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अव्यभिचारी भक्ति...149
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एक सत्य को कहने के लिए सिद्धांतों का इतना बड़ा जाल क्यों खड़ा किया जाता है ? / बुद्धि को तृप्त करने के लिए / प्रश्न व्यर्थ हैं / सदगुरु के उत्तर - ताकि घिस घिस के जिज्ञासा शांत हो जाए / पूछ-पूछ कर थकना - करने का प्रारंभ / ज्यादा बुद्धि के लिए ज्यादा सिद्धांतों की जरूरत / बुद्धि की खुजली और गुरु का धैर्य / प्रश्नों को गिराने की योजना / कांटे से कांटा निकालना / शब्दों की चुभन / शास्त्र की दवाई / स्वस्थ होने पर औषधि को फेंक देना / असत्य को काटना - सत्य देना नहीं / संदेह का एंटिडोट - शास्त्र / कम संदेह - तो कम शास्त्रों की जरूरत / करने की व्यर्थता को जान पाना साधनाओं की क्या इतनी ही उपादेयता है? / करने की व्यर्थता का बोध और कर्ता का गिरना / अहंकार को सिद्ध करने की ही कोशिश – धन, ज्ञान, त्याग / आत्मघात - असफल अहंकारियों द्वारा ही / अहंकार की विफलता / संसार में हार से परमात्मा में विजय संभव / गुरु का प्रयासः तुम्हें न-करने में ले जाना / झूठे अनुभवः झूठे गुरु / सदगुरु का दोहरा काम / सदगुरु तुम्हें मिटाएगा / करने और होने का फर्क / हमारी आत्मवंचना / सागर बिच मीन पियासी / उसे कभी खोया ही नहीं / भटक कर स्वयं पर वापसी / साक्षीभाव साधने के लिए क्या करूं? / साक्षीभाव कृत्य नहीं है / कर्म की आदत / साक्षीभाव अर्थात कर्ता न बनना सिर्फ देखना / हो जाए, तो ठीक न हो, तो ठीक / सहजता और साक्षीभाव / चुपचाप प्रतीक्षा / जब तक कर्ता तब तक साक्षी नहीं / साक्षीभाव को वासना न बनाएं / सिर्फ देखने की कलां / अविवाहित रह कर काम-वासना का साक्षी बनना कब संभव है? / अविवाहित रहने की इच्छा जिम्मेदारी से पलायन / विवाह और वासना पर्यायवाची नहीं हैं / विवाह का बंधन; विवाह के दुख / दुविधा बताती है कि भीतर वासना है / साक्षीभाव के साथ वासना का अनुभव - मुक्तिदायी / भागें मत – जागें / अनुभव में पकें / जरा भी रस हो, तो उसे भोग ही लें / सहज बनें / सजग अनुभव से क्रांति / अव्यभिचारी भक्तिरूप योग / अनेक दिशाओं में बहता मन व्यभिचारी है / व्यभिचारी मन वाला कभी शांत नहीं हो सकता / एकजुट ऊर्जा से सत्य की उपलब्धि सरल / समग्र चेतना से निकला कृत्य - आनंद / प्रार्थना अर्थात चित्त की अव्यभिचारी धारा / भजन अर्थात प्रभु को पाने की सतत गहन अभीप्सा / एक धुन – सतत भीतर बजती / स्टैनफोर्ड युनिवर्सिटी के प्रयोग / रुचि अरुचि के अनुकूल आंख की पुतली का छोटा-बड़ा होना / प्रकाश में सिकुड़ना, अंधेरे में फैलना / नग्न स्त्री का चित्र देख पुरुष की पुतली का फैलना / नग्न पुरुष में स्त्री को कोई रुचि नहीं / छोटे बच्चे का चित्र देख स्त्री की पुतली का बड़ा होना / स्त्री का शिखर मातृत्व में / पुरुष का शिखर - स्वामित्व में / रजनीश का संन्यासी स्वामी कहलाता / रजनीश की संन्यासिनी मां कहलाती / ऊपरी सतही भाव का कोई मूल्य नहीं / परमात्मा को अपनी वासनाओं की लिस्ट में न जोड़ें / प्रत्येक कृत्य प्रभु स्मरण बन जाए / परिधि पर अनेक / केंद्र पर एक ही संभव / ब्रह्म में एकीभाव की योग्यता / आनंद, ब्रह्म, निर्वाण - सब का आश्रय मैं हूं / कृष्ण का मैं अर्थात समग्र अस्तित्व की शुद्धतम अवस्था / गुणातीत परब्रह्म से एकीभाव - अव्यभिचारी चेतना की
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धारा का ।
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