SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * गीता दर्शन भाग-7 * देखा, तो बहुत चकित रह गया। बूढ़ा नसरुद्दीन एक अति सुंदर स्त्री | हो जाएंगे। अनुभव और साक्षी का भाव संयुक्त हो, तो आप मुक्त को अपनी गोद में बिठाए हुए है। उसने मन में सोचा कि मेरा गुरु! हो जाएंगे। अकेला अनुभव हो, तो आपकी आदत और गहरी होती और यह तो सदा विपरीत बोलता था स्त्रियों के और ब्रह्मचर्य के जाएगी। और फिर आदत के वश आप दौड़ते रहेंगे। और अकेला बड़े पक्ष में समझाता था। यह क्या हो गया। लेकिन तब उसे तत्क्षण | साक्षी-भाव हो और अनुभव से बचने का डर हो, तो वह साक्षी-भाव खयाल आया उसके अचेतन से कि नहीं-नहीं, यह परमात्मा का | कमजोर और झूठा है। क्योंकि साक्षी-भाव को कोई भय नहीं है। न दिया गया पुरस्कार होगा, यह जो स्त्री है। मेरे गुरु ने इतनी साधना किसी चीज के करने का भय है, और न न करने का भय है। की और इतनी तपश्चर्या करता था और इतना ज्ञानी था कि जरूर | साक्षी-भाव को कर्म का प्रयोजन ही नहीं है। जो भी हो रहा है. उसको पुरस्कार में यह सुंदरतम स्त्री मिली है। उसे देखता रहेगा। तो साक्षी मंदिर में बैठा हो कि वेश्यालय में, कोई तो वह भागा हुआ गया। उसने कहा, धन्यभाग; और परमात्मा | फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि साक्षी का काम सिर्फ देखने का है। का अनुग्रह; प्रभु की कृपा; कैसा पुरस्कार तुम्हें मिला! नसरुद्दीन ___ कथा है बौद्ध साहित्य में, आनंद एक गांव से गुजर रहा ने कहा, पुरस्कार? यह मेरा पुरस्कार नहीं है; इस स्त्री को मैं दंड | है-बुद्ध का शिष्य। और कथा है कि एक वेश्या ने आनंद को की तरह मिला हूं। शी इज़ नाट माई प्राइज; आई एम हर पनिशमेंट। | | देखा। आनंद संदर था। संन्यस्त व्यक्ति अक्सर संदर हो जाते हैं। लेकिन उस शिष्य के मन में, अचेतन में, यह खयाल आ जाना | और संन्यस्त व्यक्तियों में अक्सर एक आकर्षण आ जाता है, जो कि यह पुरस्कार मिला होगा, इस बात की खबर है कि वासना | | गृहस्थ में नहीं होता। एक व्यक्तित्व में आभा आ जाती है। कायम है और इसको पुरस्कार मानती है। वह वेश्या मोहित हो गई। और कथा यह है कि उसने कुछ इसलिए ऋषि-मुनि भी स्वर्ग में किस पुरस्कार की आशा कर रहे | | तंत्र-मंत्र किया। बुद्ध देख रहे हैं दूर अपने वन में वृक्ष के नीचे बैठे। हैं? अप्सराएं, शराब के चश्मे, कल्पवृक्ष, उनके नीचे ऋषि-मुनि दूर घटना घट रही है, आनंद बहुत दूर है, लेकिन कथा यह है कि बैठे हैं और भोग रहे हैं! बुद्ध देख रहे हैं। बुद्ध देख सकते हैं। वे देख रहे हैं। बुद्ध के पास तो जो आप छोड़ रहे हैं. वह छोड़ नहीं रहे हैं। वह कछ सौदा है। सारिपत्त, उनका शिष्य भी बैठा हआ है। वह भी देख रहा है। गहरा और उसमें पुरस्कार की आशा कायम है। यह इस बात की। सारिपुत्त बुद्ध से कहता है, आप आनंद को बचाएं। वह किसी सूचना है कि ये मन विकृत हैं। ये स्वस्थ मन नहीं हैं। मुश्किल में न पड़ जाए। क्योंकि स्त्री बड़ी रूपवान है और उसने जिन-जिन के स्वर्ग में अप्सराओं की व्यवस्था है, उन-उन का बड़ा गहरा तंत्र-मंत्र फेंका है। और आनंद कहीं ठगा न जाए। ब्रह्मचर्य परवटेंड है, विकृत है। और जिन्होंने स्वर्ग में शराब के | लेकिन बुद्ध देखते रहते हैं। चश्मे बहाए हैं, उनके शराब का त्याग बेईमानी है, झूठा है। जो वे | अचानक बुद्ध उठकर खड़े हो जाते हैं और सारिपुत्त से कहते हैं, यहां नहीं पा सकते या यहां जिसको छोड़ने को कहते हैं, वहां अब कुछ करना होगा। सारिपुत्त कहता है, अब क्या हो गया जो उसको पाने का इंतजाम कर लेते हैं। यह मन की दौड़ साफ है। यह आप करने के लिए कहते हैं ? अब तक मैं आपसे कह रहा था, कुछ गणित सीधा है। करें। आप चुप बैठे रहे। जो बीमारी शुरू हुई, उसे पहले ही रोक तो मैं तो कहूंगा कि बजाय वासना को दबाने, विकृत करने के | देना उचित है! साक्षी-भाव से उसमें उतर जाना उचित है। संसार एक अवसर है। ___ बुद्ध ने कहा, बीमारी अब तक शुरू नहीं हुई थी; अब शुरू हुई यहां जो भी है, अगर उसका जरा भी मन में रस है, तो उसमें उतर है। आनंद मूर्छित हो गया; साक्षी-भाव खो गया। अभी तक कोई जाएं, भागें मत। नहीं तो वह स्वर्ग तक आपका पीछा करेगा। डर नहीं था। वेश्या हो, सुंदर हो, कुछ भी हो, अभी तक कोई भय आखिरी क्षण तक आपका पीछा करेगा। उसमें उतर ही जाएं। | न था। और आनंद उसके घर में चला जाए; रात वहां टिके; कोई उसका अनुभव ले ही लें। भय की बात नहीं थी। अब भय खड़ा हो गया है। अनुभव मुक्तिदायी है, अगर होश कायम रखें। नहीं तो अनुभव | लेकिन सारिपुत्त बड़ा चकित है, क्योंकि आनंद अब भाग रहा पुनरुक्ति बन जाता है और नए चक्कर में ले जाता है। है। वेश्या बहुत दूर रह गई है। जब बुद्ध कहते हैं, भय हो गया है, इसलिए मैं यह नहीं कह रहा हूं कि मात्र अनुभव से आप मुक्त तब आनंद वेश्या से दूर निकल गया है भागकर और उसने पीठ कर 160/
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy