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* आत्म-भाव और समत्व *
भूख मिट रही, तो शरीर की मिट रही है। भोजन करते समय, भूख | | उसकी उम्र है, उससे कम उम्र मालूम होती है। क्या कारण होगा? के समय, प्यास के समय, पानी पीते समय, स्मरण रखें।
इस बात की संभावना है कि हो सकता है भोजन मनुष्य जाति अगर इस स्मरण को आप थोड़े दिन भी रख पाएं, तो आपको | की सिर्फ एक गलत आदत हो। और किसी दिन आदमी भोजन से एक अनूठा अनुभव होगा। और वह अनुभव यह होगा कि आपको मुक्त किया जा सके। साफ दिखाई पड़ने लगेगा कि में सदा का उपवासा हं। वहां कभी एक बात निश्चित है कि शरीर को भला जरूरत हो या आदत हो, कोई भूख नहीं लगी। कोई भूख पहुंच नहीं सकती वहां। चेतना में लेकिन भीतर जो चेतना है, उसको न तो जरूरत है और न आदत है। भूख का कोई उपाय नहीं है।
वह भीतर की चेतना परम ऊर्जा से भरी है। उसकी ऊर्जा का स्रोत अमेरिका में एक व्यक्ति बड़ी अनूठी खोज में लगा हुआ है। शाश्वत है। उसको ऊर्जा रोज-रोज ग्रहण नहीं करनी पड़ती। उसकी खोज भरोसे योग्य नहीं है, लेकिन खोज के परिणाम बड़े इसलिए हम उसे सच्चिदानंदघन परमात्मा कह रहे हैं। उसकी साफ हैं। और उस व्यक्ति का कहना यह है कि एक समय था मनुष्य ऊर्जा मूल स्रोत से जुड़ी है। वह स्रोत शाश्वत है। वह कभी समाप्त जाति के इतिहास में जब कोई भोजन नहीं करता था।
नहीं होता। इसलिए उसमें रोज ईंधन डालने की जरूरत भी नहीं है। जैन शास्त्रों में ऐसे समय का उल्लेख है। जैनों के जो पहले चेतना के लिए भोजन की कोई भी जरूरत नहीं है। शरीर के लिए तीर्थंकर हैं आदिनाथ, उन्होंने ही भोजन और कृषि और अन्न की | हो या न हो, यह बात विवाद की हो सकती है। समय, भविष्य तय खोज की। उसके पहले कोई भोजन नहीं करता था। लोग भूखे नहीं | | करेगा। लेकिन चेतना के लिए तो कोई भी जरूरत नहीं है। वह होते थे।
चेतना उपवासी है। यह बात कहानी की मालूम पड़ती है। लेकिन जो आदमी | ऐसा भाव अगर बनने लगे, निर्मित होने लगे, तो आप में से अमेरिका में खोज कर रहा है, उसके बड़े वैज्ञानिक आधार हैं। और | कर्तापन धीरे-धीरे अपने आप गिर जाएगा। और जब भी आप वह कहता है कि भोजन सिर्फ एक लंबी आदत है। और वह यह किसी चीज का आरंभ करेंगे, किसी भी चीज की पहल करेंगे, तो कहता है कि भोजन से शरीर को शक्ति नहीं मिलती। भोजन से आप जानेंगे यह शरीर के गण इसकी पहल कर रहे हैं. मैं इसकी ज्यादा से ज्यादा शरीर में जो शक्ति पड़ी है, उसको गति मिलती है। पहल नहीं कर रहा है। ऐसे ही जैसे कि पनचक्की चलती थीं। तो पानी चक्की के पंखे पर शरीर को जितनी जरूरत होगी, आप दे देंगे। ज्यादा भी नहीं देंगे, से गिरता था; पंखा घूमता था। पंखा तो मौजूद है, सिर्फ गिरता हुआ कम भी नहीं देंगे। अभी हम दो ही काम करते हैं, या तो कम देते पानी पंखे को घुमा देता था।
हैं या ज्यादा देते हैं। क्योंकि ठीक कितना देना, इसका हमें पता ही इस वैज्ञानिक का कहना है कि शरीर में शक्ति मौजूद है। सिर्फ | | नहीं चल पाता। हम इतने जुड़े हैं, हमारा संबंध इतना जुड़ गया है .यह भोजन का शरीर में जाना और शरीर के बाहर मल होकर | शरीर से कि हम निष्पक्ष नहीं हो.पाते। हम से ज्यादा निष्पक्ष तो निकलना, यह सिर्फ शरीर के भीतर जो पंखे बिना चले पड़े हैं, जानवर हैं। उनको चलाता है। इससे कोई शक्ति मिलती नहीं। और आदमी अगर कुत्ते को पेट में खराबी हो, तो वह भोजन नहीं करेगा, आप बिना भोजन के रह सकता है।
लाख उपाय करें। लेकिन आपको कितनी ही बीमारी हो, कितनी ही और ऐसी घटनाएं हैं, जहां कुछ लोग बिना भोजन के रहे हैं। खराबी हो, आप भोजन करेंगे। शायद बीमारी में और ज्यादा कर लें, चालीस-पचास साल तक भी। उनका वजन भी नहीं गिरा। उनके | | कि जरा ताकत की जरूरत है। कोई जानवर यह भूल नहीं करेगा। शरीर में कोई रोग भी नहीं आया। बल्कि वे बहुत स्वस्थ लोग रहे हैं। क्योंकि जानवर जानता है कि बीमारी में भोजन करने का मतलब है अभी बवेरिया में एक स्त्री
न। उस
कि शरीर को और काम देना। शरीर पर बीमारी का काम है। उतना से भोजन नहीं किया है। रत्तीभर वजन नीचे नहीं गिरा है। और तीस | ही काम काफी है। उसको नया काम देना खतरनाक है। साल से वह कभी बीमार नहीं पड़ी। न कोई मल-मूत्र का सवाल | | शरीर को भोजन न दिया जाए, तो बीमारी जल्दी समाप्त हो जाती है। उसकी सारी अंतड़ियां सिकुड़ गई हैं। पेट ने सारा काम बंद कर | | है। क्योंकि शरीर खुद बीमारी को निकालने में लग जाता है। शरीर दिया है। लेकिन उसका शरीर परिपूर्ण स्वस्थ है। और जितनी की पूरी ताकत एक तरफ बहने लगती है, बीमारी खतम करने में।
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