा सदा है, वह भी अविनाशी है। लेकिन उसका इस चीख को लाने में महीनों लग जाते हैं। कोई तीन महीने. छः अविनाशी होना और ही अर्थ रखता है। वह कभी बनता नहीं, वह महीने निरंतर प्रयोग करने पर वह चीख निकलती है। पर जिस दिन सदा है; वह कभी मिटता नहीं। संसार भी अविनाशी है, लेकिन वह चीख निकलती है, उस चीख के साथ ही व्यक्ति के सारे दोष | बिलकुल दूसरे अर्थों में। यह सदा बनता और मिटता रहता है। यह विलीन हो जाते हैं। उस चीख के बाद वह व्यक्ति दूसरा ही हो जाता बनने और मिटने की प्रक्रिया का कभी अंत नहीं होता। यह संसार है-सरल, भोला, निर्दोष, जैसा वह पैदा हुआ था। जैसे उस चीख वर्तुलाकार घूमता ही रहता है। के साथ सारा जीवन विलीन हो गया, सारा पतन खो गया, मूल गंगोत्री से गंगा बहती है, सागर में गिरती है। लंबी यात्रा है, फिर उपलब्ध हो गया।
हजारों मील का फासला है। सागर में गिरकर फिर सूरज की किरणें इधर मैं ध्यान में निरंतर अनुभव कर रहा हूं कि जो लोग भी उस उसे आकाश में उठा लेती हैं। फिर भाप बनती है। फिर बादल गहरी चीख को ध्यान की अवस्था में उपलब्ध हो जाते हैं, उनके | उमड़-घुमड़कर हिमालय की तरफ जाना शुरू हो जाते हैं। फिर जीवन में पहली किरण समाधि की उतर जाती है।
हिमालय पर वर्षा हो जाती है। फिर गंगोत्री में पानी आ जाता है। मुझसे लोग पूछते हैं कि इतना चीखना-चिल्लाना ध्यान में क्यों | फिर गंगा बहने लगती है। फिर सागर; फिर बादल; फिर गंगोत्री; है? क्योंकि उन्हें खयाल है एक ही ध्यान का कि लोग चुप बैठे हैं। | फिर गंगा; फिर सागर। आप चुप भी बैठ जाएं, कुछ भी न होगा। क्योंकि आपका पागल ___ वर्तुलाकार संसार घूमता ही रहता है। इसलिए हमने इसे गाड़ी आदमी भीतर दौड़ रहा है; आपके चुप बैठने से कुछ होने वाला | के चाक की भांति कहा है। संसार शब्द का ही अर्थ होता है, चाक, नहीं। आप जीवनभर चुप बैठे रहें, आप बिलकुल पत्थर की मूर्ति | दि व्हील, जो घूमता ही रहता है। यह भी अविनाशी है। यह भी हो जाएं, तो भी बुद्धत्व फलित नहीं होगा। श्रेष्ठ उपलब्ध होगा | कभी मिटेगा नहीं। यह मिटेगा और बनेगा, बनेगा और मिटेगा,