________________
उदगम का सम्मान गहन विवेक की निष्पत्ति है / आप कहते हैं : वर्तमान में जीयो; कल कहा कि अतीत में लौटो / हम क्या करें? / अतीत से छुटकारा हो जाए, तभी वर्तमान में जीना संभव / अतीत तो जा चुका, लेकिन उसकी स्मृति मन में टंगी रह गई है / अतीत के हरे घावों से भय / अतीत से छूटने की विधि है : अतीत में सचेतन लौटना / वर्तमान में सजग होने पर अतीत का बनना बंद / अतीत की निर्जरा और प्रतिदिन के धूल को झाड़ते रहना / दर्पणवत निर्मलता में परमात्मा का-उदगम का बोध / अतीत में लौटना है विधि और वर्तमान में जीना है लक्ष्य / अतीत की पुनरावृत्ति से उसका मजबूत होना / गहरी आदतें और सतही बौद्धिक निर्णय / रोना बह जाए ताकि हंस सकें / संसार श्रेष्ठ से अश्रेष्ठ की ओर पतन है, तो मनुष्य का असभ्यता
और परतंत्रता से सभ्यता और स्वतंत्रता की ओर हुए विकास में क्या तथ्य है? / सतयुग अर्थात समाज की बच्चे जैसी निर्दोष अवस्था / कलियुग अर्थात समाज की वृद्धावस्था / हृदय की निर्दोषता और बुद्धि की चालाकी / बुढ़ापा बच्चे का विकास है या पतन? / भौतिक समृद्धि बढ़ी है, लेकिन आनंद घटा है / बीइंग और हैविंग / आज का युग सबसे ज्यादा दुखी और विक्षिप्त / चेतना की दृष्टि से पतन हुआ है / मशीनें विकसित हो रही हैं—आदमी खो रहा है / समाधि में ही उलटे वृक्ष का पूरा रूप दिखाई पड़ना / संसार-वृक्ष का न प्रारंभ है, न अंत / वैज्ञानिकों द्वारा अब तक चार अरब सूर्यों की खोज / पुराने सूर्यों का बुझना, नए सूर्यों का जलना / हम एक अनंत श्रृंखला के हिस्से हैं / संसार की केवल गति है—स्थिति नहीं / स्थिति केवल परमात्मा की है / हर चीज बदल रही है / चित्त की दौड़ का रुक जाना ध्यान है / परमात्मा जाना जा सकता है-संसार नहीं / संसार में उलझने की जरूरत नहीं है। संसार का ज्ञान–सापेक्ष, काम-चलाऊ / वृक्ष में न खोजें-बीज को पकड़ें / बीज के भीतर छिपा है उदगम / वैराग्य से अहंकार, ममता और वासना को काटना / वैराग्य-वासना की सतत असफलता का सार-निचोड़ है / वासना के धोखे के प्रति सजगता / बूंद-बूंद अनुभवों का संग्रह / स्मृति-संग्रह में वापस लौटना / शरण का भाव जरूरी-ताकि वैराग्य अहंकार न बन जाए / अस्मिता की दीवाल / नास्तिक धर्मों में शरणागति की दूसरी व्यवस्था जरूरी / हिंदू-धर्म के देवी-देवता-शरण के उपाय / बिना शरण-भाव के मान और मोह का मिटना अत्यंत कठिन / जैन साधु की प्रगाढ़ अकड़ / आचार्य तुलसी और मोरारजी देसाई : एक संस्मरण / अहंकार और मोह के मिटते ही स्वयं के भीतर छिपे परमात्मा की प्रत्यभिज्ञा।
3
संकल्प-संसार का या मोक्ष का ... 197 .
शरणागत-भाव को कैसे उपलब्ध हुआ जा सकता है? / मन अहंकार के आसपास निर्मित / अहंकार अर्थात मैं साध्य हूं और सभी कुछ साधन है । शरणागत-भाव अर्थात मैं केंद्र नहीं / सब संयुक्त है / व्यक्ति होना भ्रांति है / एक-एक पत्ता पूरे अस्तित्व से जुड़ा है / समुद्र, चांद, सूरज, आदमी-सब जुड़े हैं / समुद्र और गर्भ का एक-सा खारापन / चांद के बढ़ने-घटने का मन पर प्रभाव / जीवन का केंद्र व्यक्ति में नहीं अस्तित्व में / इतनी अकड़ किस बात की है!/ शरणागति के दो मार्ग / शून्य हो जाएं या सब अस्तित्व पर छोड़ दें / हो सकता है कि समर्पण भी अहंकार का ही एक कृत्य हो / बुद्ध, महावीर का मार्ग शून्य होने का / कृष्ण, क्राइस्ट, राम, मोहम्मद का मार्ग समर्पण का / महावीर के मार्ग पर अहंकार का खतरा / मिटना है-चाहे शून्य हो कर या समर्पित हो कर / असहाय अवस्था के बोध से शरणागति का जन्म / व्यक्ति एक लहर है, एक बूंद है / आंख खोल कर जीवन को देखना भर है / प्राइमल स्क्रीम घट गई, इसकी क्या पहचान है? / फूल की तरह हलकापन / स्वास्थ्य का बोध / जितना बड़ा अहंकारी, उतना बड़ा बोझ / बिना समस्याओं के
अहंकार को बेचैनी / सारी व्यथा का खो जाना / दुख का अभाव और आनंद की अनुभूति / रेचन का साहस / दुख को भी हम पकड़ते हैं / काम-वासना, फिल्म, शराब में दुख का विस्मरण / बड़ी बीमारी से भी अहंकार प्रसन्न / प्राइमल स्क्रीम-चीत्कार में दुख रेचन / दुख का स्वप्न की तरह विलीन हो जाना / वैराग्य का बोध अचेतन मन तक कैसे प्रवेश करे? / अनुभव से गुजर कर ही बोध का पकना / दूसरों के अनुभव काम न आएंगे/ हम बिना दुख से गुजरे वैराग्य और आनंद चाहते हैं / दुख की गहनता में वैराग्य का जन्म / दुख से बचने के उपाय मत खोजो / मृत्यु का बोध / जीवन के तथ्यों से आंखें चुराना / वैराग्य गहरा हो, तो ही गुरु और शास्त्र से संबंध संभव / समग्रता से जीएं / सभी चीजें पर-प्रकाशित हैं / परमात्मा स्व-प्रकाशित है / स्वयं का होना स्वयंसिद्ध है / स्वयं का बोध-बिना इंद्रियों के / वह प्रकाश आप स्वयं हैं / जो भी देखा जा सकता है, वह आपका स्वभाव नहीं है / द्रष्टा को देखने का कोई उपाय नहीं / बिना ईंधन के शाश्वत जलने वाली चेतना की ज्योति / वह चैतन्य प्रकाश सब के भीतर छिपा है / चैतन्य जीवात्मा ही मन और इंद्रियों को चलाता है / वासना बांधती है—इंद्रियां नहीं / इंद्रियों और आपके बीच सेतु है-आपकी चाह / चाह को आप गिरा सकते हैं | आपने ही पकड़ रखा है-मन और इंद्रियों को / मृत्यु के पश्चात वासनाओं द्वारा नए शरीर में प्रवेश / शरीर बदल जाते हैं, वासना की यात्रा जारी रहती है / इंद्रियों से दुश्मनी-धीमी आत्महत्या है / राग और वैराग्य–दोनों एक साथ संभव नहीं / संसार की यात्रा मेरा निर्णय है / संसार से मुक्ति भी मेरा निर्णय होगी।