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________________ * गीता दर्शन भाग-7 मैं रहा है, तब भी; जो भी हो रहा है, वह शरीर में हो रहा है; शरीर अभी कुछ प्रयोग तो ऐसे हुए हैं, जो कि बिलकुल अविश्वसनीय के गुणधर्मों में हो रहा है। वह जो भीतर चित है, उसको बेहोश करने | । हैं। जिन पर कि आदमी के बस की बात ही समझ में नहीं आती। का कोई उपाय नहीं है। हारवर्ड यूनिवर्सिटी में एक मरीज पर वे हिप्नोसिस का प्रयोग कर तांत्रिकों में तो बड़ी पुरानी साधनाएं हैं, जिनमें जहर का, शराब | रहे थे। उसे बेहोश करके कहा गया कि उसके खून में ब्लड शुगर का, सब तरह के नशे-गांजा, भांग, अफीम-सबका उपयोग | बढ़ रही है-सम्मोहित करके। जब उसे सम्मोहित किया गया, तो कया जाता है। और उपयोग इसलिए किया जाता है. ताकि इस बात उसका खन लिया गया। उसकी जांच की गई। उसकी नार्मल ब्लड की परख आ जाए कि कैसे ही नशे का तत्व हो, कैसा ही मादक शुगर है। द्रव्य हो, वह केवल शरीर को छूता है, मुझे नहीं। और तब तक ब्लड शुगर बड़ा मामला है। जब तक उसको बहुत शक्कर न तांत्रिक नहीं मानता कि आप स्थितप्रज्ञ हुए, गुणातीत हुए, जब तक | खिलाई जाए, ग्लूकोज का इंजेक्शन न दिया जाए, तब तक उसके कि आपको सब तरह के जहर न दे दिए जाएं, और आप होश में ब्लड में शुगर जा नहीं सकती। न उसे ग्लूकोज दिया जा रहा है, न न बने रहें। अगर आप होश खो दें, तो वह मानता है, अभी आप शक्कर दी जा रही है, न कुछ। सिर्फ सजेशन दिया जा रहा है, गुणातीत नहीं हुए। होश बना ही रहे, भीतर के होश की धारा न टूटे। सुझाव, कि तेरे खून में शुगर बढ़ रही है। आपके भीतर के होश की धारा भी नहीं टूटती। किसी के भीतर और उसके खून में शुगर बढ़ी। और थोड़ी-बहुत नहीं, पांच सौ की धारा नहीं टूटती। लेकिन आप भीतर की धारा से परिचित ही | तक उसके खून में शुगर बढ़ी। सिर्फ सुझाव से! खून में कुछ डाला नहीं हैं। भीतर तो कोई जागा ही रहता है। वह उसका स्वभाव है। नहीं गया है। जैसे-जैसे सुझाव गहन होने लगा, वैसे-वैसे खून में चितता, कांशसनेस, उसका स्वभाव है। शुगर की मात्रा बढ़ती चली गई। लेकिन आप अपने को माने हुए हैं शरीर। इसलिए जब शरीर | इस चैतन्य की एक क्षमता है कि यह जो भी मान ले, वैसी घटना बेहोश होता है, तो आप समझते हैं, आप बेहोश हो गए। यह घटनी शुरू हो जाएगी। यह हमारी मान्यता है कि मैं शरीर हूं, आपकी मान्यता है। इस मान्यता के कारण आप समझ लेते हैं कि इसलिए हम शरीर हो गए हैं। बेहोश हो गए। आप बेहोश होते नहीं। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जिन बच्चों को बचपन से कहा जाए, अगर आप हिप्नोसिस से परिचित हैं, तो आपको पता होगा कि तुम मूढ़ हो, वे मूढ़ हो जाएंगे। न मालूम सैकड़ों बच्चों को हम हिप्नोसिस का सारा खेल इतना ही है कि हिप्नोटाइजर जो आपसे | अपने हाथ से मूढ़ बना देते हैं। लाखों बच्चे इसलिए मूढ़ रह जाते कहे, आप उसको मान लें। अगर आप मान लें, तो वैसा ही होना | हैं कि घर में मां-बाप उनको मूढ़ कह रहे हैं; स्कूल में शिक्षक उनको शुरू हो जाएगा। मान्यता तथ्य बन जाती है। मूढ़ कह रहे हैं। उनको बार-बार यह सुझाव मिलता है, और उनको अगर हिप्नोटिस्ट कहता है कि आपके हाथ में उसने एक अंगारा | बात जंच जाती है। जब सभी कह रहे हैं, तो बात ठीक होगी ही। रख दिया है...। आप आंख बंद किए पड़े हैं और आपके हाथ में | | यह एक तरह का सम्मोहन है। फिर वे मूढ़ ही रह जाते हैं। उठाकर एक रुपए का सिक्का रख देता है। कहता है, अंगारा रख | जिन बच्चों को बचपन से खयाल मिलता है कि वे बड़े दिया जलता हुआ। आप घबड़ाकर फेंक देंगे रुपया, क्योंकि आप प्रतिभाशाली हैं, टैलेंटेड हैं, गुणवान हैं, उनमें वैसी वृत्ति पैदा होने मान लेते हैं कि अंगारा है। बड़े आश्चर्य की बात तो यह है कि आप | लगती है। वे जो मानने लगते हैं, वैसे हो जाते हैं। मान्यता आपका न केवल फेंक देते हैं, बल्कि आपके हाथ में फफोला भी आ जाता | जीवन बन जाती है। है; जब कि वहां कोई अंगारा नहीं था। आपके हाथ ने बिलकुल | तो आपको खयाल है कि रात आप सो जाते हैं, इसलिए आपको वही व्यवहार किया, जो आपने मान लिया। लगता है, आप सोए। सिर्फ शरीर सोता है, आप कभी नहीं सोते। हिप्नोसिस पर बड़ा काम पश्चिम में हो रहा है। और उससे एक यह सिर्फ धारणा है आपकी और बचपन से समझाया जा रहा है, बात पता चलती है कि आदमी की चेतना मान लेने से ग्रसित हो | इसलिए आप सो जाते हैं। आपको लगेगा कि सिर्फ धारणा ऐसे जाती है। आपको पानी पिलाया जाए सम्मोहित अवस्था में और | | कैसे हो सकती है! कहा जाए, शराब है। आप बेहोश हो जाएंगे, नशा आ जाएगा। अमेजान में अभी तक आदिवासियों में जब भी स्त्री को बच्चा 142
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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