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* अव्यभिचारी भक्ति
एक स्त्री, एक पुरुष से बंध गए। और वासना बंधना नहीं चाहती; वासना उन्मुक्त रहना चाहती है।
तो विवाह न करने की इच्छा जरूरी नहीं है कि ब्रह्मचर्य की इच्छा हो । विवाह न करने की इच्छा बहुत गहरे में अब्रह्मचर्य की इच्छा भी हो सकती है।
फिर विवाह न करने की इच्छा के पीछे हजार कारण होते हैं। विवाह एक जिम्मेवारी है, एक उत्तरदायित्व है। सभी लोग उठाना भी नहीं चाहते। बहुत चालाक हैं, वे बिलकुल नहीं उठाना चाहेंगे। कौन उस झंझट में पड़े !
लेकिन वासना का न होना दूसरी बात है। विवाह का वासना से कोई लेना-देना नहीं है। बिना वासना के आदमी विवाह कर सकता है, किन्हीं और कारणों से।
एक नौकरानी रखना भी महंगा है घर में एक पत्नी से ज्यादा सस्ता कोई भी उपाय नहीं है। बिना वासना के आदमी विवाह कर सकता है। और वासना से भरा हुआ आदमी विवाह से बच सकता है। इसलिए विवाह और वासना को पर्यायवाची न समझें।
`चारों तरफ विवाह का दुख दिखाई पड़ता है। जिसमें थोड़ी भी बुद्धि है, वह विवाह से बचना चाहेगा।
मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी उससे पूछ रही है कि क्या नसरुद्दीन, कभी तुम्हारे मन में ऐसा भी खयाल उठता है कि मुझसे तुमने विवाह न किया होता तो अच्छा होता ? या ऐसा खयाल उठता है कभी कि मैंने — नसरुद्दीन की पत्नी ने - किसी और से विवाह कर लिया होता, तो अच्छा था ?
नसरुद्दीन ने कहा कि मैं किसी दूसरे का बुरा क्यों चाहने लगा ! . एक भावना जरूर मन में उठती है कि तू अगर सदा कुंआरी रहती तो अच्छा था।
तो चारों तरफ विवाह आप देख रहे हैं। वहां जो दुख फैला हुआ है। हर बच्चे को उसके घर में दिखाई पड़ रहा है, उसके मां-बाप का दुख; बड़े भाइयों, उनकी पत्नियों का दुख । विवाह एक नरक है, चारों तरफ फैला हुआ है। बड़ी गहरी वासना है, इसलिए हम फिर भी विवाह में उतरते हैं। नहीं तो बहुत मुश्किल हो जाएगा। अंधे हैं बिलकुल, शायद इसलिए। बिलकुल समझ से नहीं चलते। या हर आदमी को एक खयाल है भीतर कि मैं अपवाद हूं। इसलिए सब लोग दुख भोग रहे हैं, मैं थोड़े ही भोगूंगा। हर आदमी को यह खयाल है।
अरब में कहावत है कि परमात्मा हर आदमी को बनाकर उसके
कान में एक बात कह देता है कि तुझे मैंने अपवाद बनाया है। तेरे | जैसा मैंने कोई बनाया ही नहीं। तू नियम नहीं है; तू एक्सेप्शन है। और हर आदमी इसी वहम में जीता है।
आप अपने जैसे पचास आदमियों को मरते देखें उसी गड्ढे में । आप अकड़ से चलते जाएंगे कि मैं थोड़े ही! मैं बात ही अलग हूं। | इस अपवाद के कारण आप विवाह में उतरते हैं। नहीं तो आंख खोलने वाली है, विवाह की घटना चारों तरफ घटी हुई है। उसमें कहीं कोई छिपा हुआ नहीं है मामला।
तो जरा भी समझ होगी, तो आपमें विवाह की सहज इच्छा न पैदा होगी। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं हुआ कि आपमें ब्रह्मचर्य की इच्छा पैदा हो रही है। ब्रह्मचर्य बड़ी दूसरी बात है। अकाम बड़ी दूसरी बात है।
यह जो अकाम है, अगर वह सहज है, तो यह प्रश्न ही नहीं उठेगा। फिर कहीं जाने का कोई सवाल नहीं है, किसी अनुभव में उतरने की जरूरत नहीं है। जिस बात की मन में वासना नहीं उठ रही, उसके अनुभव में उतरने का प्रयोजन क्या है ? और अनुभव में उतरूं या न उतरूं, यह भी खयाल क्यों उठेगा ?
साफ है कि वासना भीतर मौजूद है। विवाह की जिम्मेवारी लेने का मन नहीं है। मन चालाक वह होशियारी की बातें कर
रहा है।
तो मैं कहूंगा कि अगर मन में वासना हो, तो वासना में उतरना ही उचित है । उतरने का मतलब यह नहीं है कि आप साक्षी - भाव खो दें। उतरें और साक्षी भाव कायम रखें। उतरेंगे, तभी साक्षी भाव को कसौटी भी है। और अगर नहीं उतरे, तो साक्षी भाव तो साधना मुश्किल है। और वासना सघन होती जाएगी; और मन में चक्कर काटेगी; और मन को अनेक तरह की विकृतियों में, परवरशंस में ले जाएगी।
जिनको हम साधु-संत कहते हैं, आमतौर से विकृत मनों की अवस्था में पहुंच जाते हैं।
मुल्ला नसरुद्दीन मरा। उसके बहुत शिष्य भी थे। इस दुनिया में शिष्य खोजना जरा भी कठिन मामला नहीं है। अनेक लोग उसे मानते भी थे। कुछ दिनों बाद उसका एक शिष्य भी मरा । तो जाकर | उसने पहला काम स्वर्ग में तलाश का किया कि नसरुद्दीन कहां है। पूछा- तांछा तो किसी ने खबर दी कि नसरुद्दीन वह सामने जो एक | सफेद बदली है, उस पर मिलेगा।
भागा हुआ शिष्य अपने गुरु के पास पहुंचा। वहां जाकर उसने
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