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* अव्यभिचारी भक्ति *
दिखता है, रोता हुआ दिखता है। फिर भी, जो आप हैं, उसके लिए | | और उसका छोटा बच्चा घम रहा है कमरे में। वह सब काम करती आप ज्यादा रोते हैं। जो आप नहीं हैं, उसका आपको अनुभव नहीं | रहती है, लेकिन उसका भाव बच्चे की तरफ लगा रहता है। वह है। आप सोचते हैं, सारा जगत सुख भोग रहा है, मेरे सिवाय। मैं | | कहां जा रहा है? वह क्या कर रहा है? वह गिर तो नहीं जाएगा? दुख भोग रहा हूं।
वह कोई गलत चीज तो नहीं खा लेगा? वह कोई चीज गिरा तो नहीं जहां भी आप हैं, वहां आप असंतुष्ट होंगे; यह व्यभिचारी मन | लेगा अपने ऊपर? वह सब काम करती रहेगी, लेकिन उसका का लक्षण होगा ही। क्योंकि कोई भी काम आप टोटल, समग्र अचेतन प्रवाहित रहेगा बच्चे की तरफ। चेतना से नहीं कर पाते हैं। और जो काम समग्र चेतना से होता है, मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि तफान भी आ जाए, आंधियां बह रही उसी का फल आनंद है।
हों. मां की नींद नहीं खलती। लेकिन उसका बच्चा जरा-सी आवाज अगर आप गड्डा भी खोद पाएं जमीन में समग्र चेतना से; उस कर दे रात, उसकी नींद खुल जाती है। तूफान चल रहा है, उससे गड्डा खोदते वक्त आपके पूरे प्राण कुदाली बन गए हों, और मन | | उसकी नींद नहीं टूटती। लेकिन बच्चे की जरा-सी आवाज, कि कहीं भी न जा रहा हो; सारा मन कुदाली में प्रविष्ट कर गया हो;| | उसकी नींद टूट जाती है। जरूर कोई भाव गहरे में, नींद में भी सरक गड्ढा खोदना ही एक क्रिया रह जाए और कहीं भी कोई दौड़ न हो,। उस क्षण में आपको जो परम अनुभव होगा, वह आपको बड़ी से | मनोवैज्ञानिकों ने बहुत-से अध्ययन किए हैं। उसमें एक बड़ी प्रार्थना और पूजा और यज्ञ में नहीं हो सकता। क्योंकि आप | अध्ययन बड़ा कीमती है। अभी स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में वे एक जब प्रार्थना कर रहे हैं, तब मन हजार तरफ जा रहा है। तो वह प्रयोग करते हैं। और उस प्रयोग से भारत की बड़ी पुरानी खोज कुदाली से जमीन खोदना प्रार्थना हो जाएगी।
| सिद्ध होती है। मुझसे भी लोग पूछते हैं, तो मैं वही प्रयोग उनको प्रार्थना का एक ही अर्थ है, अव्यभिचारी चित्त की धारा। वह स्मरण दिलाता हूं। किसी भी तरफ जा रही हो, पर इकट्ठी जा रही हो।
मुझसे लोग पूछते हैं, आप अपने संन्यासी को कहते हैं स्वामी जो पुरुष अव्यभिचारी भक्तिरूप योग के द्वारा, अव्यभिचारी प्रेम | | और अपनी संन्यासिनी को कहते हैं मां, ऐसा क्यों? संन्यासिनी को के द्वारा मझको निरंतर भजता है....।
मां क्यों और संन्यासी को स्वामी क्यों? या तो उसको भी स्वामिनी जिसके मन में निरंतर अंतिम की खोज का स्वर बजता रहता है। जैसा कोई शब्द दें; या संन्यासी को भी पिता क्यों नहीं?
भजने का अर्थ यह नहीं कि आप बैठकर राम-राम, राम-राम | स्टैनफोर्ड में अभी-अभी एक प्रयोग हुआ, जो बड़ा सोचने जैसा कर रहे हैं। क्योंकि आपके राम-राम करने का कोई मूल्य नहीं है। | है। वह प्रयोग यह है कि जिस चीज में आपका रस होता है, उस रस जब आप राम-राम कर रहे होते हैं, तब भीतर आप और दूसरी चीजें | के कारण आपकी आंख की जो पुतली है, वह बड़ी हो जाती है। भी कर रहे होते हैं। धीरे-धीरे अभ्यास हो जाता है। राम-राम करते __ अगर आप कोई किताब पढ़ रहे हैं, जिसमें आप बहुत ज्यादा रस रहते हैं, और दूसरे हिसाब भी लगाते रहते हैं। राम-राम पा रहे हैं, तो कमरे में बिलकुल भी कम से कम प्रकाश हो, तो भी ऊपर-ऊपर चलता रहता है, जैसे कि कोई और कर रहा हो। और आप पढ़ पाएंगे। क्योंकि आपकी आंख की पुतली बड़ी हो जाती भीतर सब हिसाब चलते रहते हैं। तो उसका कोई मूल्य नहीं है। । है, आपकी जिज्ञासा के कारण, आपके रस के कारण। और अगर
भजने का अर्थ है-भजन बड़ी गहरी प्रक्रिया है उसका अर्थ | आपको किताब में रस नहीं है, तो कमरे में प्रकाश भी पूरा हो, तो है, मेरे रोएं-रोएं में रस की तरह कोई चीज डोलती रहे। उर्ले, बैलूं, । । | भी आपको धुंधला-धुंधला दिखाई पड़ेगा। क्योंकि रस नहीं होता, चलूं, बाकी एक स्मृति सजग ही रहे कि उस परम को उपलब्ध | तो आंख की पुतली छोटी हो जाती है। करना है, सत्य को खोज लेना है, मुक्ति को खोज लेना है। ये कोई | ___ आंख की पुतली चौबीस घंटे छोटी-बड़ी होती है। जब आप शब्द बनें, यह आवश्यक नहीं है। इनको कोई ऊपर के शब्दों में बाहर जाते हैं धूप में, तो पुतली छोटी हो जाती है, क्योंकि उतनी छिपाने की जरूरत नहीं है। यह भीतर का भाव रहे। इसलिए इसे धूप को भीतर ले जाने की जरूरत नहीं है। कम से काम चल जाता भक्ति कहेंगे। भक्ति का अर्थ है, भाव। यह भाव बना रहे। । | है। जब आप बाहर से भीतर आते हैं, तो पतली बड़ी होती है, जैसे मां घर में काम कर रही हो, वह चौके में काम कर रही है। क्योंकि अब ज्यादा रोशनी भीतर जानी चाहिए।
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