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________________ * अव्यभिचारी भक्ति * और जोड़ दिया! है और वास्तविक है, जहां एक ही पिता होता है, जहां बहुत पिता इसलिए कृष्ण कहते हैं कि परमात्मा को तुम अपने व्यभिचार की | नहीं हो सकते, उस भीतर की धारा से उसे जोड़ना। लिस्ट में न जोड़ सकोगे। तुम्हें सारी यह लिस्ट एक तरफ रख देनी और जहां एक ही हो सकता है, केंद्र पर एक ही हो सकता है, पड़ेगी। और इस सारी लिस्ट की तरफ तुम्हारा जो प्राण दौड़ रहा है, | परिधि पर अनेक हो सकते हैं। जैसे-जैसे चित्त अव्यभिचारी होता वह अकेला परमात्मा की तरफ ही दौड़े। है, वह केंद्र पर थिर हो जाता है। तुम कुछ भी करो, लेकिन सब करना तुम्हारा भजन बन जाए। अव्यभिचार के लिए इतना जोर है, क्योंकि अव्यभिचार के तुम भोजन भी करो, तो तुम्हें यह खयाल रहे कि जैसे तुम्हारे भीतर | माध्यम से ही तुम्हारी चेतना एक जगह बहेगी। और एक जगह बह छिपा परमात्मा भोग ले रहा है। तुम स्नान करो, तो तुम्हें खयाल रहे जाए कि तुम अनंत शक्तिशाली हो-तुम ही। और अनेक जगह कि तुम्हारे भीतर छिपा परमात्मा स्नान कर रहा है। तुम उठो-बैठो, | बह जाए, तो तुम नपुंसक हो, तुम व्यर्थ हो। तुम्हारी सब धाराएं तो तुम्हें खयाल रहे कि परमात्मा उठता है और बैठता है। यह धुन | मरुस्थल में खो जाएंगी और सागर से कभी मिलना न हो पाएगा। इतनी गहरी हो जाए कि यह अव्यभिचारी हो जाए। इसमें दूसरे का वह इन तीन गुणों को अच्छी प्रकार उल्लंघन करके-जो खयाल न रहे। तो ही! | अव्यभिचारी-भाव से निरंतर परमात्मा को भजता है-वह इन तीन इसी रईस के संबंध में मुझे एक घटना और खयाल आती है। | | गुणों को अच्छी प्रकार से उल्लंघन करके सच्चिदानंदघनरूप ब्रह्म नया-नया रईस था। नव-रईस जिसको कहते हैं। और नसरुद्दीन में एकीभाव के योग्य हो जाता है। को नौकरी पर लगाया था। तो उसने कहा कि नसरुद्दीन, एक बात | | तथा हे अर्जुन, उस अविनाशी परब्रह्म का और अमृत का तथा खयाल रखना। यह रईस का घर है। और यहां सब चीजें दिखावे | | नित्य धर्म का और अखंड एकरस आनंद का मैं ही आश्रय हूं। की हैं। यहां वास्तविक होने की जरूरत नहीं है। लेकिन दिखावा | वह जो परम आनंद है, अमृत है, परब्रह्म है, धर्म है—जो भी भरपूर होना चाहिए। तो अगर मैं कहूं कि नसरुद्दीन, शर्बत ले आ!| | हम उसे नाम दें-कृष्ण कहते हैं, उन सब का मैं ही आश्रय हूं। तो तू पहले पूछना, हुजूर, कौन-सा? गुलाब, कि अनानास, कि | यह जो मैं है, इसका कृष्ण की अस्मिता से कोई संबंध नहीं है। बादाम, केवड़ा, खस, कौन-सा हुजूर? तो जितने नाम हों, पहले यह कृष्ण नाम के व्यक्ति के लिए उपयोग नहीं किया गया है, यह सब कह देना। हालांकि अपने घर में एक ही है। और जो है, वही मैं। मैं तुझे कहूंगा कि ले आ नसरुद्दीन, यह ले आ। उस सब का आश्रय मैं हं...। दूसरे दिन ही कुछ मित्र आ गए और रईस ने कहा कि नसरुद्दीन, यह आप सबके भीतर जो छिपा हुआ अंतिम मैं है, उसके लिए पान ले आ। नसरुद्दीन ने कहा, हुजूर कौन-सा? कपूरी, बनारसी, | | उपयोग किया गया है। जो-जो भी कह सकता है मैं, उस मैं की जो महोबा, कौन-सा? अंतिम धारा है, उस अंतिम धारा के लिए उपयोग किया गया है। पान बुलाया गया, जो पान घर में था। मित्रों ने लिया। मित्र बड़े | | यह कृष्ण के मैं से इसका संबंध नहीं। यह समस्त चेतनाओं में जो अनुगृहीत हुए। चलते वक्त कहने लगे रईस से कि बहुत दिन बाद | | गहरा आत्म-भाव है, वह जो मेरे का बोध है कि मैं हूं, उस होने का आए हैं, आपके पिताजी के दर्शन नहीं हुए। उनको बुलाएं। नाम है। रईस ने कहा कि नसरुद्दीन, पिताजी को बुला ला। नसरुद्दीन ने __उस होने को ही सच्चिदानंदघन ब्रह्म, अमृत, आनंद या जो भी कहा, कौन से पिताजी? इंग्लैंड वाले, अमेरिका वाले, जर्मनी वाले, | नाम हम चुनें-मुक्ति, परमेश्वर, प्रभु का राज्य, निर्वाण, कि घरेलू स्वदेशी? कैवल्य-जो भी नाम हम चुनें, उसका अंतिम आश्रय है; आपके वह नियम समझ गया! आदमी की दोहरी परतें हैं। एक पर्त, वह | | भीतर वह जो मैं की आखिरी शुद्धतम अवस्था है, होना, वहां जो दिखाने के लिए निर्मित किया है; और एक वह जो है। | छिपी है। ___ जो आपकी दिखाने वाली पर्त है, उससे परमात्मा को मत लेकिन उसे पाने के लिए आपको अव्यभिचारी चेतना की धारा जोड़ना। उससे कोई सार नहीं है। उसमें वह भी हो जाएगा, | चाहिए; ध्यान चाहिए एकजुट, एक बहाव; और एक दिशा कौन-सा परमात्मा? वह जो न दिखाने वाली पर्त है, जो आंतरिक | | चाहिए। 165
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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