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* गीता दर्शन भाग-7*
इसलिए धनी न सुख से जी पाता है, न सुख से मर पाता है। | दिखाई पड़ रहे हैं, तो शरीर के साथ आप पकड़ कैसे छोड़ सकते मरते वक्त यह भय लगता है कि मैंने जिंदगीभर कमाया, अब | हैं। क्योंकि इसके द्वारा ही वे मिलते हैं। अंत तक पकड़े रहते हैं। इसको कोई मिटा देगा। और कोई न कोई मिटाएगा आखिर।। | एक बड़ी महत्वपूर्ण कहानी है। अमेरिकी अभिनेत्री मर्लिन मनरो
इस जगत में जो भी बनाया जाता है, वह मिटता है। इस जगत | | मरी, तो एक कहानी प्रचलित हो गई कि जब वह स्वर्ग के द्वार पर में कोई भी ऐसी चीज नहीं, जो न मिटे। आपका धन अपवाद नहीं | पहुंची, तो सेंट पीटर, जो स्वर्ग के द्वारपाल हैं, ईसाइयों के स्वर्ग के हो सकता। तो आप दुखी इसलिए हो रहे हैं कि आपका धन कोई द्वारपाल हैं, उन्होंने मनरो को देखा। वह अति सुंदर उसकी काया। न मिटा दे; अशांत इसलिए हो रहे हैं। और शांति की कोई तरकीब सेंट पीटर ने कहा, एक नियम है स्वर्ग में प्रवेश का। स्वर्ग के खोजते हैं।
| द्वार के बाहर एक छोटा-सा पुल है, उस पुल पर से गुजरना पड़ता मान लें कि धन तो मिटने वाली चीज है; मिटेगी। और लड़के | है। उस पुल के नीचे अनंत खाई है। उस खाई की ही गहराई में नरक अपने मार्गों पर जाएंगे। और पिता लड़कों को पैदा करता है, | है। उस पुल पर से गुजरते समय अगर एक भी बुरा विचार आ इसलिए उनके जीवन का मालिक नहीं है। फिर मुझे कहें कि दुख | जाए-बुरे विचार का मतलब, शरीर से बंधा हुआ विचार आ कहां है। .
जाए–तो तत्क्षण व्यक्ति पुल से नीचे गिर जाता है और नरक में अशांति के कारण खो जाएं, तो आदमी शांत हो जाता है। शांति प्रवेश हो जाता है। के कारण खोजने की जरूरत ही नहीं है। शांति मनुष्य का स्वभाव मनरो और सेंट पीटर दोनों उस पुल से चले। और घटना यह घटी है। अशांति अर्जित करनी पड़ती है। हम अशांति अर्जित करते चले | कि दो-तीन कदम के बाद सेंट पीटर नीचे गिर गए। मनरो जैसी सुंदर जाते हैं और शांति की पूछताछ शुरू कर देते हैं।
स्त्री को चलते देखकर कुछ खयाल सेंट पीटर को आ गया होगा! अशांति के साथ जो इनवेस्टमेंट है, वह भी हम छोड़ना नहीं | स्वर्ग के द्वार पर खड़े होकर भी अगर शरीर से सुख लेने का चाहते। जो लाभ है, वह भी हम लेना चाहते हैं। और शांति के साथ | जरा-सा भी खयाल आ जाए, तो तादात्म्य हो गया। जिस चीज से जो लाभ मिल सकता है, वह भी हम लेना चाहते हैं। और दोनों | हमें सुख लेने का खयाल होता है, उसी से तादात्म्य हो जाता है। हाथ लड्डुओं का कोई भी उपाय नहीं है।
शरीर से सुख मिल सकता है, जब तक यह खयाल है, तब तक यह जो संसार के साथ हमारा जोड़ है, गुणों के साथ, शरीर के | आप जुड़े रहेंगे। जिस दिन आपको यह समझ में आ जाएगा कि साथ, हमारा तादात्म्य है, उसमें भी हमें लाभ दिखाई पड़ता है, | शरीर से मिलने वाला हर सुख केवल दुख का ही एक रूप है; जिस इसलिए है। हमने जानकर वह बनाया हुआ है। हम अपने को | | दिन आप यह खोज लेंगे कि शरीर से मिलने वाले हर सुख के पीछे समझाए हुए हैं कि ऐसा है। फिर संतों की बातें सुनते हैं, उससे भी | दुख ही छिपा है; सुख केवल ऊपर की पर्त है; सिर्फ कड़वी जहर लोभ जगता है कि हमको भी यह गुणातीत अवस्था कैसे पैदा हो | | की गोली के ऊपर लगाई गई शक्कर से ज्यादा नहीं; उसी दिन जाए! तो हम पूछना शुरू करते हैं, क्या करें? कैसे इससे छूटें? | तादात्म्य टूटना शुरू हो जाएगा।
मजा करीब-करीब ऐसा है कि जिसको आप पकड़े हुए हैं, आप यह पूछना कि कैसे जड़ त्रिगुणों से चैतन्य का तादात्म्य संभव पूछते हैं, इससे कैसे छूटें? आप पकड़े हुए हैं, यह खयाल में आ हो पाता है? जाए, तो छूटने के लिए कुछ भी न करना होगा, सिर्फ पकड़ छोड़ __इसीलिए संभव हो पाता है कि आप स्वतंत्र हैं। चाहें तो तादात्म्य देनी होगी।
बना सकते हैं, चाहें तो हटा सकते हैं। जब तक आप सोचते हैं कि इस शरीर के साथ आप अपने को एक मान लेते हैं। आप पकड़े | सुख बाहर से मिल सकता है, तब तक यह तादात्म्य नहीं छूटेगा। हुए हैं। आप इस शरीर को सुंदर मानते हैं। इस शरीर के साथ भोग | जिस दिन आप जानेंगे, सुख मेरे भीतर है, मेरा स्वभाव है, उस दिन की आशा है। इस शरीर से आपको सुख मिलते हैं, चाहे वे कोई भी | यह तादात्म्य छूट जाएगा। सुख हों—चाहे संभोग का सुख हो, चाहे स्वादिष्ट भोजन का सुख | अभी तो हम परमात्मा की भी खोज करें, तो भी शरीर से ही हो, चाहे संगीत का सुख हो—इस शरीर के माध्यम से आपको करनी पड़ती है। अभी तो हम पूछते हैं, परमात्मा को भी खोजें, तो मिलते हैं। वे सब सुख हैं। अगर वे सुख आपको अभी भी सुख | | कैसा आसन लगाएं? किस भांति खड़े हों? कैसे पूजा करें? कैसे
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