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________________ * गीता दर्शन भाग-7 * इसीलिए एकदम धूप से आने पर आपको कमरे में अंधेरा | बड़े पद की तलाश करे, तो स्वामी होना चाहता है। त्याग करे, तो मालम पडता है. क्योंकि पतली छोटी रहती है। थोडी देर लगेगी. स्वामी होना चाहता है। वह कछ भी करे. उसकी खोज एक है कि तब पुतली बड़ी होगी। फिर कमरे में प्रकाश हो जाएगा। आपकी | वह मालिक हो जाए, चीजों पर उसका कब्जा हो। वह अपनी भी पुतली बिलकुल छोटी-बड़ी होकर प्रकाश को कम-ज्यादा भीतर खोज में निकले, तो भी स्वामी होना चाहता है। ले जाती है। भाव हम उसको कहते हैं, जिसको आपको सोचने की जरूरत स्टैनफोर्ड में उन्होंने एक प्रयोग किया कि अगर पुरुषों को कोई | नहीं पड़ती। जो आपके अचेतन में एक पर्त की तरह सदा बना हुआ भी चीज सबसे ज्यादा आकर्षित करती है, तो नग्न स्त्री के चित्र। है। आप कुछ भी करें, वह मौजूद है। नग्न स्त्री का चित्र सामने आए, तो उनकी आंख की पुतली एकदम अव्यभिचारी-भाव का अर्थ है, परमात्मा का खयाल, स्मृति, बड़ी हो जाती है। वह खोज की धुन आपके भीतर बजती रहे। आप कुछ भी करें, वह उनके बस में नहीं है। आप कोशिश करके धोखा नहीं दे करना ऊपर-ऊपर हो, वह धुन भीतर बजती ही रहे। तो आपका सकते। क्योंकि आप पतली को कछ नहीं कर सकते. न छोटी कर | सारा करना उसका भजन हो जाएगा। सकते हैं, न बड़ी कर सकते हैं। नंगा चित्र स्त्री का सामने आते ही और आप उसका भजन करते रहें और भीतर कोई और धुन पुतली एकदम बड़ी हो जाती है। बजती रहे, वह बेकार है। उसका कोई भी मूल्य नहीं है। लेकिन बड़े मजे की बात है कि नंगे पुरुष का चित्र देखकर स्त्री | ___ मुल्ला नसरुद्दीन एक रईस के घर नौकर हुआ, लखनऊ में। तो की पुतली बड़ी नहीं होती। लेकिन एक छोटे बच्चे का चित्र देखकर | जैसा कि लखनऊ के रईसों का रिवाज था, पहले ही दिन नसरुद्दीन एकदम बड़ी हो जाती है। छोटा बच्चा, और स्त्री की पुतली एकदम को कहा गया-महफिल बैठी रात, दस-बीस रईस इकट्ठे थे कि बड़ी हो जाती है। जैसे मां होना उसकी सहज गति है। | नसरुद्दीन हुक्का भर ला। __पुरुष की सहज गति पिता होना नहीं है; पति होना, स्वामी होना | नसरुद्दीन हुक्का भर लाया। लेकिन एक के सामने रखे। वह कहे, सहज गति है। तो कोई पुरुष किसी स्त्री को इसलिए विवाह नहीं| | किबला आप ही शुरू करें। दूसरे के सामने रखे। वह कहे, किबला करता कि पिता बनेगा। सोचता ही नहीं है। बनना पड़ता है, यह आप शुरू करें। दूसरी बात है। न बने, तब तक पूरी चेष्टा करता है। तीन दफा वह भर-भरके लाया। हुक्का बुझ जाए। और किसी ने लेकिन स्त्री जब भी सोचती है, तो वह पत्नी बनने के लिए नहीं | | एक निवाली भी न ली। चौथी दफा वह भरकर लाया। बीच में सोचती; वह मां बनने के लिए सोचती है। और जब वह किसी से | बैठकर उसने हुक्का गुड़गुड़ाना शुरू कर दिया। प्रेम भी करती है, तो उसको जो पहला खयाल होता है वह यही होता। ___ तो जो मालिक था, वह एकदम क्रोध से भर गया। उसने कहा, कि इससे जो बच्चा पैदा होगा, वह कैसा होगा! उसकी जो गहरी | | कोई है? इस बदतमीज को पच्चीस जूते लगाओ! नसरुद्दीन ने आकांक्षा है, वह मां की है। कहा, किबला आप ही शुरू करें। आपसे ही शुरू करें। वहीं से इसलिए मैं अपनी संन्यासिनियों को मां कहता हूं, क्योंकि वह शुरू करें। मैं नियम समझ गया। उनकी पूर्णता का अंतिम शब्द है। और पुरुष को स्वामी कहता हूं, | आपको आपके मन में नियम को ठीक से समझ लेना चाहिए। क्योंकि पति, मालिक होना उसकी आखिरी खोज है। वह अपना | | क्या नियम है? नियम यह है कि जो ऊपर चल रहा है, वह सार्थक जिस दिन मालिक हो जाएगा, उसकी खोज पूरी होगी। और स्त्री | | नहीं है। जो भीतर चल रहा है, वह सार्थक है। इसलिए परमात्मा की खोज उसी दिन पूरी होगी, जिस दिन सारा जगत उसे बेटे की | | को अगर ऊपर जोड़ दें आप, कोई मूल्य का नहीं है। भीतर जुड़ना तरह मालम पड़ने लगे: सारा अस्तित्व उसे बेटे की तरह मालम | चाहिए। एक। पड़ने लगे; सारे अस्तित्व से उसमें मातृत्व जग जाए। दूसरा नियम यह है कि आप व्यभिचारी हैं; आप हजार चीजें भाव का अर्थ है, जिस दिशा में आपकी अचेतन धारा सहज | खोज रहे हैं। इस हजार में परमात्मा भी हजार और एक हो जाए, तो बहती है। मां, स्त्री का भाव है। स्वामित्व, पुरुष का भाव है। वह | बेकार है। क्योंकि फिर वह व्यभिचार और बढ़ा, कम नहीं हुआ। कुछ भी करे; वह चाहे धन इकट्ठा करे, तो स्वामी होना चाहता है। | एक हजार चीजें पहले खोज रहे थे; उस लिस्ट में एक परमात्मा 164
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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