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* गीता दर्शन भाग-7*
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इसलिए बड़ा द्वंद्व है और बड़ी कलह है। क्योंकि एक ही व्यक्ति | व्यभिचारी को कोई शांति नहीं। हो नहीं सकती। अव्यभिचारी को इतनी दिशाओं में भागना पड़ रहा है। जैसे एक ही बैलगाड़ी में | इसीलिए बड़ी मूल्यवान बात है। हमने सब तरफ बैल जोत दिए हैं। आठों दिशाओं में बैल जा रहे कृष्ण कहते हैं, जब तक कोई अव्यभिचारी-भाव से सत्य की हैं। बैलगाड़ी कहां जाए? तो जब भी कोई बैल जरा ताकत ज्यादा ओर, स्वयं की ओर, सच्चिदानंदघन परमात्मा की ओर न बहे, तब लगा देता है या दूसरा बैल थोड़ा ढीला और शिथिल होता है या तक कोई उपलब्धि नहीं है। विश्राम कर रहा होता है या ज्यादा ताकत पहले लगा चुका होता है और ध्यान रहे, अगर आप अव्यभिचारी हैं, तो एक ही क्षण में और अब ताकत नहीं बचती, तो बैलगाड़ी को थोड़ी देर कोई पूरब भी उपलब्धि हो सकती है। क्योंकि जब सारी शक्ति एक दिशा में की तरफ खींच लेता है।
बहती है, तो सब बाधाएं टूट जाती हैं। लेकिन यह थोड़ी देर हो सकता है। क्योंकि जो पूरब की तरफ | बाधाएं हैं ही नहीं। बाधाएं खड़ी हैं, क्योंकि आप बहुत दिशाओं खींच रहा है, वह थक जाएगा खींचने में। और पश्चिम की तरफ | में बह रहे हैं। इसलिए आपकी शक्ति ही इकट्ठी नहीं हो पाती, जो जो बैल बंधा हुआ है, जो कि इस खिंचने में जा रहा है, वह थकेगा किसी भी दिशा में बह सके। नहीं। वह थोड़ा ढील दे रहा है, विश्राम कर रहा है। जब उसकी जैसे हम गंगा को हजार हिस्सों में बांट दें और गंगा का कोई भी ताकत इकट्ठी हो जाएगी और पूरब की तरफ ले जाने वाला बैल थक | हिस्सा फिर सागर तक न पहुंच पाए। सारी गंगा रेगिस्तानों में खो जाएगा, तब वह पश्चिम की तरफ बैलगाड़ी को खींचेगा। | जाए। गंगा के लिए कोई बाधा नहीं है। लेकिन अविभाज्य धारा
ऐसे आप जिंदगीभर खिंचेंगे बहुत, पहुंचेंगे कहीं भी नहीं। चाहिए। गंगा इकट्ठी हो, तो ही सागर तक पहुंच सकती है। और बैलगाड़ी आखिर में वहीं अस्थिपंजर टूटे हुए पड़ी मिलेगी, जहां | आप भी इकट्ठे हों, तो ही परमात्मा तक पहुंच सकते हैं। शुरू में खड़ी थी।
लेकिन जैसा हमारा मन है, उसमें बड़ी तकलीफ है। उसकी ऐसा हमारा मन है, व्यभिचारी मन है। इसमें कभी एक बात ठीक पहली तकलीफ तो यह है कि वह इकट्ठा कभी भी नहीं है, एकजुट लगती है, कभी उससे विपरीत बात ठीक लगती है। अभी धन कमा | कभी भी नहीं है; खंड-खंड है, टूटा-टूटा है। और जब एक खंड रहे हैं; और तभी कोई आ जाता है कि आप! आप जैसा यशस्वी | कहता है, यह करो, तभी दूसरा खंड कुछ और कह रहा है कि यह पुरुष! आपके नाम से तो एक धर्मशाला बननी ही चाहिए। मत करो। तो हम जो भी करें, उसी से पछतावा हाथ लगता है। और अभी धन इकटा कर रहे थे. अब यह गाय का भी
रहे थे; अब यह नाम का भी मोह पकड़ता जो भी हम न करें, उसका भी पछतावा रह जाता है कि वह हमने है कि एक धर्मशाला तो कम से कम होनी ही चाहिए, जिस पर एक क्यों न कर लिया। पट्टी तो लगी हो। एक मंदिर बनवा दूं। बिरला का मंदिर है; मेरा ___ हम दुख ही इकट्ठा करते हैं, करें तो, न करें तो। आप धन क्यों न हो! अभी धन पकड़े था; अब यह धन खर्चा करने का काम | | कमाएं, तो दुखी होंगे। क्योंकि आप धन कमाकर पाएंगे कि इससे है। यह आपके मन के विपरीत है मामला। लेकिन इससे यश तो अच्छा था, मैंने ज्ञानार्जन किया होता, तो कुछ सुख तो मिलता। मिलता है, नाम मिलता है।
या इससे तो अच्छा था कि मैं किसी बड़े पद पर हो गया होता; सारी __ अब ये मंदिर बनाएंगे। मंदिर बनाते-बनाते यह बैल थक | | ताकत उस तरफ लगा दी होती। एक राजनेता हो गया होता। कुछ जाएगा। और मंदिर बन भी नहीं पाएगा, उसके पहले ही आप ब्लैक | सुख तो मिलता। मार्केटिंग और जोर से करने लगेंगे। क्योंकि वह जितना पैसा खर्च | | राजनेता हो जाते, तो सोचते, इससे तो बेहतर था, कुछ धन ही हो गया, उसको पैदा करना है। तो इधर मंदिर बन नहीं पाता कि वह | कमा लेते। यह तो व्यर्थ की दौड़-धूप है। ज्ञान इकट्ठा कर लेते, तो आदमी जोर से और जेब काटने लगेगा; चोरी और करने लगा; | | कहते, क्या हुआ! शब्द ही शब्द हाथ में लग गए। कुछ मजबूत स्मगलिंग करेगा। कुछ उपाय करेगा जल्दी से, ताकि यह जो मंदिर हाथ में नहीं है। कुछ सब्स्टेंशियल, कुछ सारभूत नहीं दिखता। में लग गया है, इससे दस गुना पैदा कर ले।
सभी रोते हुए दिखाई पड़ते हैं। वह जो ज्ञान इकट्ठा कर लेते हैं, यह चल रहा है। यह पूरे वक्त आपके मन को पकड़े हुए है। यह वे रो रहे हैं। धन इकट्ठा कर लेते हैं, वे रो रहे हैं। पद इकट्ठा कर विभिन्न दिशाओं में दौड़ता हुआ मन व्यभिचारी मन है। और लेते हैं, वे रो रहे हैं। हंसता हुआ आदमी ही नहीं दिखता। जो भी
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