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* आत्म-भाव और समत्व *
पाठ करें? कहां जाएं-हिमालय जाएं, कि मक्का, कि मदीना, कि ___ यह शब्द समझ लेने जैसा है। सच्चिदानंद, सत चित आनंद, काशी, कि जेरुसलम-कहां जाएं? कैसा भोजन करें? कैसे बैठे? | | तीन बड़े महत्वपूर्ण शब्दों से बना है। कैसे उठे? ताकि परमात्मा को पा लें!
सत का अर्थ होता है, जिसकी ही एकमात्र सत्ता है। बाकी सब हमारी शरीर के साथ जोड़ की स्थिति इतनी गहन हो गई है कि चीजें स्वप्नवत हैं। वस्तुतः जो सत्य है, जिसका एक्झिस्टेंस है, वह हम परमात्मा को भी शरीर से ही खोजना चाहते हैं। हमें खयाल ही सत। बाकी आप जो चारों तरफ देख रहे हैं, वह कोई भी वास्तविक नहीं है कि शरीर के अतिरिक्त भी हमारा कोई होना है। और यह नहीं है। सब बहता हुआ प्रवाह है; स्वप्न की लंबी एक धारा है। खयाल भी तभी आएगा, जब शरीर से हमें सब तरफ दुख दिखाई कल्पना से ज्यादा उसका मूल्य नहीं है। और आप देख भी नहीं पाते देने लगे।
कि वहां चीजें बदल जा रही हैं। वहां किसी चीज की सत्ता नहीं है। बुद्ध ने निरंतर, सुबह से सांझ, एक ही बात कही है अपने | | परिवर्तन ही वहां सब कुछ है। जिसकी वास्तविक सत्ता है, वह भिक्षुओं को कि जीवन दुख है। और सिर्फ इसलिए कही है, ताकि कभी रूपांतरित नहीं होगा। तुम परम जीवन को जान सको। जब तुम्हें यहां दुख ही दुख दिखाई | ___ भारतीय मनीषियों का सत्य का एक लक्षण है, और वह यह कि देने लगे, तो इस दुख से छूटने में जरा भी बाधा नहीं रह जाएगी। | जो कभी रूपांतरित न हो; जो सदा वही रहे, जो है। जो कभी बदले
जहां दुख है, वहां से मन हटने लगता है। और जहां सुख है, | | न, जिसके स्वभाव में कोई परिवर्तन न हो; जिसके स्वभाव में वहां मन की सहज गति है।
थिरता हो, अनंत थिरता हो, वही सत्य है। बाकी सब चीजें जो बदल जाती हैं, वे सत्य नहीं हैं। बदलने का मतलब ही यह है कि
उनके भीतर कोई सब्स्टेंस, कोई सत्व नहीं है। ऊपर-ऊपर की चीजें तीसरा प्रश्नः कृष्ण ने कई जगह सच्चिदानंदघन हैं, बदलती चली जाती हैं। परमात्मा शब्द को दोहराया है। यह सच्चिदानंदघन | जो सदा अपरिवर्तित खड़ा है! आपके भीतर एक ऐसा केंद्र है, परमात्मा क्या है?
जो सदा अपरिवर्तित खड़ा है। आप बच्चे थे, तब भी वह वैसा ही था। आप जवान हो गए, तब भी वह वैसा ही है। वह जवान नहीं
हुआ; आपकी देह ही जवान हुई। यह जवानी गुणों का वर्तन है। 1 प! आपकी तरफ इशारा कर रहे हैं कृष्ण। वह जो | | कल आप बूढ़े हो जाएंगे, तब भी वह बूढ़ा नहीं होगा। यह बुढ़ापा 11 चैतन्य है आपका, जहां से आप मुझे सुन रहे हैं; जहां | | भी आपके शरीर के गुणों का वर्तन होगा।
से आप मुझे देख रहे हैं; वह जो आपके भीतर बैठी | एक दिन आप पैदा हुए, तब वह पैदा नहीं हुआ। और एक दिन हुई जगह है, खाली जगह है, शून्य है।
आप मरेंगे, तब वह मरेगा नहीं। वह सदा वही है। वह जन्म के ___ एक तो मैं हूं यहां, बोल रहा हूं। और एक आप हैं, जो सुन रहे | | पहले भी ऐसा ही था; और मृत्यु के बाद भी ऐसा ही होगा। वह हैं। आपके कान नहीं सुन रहे हैं। कान तो केवल शब्दों को वहां | | आधार है। उस पर सब चीजें आती और जाती हैं। लेकिन वह स्वयं तक ले जा रहे हैं, जहां आप सुन रहे हैं। एक तो मैं हूं, जो यहां बैठा निरंतर वैसा का वैसा बना है। है। और आप मुझे देख रहे हैं। आपकी आंखें मुझे नहीं देख रही | उस मूल आधार को कहते हैं सत। हैं। आंखें तो केवल मेरे प्रतिबिंब को वहां तक ले जा रही हैं, भीतर दूसरा शब्द है, चित। वह मूल आधार केवल है ही नहीं, बल्कि आपके, जहां आप देख रहे हैं।
चेतन है, होश से भरा है। होश उसका लक्षण है। उसे कुछ भी वह जो भीतर छिपा है सारी इंद्रियों के बीच में; वह जो केंद्र है | | उपाय करके बेहोश नहीं किया जा सकता। जब आप बेहोश हो जाते सारी इंद्रियों के बीच में; जो स्वयं कोई इंद्रिय नहीं है। वह जो चेतना | हैं, तब भी वह बेहोश नहीं होता। सिर्फ आपके गुण बेहोश हो जाते का केंद्र है भीतर, जहां से सारा होश है, जिसके कारण इंद्रियां चारों हैं। जब आपको कोई शराब पिला देता है, तो चित में तो शराब तरफ देख रही हैं, पहचान रही हैं, उसकी तरफ इशारा है। वह | | डाली नहीं जा सकती। शराब तो शरीर में ही डाली जाती है। जब सच्चिदानंदघन परमात्मा है।
आपको मार्फिया दिया जा रहा है, तब भी; क्लोरोफार्म सुंघाया जा
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