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गीता-दर्शन अध्याय 15
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मूल स्रोत की ओर वापसी ...
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आधुनिक विचारकों की मान्यता: जगत का विकास निम्न से श्रेष्ठ की ओर / पश्चिम की विचारसरणी : उदगम छोटा और गंतव्य श्रेष्ठ / भारतीय मनीषा उदगम को श्रेष्ठ मानती है / संसार परमात्मा का पतन है / मूलस्रोत की ओर वापसी / गीता और उपनिषद में संसार को उलटा वृक्ष कहा गया है / पूरब का त्यागवादी चिंतन: संसार को छोड़ कर परमात्मा में वापस लौटना / पश्चिम में इकट्ठा करना विकास है / पूरब में छोड़ना विकास है / कितनी ही दूरी हो, लेकिन संसार परमात्मा से जुड़ा है / संसार परमात्मा का अभिन्न हिस्सा है / संन्यासी और संसारी का उलटा गणित / संसार की सफलता का उलटापन / संसाररूपी पीपल का उलटा वृक्ष / माता-पिता को आदर अर्थात स्रोत को आदर / काम-वासना से घृणा - मूल स्रोत से घृणा है / काम-वासना में बुद्ध को पैदा करने की क्षमता है / मूल है ऊपर - बहाव है नीचे / सारा विकास नीचे की ओर / ऊंचाई अर्थात उदगम की ओर वापसी / एक नई मनोचिकित्सा : प्राइमल थेरेपी / गर्भावस्था की ओर चेतना का क्रमशः लौटना / प्राइमल स्क्रीम - प्रथम रुदन को लाने का प्रयोग / गहरी चीख और मूलस्रोत की झलक / संसार का सनातन बनना-मिटना / संसार की वर्तुलाकार गति / संसार को ठहराने और बदलने की व्यर्थ कोशिश / संसार में स्थिरता असंभव / संसार की गत्यात्मक द्वंद्वता / असंभव की चेष्टा न करने पर शांति का जन्म / तटस्थ द्रष्टा संसार का अतिक्रमण / संसार को नहीं — बदलें अपने को / स्वभाव के विपरीत चलने पर दुख ही परिणाम / परमात्मा है जड़; वासना है शाखाएं; ज्ञान है पत्ते / वासनाएं निकट हैं परमात्मा के / ज्ञान है मुरदा पत्तों की तरह / वेद अर्थात संसाररूपी वृक्ष को मूल सहित तत्व से जानना / त्याग का अहंकार / वासना का त्याग नहीं— मूल का स्मरण जरूरी / गृहस्थ संन्यासी और संन्यासी गृहस्थ / पीछे लौटने का ध्यान प्रयोग / गर्भासन की चित्तदशा / नमाज का आसन – झुकने की कला है / उदगम भीतर छिपा है / जन्म और मृत्यु से भिन्न स्वयं के होने का बोध / आध्यात्मिक खोज / गर्भावस्था की शांति, गर्भावस्था का आनंद / आनंद का स्वाद हमें है— इसलिए उसे हम खोजते हैं / समाधि अर्थात सारा अस्तित्व तुम्हारा गर्भ हो जाए / पीछे लौटने में भय, क्योंकि दुख का सामना होगा / अतीत से मुक्ति—उससे सचेतन गुजरने से / जितना लंबा अतीत-उतनी ही वापसी मुश्किल / धार्मिक मां-बाप द्वारा बच्चों को अतीत से मुक्त होने की शिक्षा / प्रतिदिन रात्रि सोने के पहले पीछे लौटने का अभ्यास / अतीत की धूल को रोज-रोज झाड़ना / व्यक्ति अपनी शुद्धावस्था में परमात्मा है / व्यक्ति ही अशुद्धावस्था में संसार है / पीछे लौटना सीखें / सुंदर सपनों से हमारा मोह / संसार से हम छूटना नहीं चाहते / संसार को हम और सुंदर बनाना चाहते हैं / सपनों के कारण स्वयं का विस्मरण / समाधि अर्थात सजग सुषुप्ति / स्वयं के प्रारंभ की खोज / शाखाओं में भटकना और जड़ों पर · वापसी / आनंद की पुनः-उपलब्धि और संसार में भटकने की समाप्ति / गीता की शाब्दिक टीकाएं / ध्यान के प्रयोग से ही पता चलेगा कि आप उलटे वृक्ष किस प्रकार हैं / स्वयं के भीतर वापस लौटने में है समाधान |
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दृढ़ वैराग्य और शरणागति ...
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बच्चे माता-पिता को प्रेम क्यों नहीं दे पाते ? / मांगा - कि प्रेम मर जाता है / मां-बाप का बच्चे के प्रति प्रेम एक स्वाभाविक घटना / बच्चे का मां-बाप को प्रेम करना—एक आंतरिक विकास है / एक पूरा सांस्कृतिक वातावरण चाहिए / असहाय को प्रेम करने में अहंकार को प्रसन्नता / बच्चे की घृणा का आधारः परतंत्रता और निर्बलता की अनुभूति / आज्ञा देने और आज्ञा तोड़ने में अहंकार का रस / आज बेटा बाप से ज्यादा जानता है / श्रद्धा का आधार मां-बाप उदगम हैं: इसकी प्रतीति / उदगम से ज्यादा श्रेष्ठ होने का उपाय नहीं / मां-बाप के प्रति अश्रद्धा -- ईश्वर के प्रति अश्रद्धा है /