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* गीता दर्शन भाग-7 *
तनी ही दूरी
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बड़े मजे की बात है। क्योंकि जब आप बेहोशी के प्रति होश भी आप कुछ करने लगे, तो कर्ता आ गया। और जो भी हो रहा है, रखेंगे, तो बेहोशी टिक नहीं सकती।
उसे आप देखते रहे, तो साक्षी रहा। सहज होश को रखो। उठते-बैठते, चलते-सोते, जो भी हो रहा । जो भी हो रहा है, होने दें। ऐसा समझें कि जैसे किसी और को हो। कभी-कभी सपना मन को पकड़ लेगा, तो पकड़ लेने दो। | हो रहा है। आप जैसे किसी नाटक को देख रहे हैं। किसी और पर कभी-कभी भूल जाएंगे, तो भूल जाओ। इससे अड़चन खड़ी मत | | कहानी बीत रही है। दूरी! उसमें इतने ज्यादा डूबें मत। उसकी करो: इससे तनाव मत बनाओ। साक्षी-भाव के सहज सत्र को वासना न बनाएं। नहीं तो हम सोचते हैं पहले कि जैसे और चीजें स्फुरित होने दो।
मिल जानी चाहिए, साक्षी-भाव भी मिल जाना चाहिए। उसकी धीरे-धीरे. एक-एक. दो-दो क्षण करके वह झरना फटेगा। और वासना बनाते हैं। जितने जोर से हम वासना बनाते अगर सहज रहे, तो वह झरना बंद नहीं होगा; बड़ा होता जाएगा। | हो जाती है। और अगर झपट्टा मारकर उसको पकड़ा, तो वे जो दो बूंद आ रही | | साक्षी-भाव आपके लाने से नहीं आएगा। आपके मिट जाने से थीं, वे भी बंद हो जाएंगी।
आएगा। और मिटने की सुगमतम कला एक ही है कि आप करने कुछ चीजें हैं, जिनको झपट्टे से नहीं पकड़ा जा सकता। उसमें वे | | के साथ अपने को मत जोड़ें; सिर्फ देखने के साथ जोड़ें। मर जाती हैं। वे बहुत कोमल हैं। अति कोमल हैं। बहुत डेलिकेट । इसलिए हमने परम साधना के सूत्र को इस मुल्क में दर्शन कहा हैं, नाजुक हैं। उनको पत्थर की तरह हाथ में नहीं लिया जा सकता। | है। दर्शन का मतलब है, सिर्फ देखने की कला। जरा भी कुछ न करें।
लेकिन हमारी आदत हर चीज को पत्थर की तरह हाथ में लेने की है। इसलिए जब फूल पर भी हमारा हाथ पड़ता है, तो हम पत्थर की तरह ही हाथ में ले लेते हैं। उसमें ही फूल मर जाता है। अंतिम प्रश्नः कामवासना के पार जाने के लिए
और साक्षी-भाव सबसे नाजुक फूल है। उससे ज्यादा नाजुक इस अविवाहित रहने की सहज इच्छा रखने वाला साधक जगत में कोई भी चीज नहीं है। वह सर्वाधिक नाजुक है। उससे साक्षी-भाव को साधे या वासना में उतरकर उसकी ज्यादा कोमल फिर कुछ भी नहीं है। इसलिए उसको आप झपट्टा व्यर्थता या सार्थकता को जान ले? अविवाहित रहने मारकर नहीं पकड़ सकते। उसको आपको सहजता से आने देना | की सहज इच्छा क्या इस तथ्य को इंगित नहीं करती होगा। आपको चुपचाप प्रतीक्षा करनी होगी। और अगर वह न | कि इसकी व्यर्थता को उसने अपने पिछले जन्मों की आए, जैसा पूछा है, कि अभी भी दूर खड़ा मालूम पड़ता है; तो | यात्रा में बहुत दूर तक जान लिया है? क्या कृपा करके बताएं कि मेरी भूल क्या है ? उसे दूर खड़ा रहने दें और | साक्षी-भाव बिना उसकी पूर्ण व्यर्थता जाने नहीं साधा देखते रहें। उसको पास लाने की फिक्र मत करें। सिर्फ देखने की जा सकता? फिक्र करें कि वह दूर खड़ा है। देखते रहें। उसको पास लाने की कोशिश में कर्ता-भाव आ जाएगा और साक्षी-भाव खो जाएगा। क्योंकि आप कर्म की फिर जिज्ञासा करने लगे।
हली बात, अविवाहित होने की सहज इच्छा और ___अनंत जीवन तक भी वह खड़ा रहे साक्षी-भाव क्षितिज की तरह |
अकाम, एक ही बात नहीं हैं। अगर वासना ही न और आपको न मिले, तो भी जल्दी मत करें। और जिस दिन आप
उठती हो, तब तो कोई सवाल नहीं है। तब तो यह अपनी जगह खड़े रहेंगे और वह अपनी जगह खड़ा रहेगा और | सवाल भी नहीं उठेगा। वासना ही न उठती हो, तो यह सवाल ही कोई भाग-दौड़ नहीं होगी, अचानक आप पाएंगे कि वह आपके | कहां उठता है! भीतर खड़ा है, दूरी मिट गई। लेकिन दूरी मिटाई नहीं जा सकती। | ___ अविवाहित रहने की इच्छा और वासना का न उठना अलग बातें आप दौडकर नहीं मिटा सकेंगे। क्योंकि दौडने का मतलब है. | हैं। अविवाहित तो बहत-से लोग रहना चाहते हैं। वस्ततः तो जो कर्ता आ गया।
ठीक वासना से भरे हैं, वे विवाह से बचना चाहेंगे, क्योंकि विवाह यह कर्ता और साक्षी शब्दों का फासला ठीक से समझ लें। जब | उपद्रव है वासना से भरे आदमी के लिए। विवाह का मतलब है.
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