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* अव्यभिचारी भक्ति *
ली है। वह लौटकर भी नहीं देख रहा है। लेकिन बुद्ध खड़े हैं। और है, ताकि अनुभवों से गुजरकर परिपक्व हो जाए। वे कहते हैं, इस समय आनंद को सहायता की जरूरत है। तो मैं तो कहूंगा, सब अनुभव भोग लें, बुरे को भी। अगर जरा
सारिपुत्त कहता है, आप भी अनूठी बातें करते हैं। जब वेश्या भी रस हो बरे में, तो उसको भी भोग लें। बस इतना ही खयाल रखें सामने खड़ी थी और आनंद उसको देख रहा था और डर था कि वह कि भोगते समय में भी होश बना रहे, तो आप मुक्त हो जाएंगे। लोभित हो जाए, मोहित हो जाए, तब आप चुपचाप बैठे रहे। और और अगर आप डरे, जिम्मेवारी से बचना चाहा, तो वासनाएं विकृत अब जब कि आनंद भाग रहा है, और वेश्या दूर रह गई है, और हो जाएंगी और भीतर मन में घूमती रहेंगी। उसके मंत्र-तंत्र पीछे पड़े रह गए हैं, और उसके प्रभाव का क्षेत्र पार | उन विकृत वासनाओं के परिणाम कभी भी मुक्तिदायी नहीं हैं। कर गया है आनंद, और आनंद लौटकर भी नहीं देख रहा है, तो स्वास्थ्य से तो कोई मुक्त हो सकता है, विकृति से कोई मुक्त नहीं अब आपके खड़े होने की क्या जरूरत है?
हो सकता। बुद्ध ने कहा, वह भाग ही इसलिए रहा है कि साक्षी-भाव खो | तो सहज हों, स्वाभाविक हों। और जो भी मन में उठता हो, गया। अब वह कर्ता-भाव में आ गया है। और कर्ता की वजह से | उसको उठने दें, उसको पूरा भी होने दें। सिर्फ एक ही बात खयाल डरा हुआ है। और अब वह डर रहा है। जब तक साक्षी था, तब रखें कि पीछे एक देखने वाला भी खड़ा रहे और देखता रहे। तक खड़ा था, डर के कोई कारण भी न थे। अब उसको सहायता आपकी पूरी जिंदगी एक नाटक हो जाए और आप उसको देखते की जरूरत है।
रहें। यह देखना ही सारी जिंदगी को बदल देगा। यह बड़ा क्रांतिकारी एक ही बात करने जैसी है कि आपके भीतर साक्षी-भाव बना सूत्र है, देखने के द्वारा पूरी जिंदगी को बदल लेना।। रहे। फिर आप कुछ भी करें, विवाह करें, न करें, कुछ भी करें, भागने के द्वारा कोई कभी नहीं बदलता। भागने से सिर्फ साक्षी-भाव आपके अनुभव में जुड़ा रहे, तो आप आज नहीं कल कमजोरी जाहिर होती है। और भागे हुए आदमी की वासनाएं पीछा अपनी मक्ति की सीढियां परी कर लेंगे।
करती हैं। वह जहां भी चला जाए. वासनाएं उसके पीछे होंगी। लेकिन ध्यान रहे, अधूरे और कच्चे अनुभवों को रोकने का | __ अब हम सूत्र को लें। परिणाम विषाक्त होता है। भागें मत; डरें मत; साक्षी को ही सम्हालें। और जो पुरुष अव्यभिचारी भक्तिरूप योग के द्वारा मेरे को मेरा सारा जोर इस बात पर है कि आप जागें, बजाय भागने के। निरंतर भजता है, वह इन तीनों गुणों को अच्छी प्रकार उल्लंघन भागकर कहां जाएंगे? विवाह न करें, यह हो सकता है। लेकिन करके सच्चिदानंदघन ब्रह्म में एकीभाव होने के लिए योग्य होता है। कितने लोग विवाह न करने से कुछ कहीं पहुंच नहीं जाते। विवाह न तथा हे अर्जुन, उस अविनाशी परब्रह्म का और अमृत का तथा
करने का परिणाम चित्त में और वासनाओं का जाल होता है। नित्य धर्म का और अखंड एकरस आनंद का मैं ही आश्रय हूं। .. अगर एक विवाहित और एक अविवाहित आदमी की जांच की | | पहली बात, जो पुरुष अव्यभिचारी भक्तिरूप योग के द्वारा...।
जाए बैठकर, तो अविवाहित आदमी के मन में ज्यादा वासना । व्यभिचार का अर्थ है, जहां मन में बहुत दिशाएं हों; जहां मन में मिलेगी। स्वाभाविक है। जैसे एक भूखे आदमी की और भोजन | बहुत प्रेम-पात्र हों; जहां मन में बहुत खंड हों। विभाजित मन किए आदमी की जांच की जाए, तो भूखे आदमी के मन में भोजन | व्यभिचारी मन है। अव्यभिचारी भक्तिरूप का अर्थ है कि मन का ज्यादा ख़याल मिलेगा। जिसका पेट भरा है, उसके मन में | | एकजुट हो, इकट्ठा हो। एक ही धारा में बहे, एक ही दिशा की तरफ भोजन का खयाल क्यों होगा!
प्रवाहित हो, तो अव्यभिचारी है। तो जब तक आपको भीतर का साक्षी ही न जगने लगे, तब तक __ संसार में हमारा मन बहुत तरफ बह रहा है। संसार में हम सभी जीवन के किसी अनुभव से अकारण अधूरे में, अधकचरे में भागना | व्यभिचारी हैं। मन का एक हिस्सा धन के लिए दौड़ रहा है। मन उचित नहीं है। उस भय से कोई किसी सिद्धि को प्राप्त नहीं होता। | का दूसरा हिस्सा पद के लिए दौड़ रहा है। मन का तीसरा हिस्सा है। सारा जीवन अनुभव के लिए है। यह ऐसा ही है, जैसे हम किसी | | यश के लिए दौड़ रहा है। मन का चौथा हिस्सा धर्म के लिए दौड़ विद्यार्थी को विश्वविद्यालय भेज दें और वह वहां परीक्षाओं से रहा है। पांचवां हिस्सा कुछ और; छठवां कुछ और। आपके भीतर बचने लगे। यह संसार परीक्षालय है। वहां आपकी चेतना इसीलिए एक भीड़ है। और सभी अलग-अलग भागे जा रहे हैं।
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