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________________ अव्यभिचारी भक्ति र तुम्हारे ज्योतिष का कोई मूल्य नहीं है। नसरुद्दीन ने कहा, रुको। यह अहंकारी मनुष्य अपने को मिटाने की तत्परता में लगा है। और तो जान लो कि आत्महत्या में सफल होओगे या नहीं! जितना अहंकारी होगा, उतना ही जल्दी उसे लगेगा कि खत्म कर जब तक आप कुछ भी करने जा रहे हैं, आत्महत्या भी करने | लूं। क्योंकि जितना अहंकार होगा ज्यादा, उतनी ही जीवन में जा रहे हैं, तब तक भी कर्ता पीछे खड़ा है। जब तक आपको लग विफलता मिलेगी। हर जगह अहंकार टूटेगा। रहा है, आप कुछ कर सकते हैं, तब तक आपका अहंकार जागा साधक का तो एक ही अर्थ है कि अब वह अहंकार तोड़ने के हुआ है। | लिए तैयार है। और अहंकार तभी टेगा, जब कर्ता का भाव मिटे। फ्रांस के एक बहुत बड़े विचारक अल्बेयर कामू ने एक कीमती कर्ता का भाव तब टूटेगा, जब सभी कर्म तुम्हारे असफल हो जाएं। वक्तव्य दिया है। और वह वक्तव्य यह है कि आदमी चाहे कुछ | तुम्हारी सारी विधियां, तुम्हारी सारी क्रियाएं, तुम्हारे सारे मार्ग व्यर्थ और न कर सकता हो, चाहे सभी जगह आदमी असफल, असमर्थ हो जाएं। तुम एक ऐसी जगह पहुंच जाओ, जहां तुम कह सको कि मालूम पड़ता हो, लेकिन आत्मघात एक ऐसी बात है, जिससे सिद्ध मेरे किए कुछ भी नहीं होता, मेरे किए कुछ भी नहीं होगा। हो जाता है कि हम भी हैं। ऐसी जो परम विफलता है, इस परम विफलता में ही मनुष्य को ___ ध्यान रहे, जो लोग आत्मघात करते हैं, अक्सर अहंकारी लोग | पता चलता है कि मैं असहाय हूं। इस परम विफलता में ही उसे पता होते हैं। जो जीवन में सफल नहीं हो सके, लेकिन जो स्वीकार नहीं चलता है कि मेरे भीतर कोई अहंकार का केंद्र नहीं है। मैं सिर्फ एक कर सकते हैं कि हम कुछ भी नहीं हैं, वे आत्मघात करके अपने को | लहर हूं सागर पर। बता देते हैं कि कुछ तो मैं कर ही सकता हूं। इतना तो कर ही सकता | एक तरफ से देखने पर यह विफलता है। और दूसरी तरफ से हूं कि अपने को समाप्त कर लूं। देखने पर यही जीवन में धर्म का जन्म है। बड़ी से बड़ी सफलता दोस्तोवस्की का प्रसिद्ध उपन्यास है, ब्रदर्स कर्माझोव। उसमें है। एक कोने से, संसार की तरफ से देखने पर, यह सबसे बड़ी एक पात्र कहता है आकाश की तरफ हाथ उठाकर कि हे परमात्मा, हार है। परमात्मा की तरफ से देखने पर यह सबसे बड़ी विजय है। अगर तू कहीं भी है और मुझे मिल जाए, तो मैं सिर्फ एक काम जो इस हार के लिए राजी नहीं है, वह परमात्मा के जगत में कभी करना चाहता हूं। मैं तुझे वह टिकट वापस करना चाहता हूं, जो तूने विजय उपलब्ध नहीं करेगा। मुझे संसार में भेजने के लिए दी है। और तुझसे कह देना चाहता हूं, इसलिए गुरु की सारी चेष्टा यह है...। तुम पूछते हो, क्या करें? यह संसार बेकार है। गुरु यह कहे, कुछ न करो, उससे तुम्हें तृप्ति न मिलेगी। तुम पूछते आत्महत्या करने वाला यही कर रहा है। वह कह रहा है परमात्मा हो, क्या करें? गुरु तुम्हें देता है कि कुछ करो। कर-करके वह तुम्हें से कि सम्हालो अपना यह संसार। इतना करने को तो कम से कम उस जगह लाएगा, जहां तुम खुद ही कहने लगोगे, करने से कुछ मैं स्वतंत्र हूं। इसमें तुम मुझे न रोक सकोगे। भी नहीं होता। वह तुम्हें न करने की अवस्था में ला रहा है। इसलिए आत्मघात अक्सर अहंकार की आखिरी परिणति है। हालांकि तुम करने से न करने की अवस्था में न जाओगे। तुम विनम्र मनुष्य कभी आत्मघात नहीं कर सकता। निरहंकारी तो सोच | कुछ रास्ते निकालोगे। तुम कहोगे कि मुझे प्रकाश दिखाई पड़ने भी नहीं सकता। क्योंकि निरहंकारी का मतलब ही यह है कि मेरे लगा। तुम कुछ करके पा रहे हो, यह तुम बताओगे गुरु को हाथ में कुछ भी नहीं है। जीवन भी मेरे हाथ में नहीं है; मृत्यु भी मेरे जा-जाकर। तुम कहोगे कि अब मुझे लाल-नीले रंग दिखाई पड़ हाथ में नहीं है। मैं इस विराट की लीला में सिर्फ एक अंग हूं। उस रहे हैं। तुम कहोगे, अब मुझे ओंकार का नाद सुनाई पड़ने लगा। अंग की कोई अपनी, सारे अस्तित्व से टूटी हुई, अस्मिता नहीं है। तुम कहोगे, मेरी कुंडलिनी जाग्रत हो रही है। तुम हजार तरकीबें उसका कोई अपना अहं नहीं है। निकालोगे यह सिद्ध करने की कि जो मैं कर रहा हूं, वह विफल मैं इस विराट का एक हिस्सा हूं, जैसे लहर सागर का हिस्सा है। | नहीं हो रहा है, वह सफल हो रहा है। सागर जहां ले जाए. वहां लहर चली जाएगी। लहर अपना मार्ग नहीं। ___ तुम अपने अहंकार को बचाने के सब उपाय करोगे। लेकिन चुन सकती। लहर यह नहीं कह सकती कि मुझे पूरब जाना है। जाए अगर तुम्हें सौभाग्य से सदगुरु मिल गया हो, तो वह तुम्हारे एक पूरा सागर पश्चिम, लेकिन मुझे पूरब जाना है! उपाय चलने न देगा। वह कहेगा, यह कुंडलिनी, यह सब बकवास 153
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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