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* आत्म-भाव और समत्व *
होगा, तो पति भी रोएगा, छाती पीटेगा, चिल्लाएगा। एक खाट पर तीसरा तत्व है, आनंद। सत चित आनंद। यह तीसरी बात भी पत्नी, एक खाट पर पति! प्रसव-पीड़ा दोनों को होती है। ज्ञानियों की अनुभूत खोज है कि वह जो भीतर छिपा हुआ तत्व है,
हजारों साल से यह होता रहा। और जब पहली दफा ईसाई वह सत भी है, चित भी है, और वह परम आनंद भी है। सुख पाने मिशनरी अमेजान पहुंचे, तो उनको विश्वास भी नहीं आया कि यह की कोई जरूरत नहीं है उसको; वह स्वयं आनंद है। और अगर क्या पागलपन है। यह आदमी जरूर बन रहा होगा। क्योंकि हमें आप दुखी हो रहे हैं और सुख की तलाश कर रहे हैं, तो वह आपकी खयाल ही नहीं है कि जब स्त्री को बच्चा पैदा हो रहा है, इससे पति | भ्रांति है। को प्रसव-पीड़ा का क्या संबंध है!
मनुष्य का स्वभाव आनंद है। इसलिए जिस दिन हम अपने लेकिन जब जांच-पड़ताल की गई, तो वे बड़े चकित हुए कि | स्वभाव से परिचित हो जाएंगे, सच्चिदानंद से मिलना हो जाएगा। वस्तुतः पीड़ा होती है। पति को पीड़ा होती है। क्योंकि अमेजान में और इस सच्चिदानंद को परमात्मा कहा है। परमात्मा कहीं कोई यह विश्वास है कि बच्चा पति और पत्नी दोनों का कृत्य है। इसलिए | बैठा हुआ व्यक्ति नहीं है, जो जगत को बना रहा है। परमात्मा अकेली पत्नी को क्यों पीड़ा हो! दोनों का हाथ है उसमें, आपके भीतर छिपा हुआ तत्व है, जो आपके भीतर खेल रहा है, आधा-आधा दोनों का बच्चा है, इसलिए दोनों कष्ट पाएंगे जब | आपके जीवन को फैला रहा है। और यह आपका ही हाइड एंड प्रसव होगा। और जांच से पता चला है कि शरीर में वास्तविक पीड़ा सीक है, लुका-छिपौव्वल है। जिस दिन आप सजग हो जाएंगे, होती है। जैसे स्त्री के शरीर में सारा खिंचाव और तनाव होता है, | जिस दिन आप बाहर की दौड़ से थक जाएंगे, ऊब जाएंगे, कहेंगे, वैसे ही पुरुष के शरीर में खिंचाव-तनाव होता है।
बंद करो खेल...। अब यह सिर्फ मान्यता की बात है। क्योंकि उनकी धारणा है, जैसे बच्चे नदी की रेत में घर बनाते हैं, लड़ते हैं, झगड़ते हैं। बुद्ध इसलिए होता है।
बहुत बार इस दृष्टांत को लेते रहे हैं कि नदी के किनारे बच्चे घर बना जितने सभ्य मुल्क हैं, वहां स्त्रियों को बच्चा पैदा करने में कष्ट | रहे हैं। रेत के घर हैं, वे कभी भी गिर जाते हैं। कोई बच्चे की लात होता है। सिर्फ सभ्य मुल्कों में! असभ्य मुल्कों में नहीं होता। ठेठ | लग जाती है; कोई बच्चा जोर से खड़ा हो जाता है; वे मकान गिर आदिवासियों में बिलकुल नहीं होता।
जाते हैं। तो बड़ा झगड़ा हो जाता है। मार-पीट भी हो जाती है कि तूने बर्मा में ऐसी जातियां हैं. स्त्रियां काम करती रहेंगी खेत में बच्चा मेरा मकान गिरा दिया। इतनी मेहनत से मैंने बनाया था। हो जाएगा। कोई दूसरा भी नहीं है। दाई, और नर्स, और अस्पताल | फिर सांझ होने लगती है, सूरज ढलने लगता है। कोई नदी के का तो कोई सवाल ही नहीं है। बच्चा हो जाएगा, उसको उठाकर वे | किनारे से चिल्लाता है कि बच्चो, घर जाओ। तुम्हारी माताएं तुम्हें टोकरी में रख देंगी और वापस काम पर लग जाएंगी। सांझ को | याद कर रही हैं। वे बच्चे, जिनके घर को जरा चोट लग गई थी, अपने बच्चे को लेकर घर आ जाएंगी। बर्मा के उन जंगलों में | किनारा झड़ गया था, रेत बिखर गई थी, लड़ने को तैयार हो गए खयाल ही नहीं है कि स्त्री को पीड़ा होती है। इसलिए पीड़ा नहीं | थे, वे अपने ही घरों पर कूदकर, घरों को मिटाकर असली घरों की होती।
| तरफ भाग जाते हैं। सांझ होने लगी; सूरज ढलने लगा; मां की आप जो कुछ भोग रहे हैं, उसमें अधिक तो आपकी मान्यताएं हैं। | | आवाज आ गई। जिन घरों के लिए लड़े थे, मार-पीट की थी, उन
यह जो भीतर छिपा हुआ परमात्मा है, इसका दूसरा लक्षण है | घरों को खुद ही कूदकर मिटा देते हैं। चित। यह कभी बेहोश नहीं हुआ है, और कभी सोया नहीं है। वह बस, ऐसा ही है, बुद्ध कहते थे कि जो भी हम बना रहे हैं अपने उसका स्वभाव नहीं है। इसलिए अगर आप अपने को बेहोश मानते | चारों तरफ, रेत के घर हैं; हमारा खेल है। हैं, नींद में मानते हैं, सम्मोहित मानते हैं, तो वह आपकी मान्यता __ कोई हर्ज भी नहीं है। आप रस ले रहे हैं, बना रहे हैं। आपकी है। मान्यता के अनुसार काम जारी रहेगा।
| तकलीफ यह है कि आप पूरा रस भी नहीं ले पाते। पूरा बना भी धर्म की पूरी खोज इतनी ही है कि मान्यताएं सब टूट जाएं और | नहीं पाते। पूरा बना लें, तो मिटाने का भी मजा आ जाए। सांझ को जो सत्य है, वह प्रकट हो जाए। जैसा है वैसा प्रकट हो जाए, और जब मिटाएंगे, तो कुछ मिटाने को भी तो चाहिए। कुछ बना हुआ जो हमने मान रखा है, वह हट जाए।
होगा, तो मिटा भी लेंगे। लेकिन कभी बना ही नहीं पाते पूरा और
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