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* अव्यभिचारी भक्ति *
और साक्षी-भाव को अगर आप कर्म बना लेंगे, तब तो फिर करूंगा। तो आप अकड़ जाएंगे और अकड़कर देखेंगे; वह कर्तृत्व आपको इसको भी देखना पड़ेगा। इसके पीछे फिर आपको पुनः हो गया, साक्षी-भाव खो गया। साक्षी होना पड़ेगा। साक्षी अंतिम है, उसके पीछे जाने का कोई साक्षी-भाव तो सहज है। उसके लिए अकड़ नहीं चाहिए। उपाय नहीं है। इसलिए आप साक्षी-भाव को कर्म मत बनाएं, उसे | उसके लिए कोई करने की बात नहीं चाहिए। करने का कोई सवाल सहज रहने दें।
ही नहीं है। जरा कठिन है, क्योंकि हम सब चीज को कर्म बना लेते हैं। हम | मगर क्या करें आप! साक्षी-भाव पास में नहीं है, तो आप तो साक्षी-भाव को भी साधने लगते हैं।
करेंगे ही। जब तक आप करेंगे, तब तक साक्षी-भाव नहीं सधेगा। यह वैसा ही है, जैसे किसी आदमी को मैं कहूं कि नींद को लाने | | इसीलिए आप कहते हैं, संभवतः साक्षीत्व का प्रयोग कर रहा हूं। के लिए कुछ करना नहीं पड़ता। और उसको नींद नहीं आती। वह | | नहीं तो संभवतः का खयाल नहीं आएगा। अगर साक्षी का प्रयोग मुझसे पूछेगा, यही तो मेरी समस्या है कि मुझे नींद नहीं आती। मैं | | हो रहा है, तो हो रहा है। संभव की क्या बात है? पूछता हूं कि क्या करूं कि नींद आ जाए? और आप कहते हैं, नींद आप कभी नहीं कहते कि संभवतः मैं जिंदा हूं! आप जिंदा हैं, लाने के लिए कुछ करना नहीं पड़ता। तो इसका मतलब हुआ कि तो आप जानते हैं, जिंदा हैं। मर गए, तो बात खत्म हो गई। संभवतः मुझे नींद कभी आएगी ही नहीं। मुझे आती नहीं।
| कहने वाला भी नहीं रहा। - वह कोई विधि मांगता है। वह कहता है, मैं कुछ करूं, जिससे | साक्षी-भाव अगर होगा, तो होगा। नहीं होगा, तो नहीं होगा। नींद आ जाए। तो आप उसे बता सकते हैं कि तू एक से लेकर सौ | | संभव का अर्थ ही यह हुआ कि आप साक्षी-भाव को एक क्रिया तक गिनती कर। फिर सौ से उलटा लौट–निन्यानबे, अट्ठानबे, | बना लिए हैं। आप कोशिश कर रहे हैं। कोशिश से ही तो सत्तानबे-एक तक आ। फिर एक से जा।
साक्षी-भाव मिट जाएगा। मगर उसके खतरे हैं। खतरा यह है कि जब तक आप गिनती | ___ आप कोशिश मत करें। जो भी होता है, उसे देखें। कभी पढ़ते रहें तो नींद आ ही नहीं सकती। क्योंकि कोई भी साक्षी-भाव हो जाए तो ठीक न हो. तो ठीक। लेकिन कोशिश कर्म नींद में बाधा डालेगा। कोई भी कर्म विश्राम में बाधा डालेगा। | मत करें। साक्षी-भाव को छोड़ दें अपने पर। एक क्षण को भी आ आप कुछ भी करें, जब तक आप कर रहे हैं, तब तक नींद नहीं | | जाए चौबीस घंटे में, तो काफी है। बस, उतनी देर देख लें। जब न आएगी। करना तो बंद होना चाहिए, तभी नींद आएगी। आए, फिक्र न करें। जब साक्षी-भाव आए, तो उसे देख लें। और
नींद नहीं आती, उसका मतलब ही इतना है कि आपके मन में जब न आए, तो उसके न आने को देखते रहें। जब द्रष्टा सध जाए, करना जारी रहता है। इतना ही हो सकता है कि एक से सौ तक | | तो उसको देख लें। जब द्रष्टा खो जाए, तो उसको देख लें। गिनती, सौ से फिर वापस एक तक गिनती, फिर एक से सौ तक | गुरजिएफ इस संबंध में बहुत कीमती है। गुरजिएफ से आस्पेंस्की गिनती आपको उबा दे, थका दे। और आप कर-करके ऊब जाएं, ने पूछा है कि मैं...। क्योंकि गुरजिएफ की साधना थी सेल्फ थक जाएं। और उस थकान की वजह से संख्या पढ़ना भूल जाएं। रिमेंबरिंग की। उसको साक्षी-भाव कहें। स्वयं का स्मरण बनाए
और उस भले क्षण में नींद आ जाए। यह हो सकता है। लेकिन रखना। कभी-कभी भूल जाएगा। कभी-कभी खो जाएगा। नींद तो तभी आएगी, जब करना छूट जाएगा। जब तक करना तो आस्पेंस्की गुरजिएफ से पूछ रहा है, उसका शिष्य, कि जारी रहेगा, तब तक नींद नहीं आएगी। करने में और नींद में | कभी-कभी जब खो जाए, तब मैं क्या करूं? कभी तो ध्यान सधता विपरीतता है।
है और कभी बेध्यान हो जाता हूं। तो गुरजिएफ कहता है, जब ध्यान ठीक ऐसे ही साक्षी-भाव की दशा है। आप कुछ भी करें, | सधे, तो जानो कि ध्यान सधा। और जब बेध्यान हो जाओ, तो साक्षी-भाव नहीं हो पाएगा। क्योंकि जो भी आप
| जानो कि अब बेध्यान है। लेकिन इसमें कुछ कलह खड़ी मत करो। हो गए। साक्षी का मतलब ही यह है कि मैं कर्ता नहीं बनूंगा, मैं | |बी अटेंटिव आफ योर इनअटेंशन। वह जब बेध्यान हो जाए. तब सिर्फ देखंगा। मैं किसी तरह का कर्ता-भाव पैदा नहीं होने दूंगा। उसका भी ध्यान रखो। जब होश रहे तो ठीक, होश के प्रति होश
लेकिन आप कहते हैं कि मैं सिर्फ देखूगा, तो मैं देखने का कर्म रखो। और जब बेहोशी आ जाए तो ठीक, बेहोशी के प्रति होश रखो।