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________________ * आत्म-भाव और समत्व और बैठे हैं और साइकिल चल रही है। और एक अनूठा अनुभव होगा निरीक्षण करें। उनके आत्मघात का कारण यह नहीं है कि वे जीवन कि मैं नहीं चला रहा हूं, साइकिल चल रही है। और साइकिल से मुक्त हो गए हैं। उनके आत्मघात का सदा ही यही कारण है कि इसलिए चल रही है कि पीछे मैंने उसे चलाया था। | जीवन से उन्होंने जो चाहा था, वह जीवन उन्हें नहीं दे पाया। वे तो जन्मों-जन्मों में आपने शरीर को चलाया है। और | जीवन से मुक्त नहीं हुए हैं, जीवन से निराश हो गए हैं। और निराश जन्मों-जन्मों में आपने अपने गुणों को गति दी है। सब गुणों का | उसी मात्रा में होते हैं हम, जिस मात्रा में हमने आशा बांधी हो। मोमेंटम हो गया है, सब गुणों ने अपनी गति पकड़ ली है। अब वे | किसी ने सोचा हो कि जीवन में स्वर्ग मिलने वाला है और वह न चलते जाएंगे। जब तक गति क्षीण न हो जाए, तब तक आपका | मिले, तो दुख होता है। और वैसा व्यक्ति आत्मघात कर लेता है। शरीर चलता रहेगा। लेकिन यह चलना वैसा ही है, जैसे बिना पैडल ___ ज्ञानी को न तो आकांक्षा है कि जीवन चले, न रुकने का कोई चलाए साइकिल चल रही हो। सवाल है। क्योंकि न चलने से कुछ मिलने की आशा है, न रुकने पर बाहर से देखने वाले को तो यही लगेगा. साइकिल चल रही | से कुछ मिलने की आशा है। न तो वह सोचता है कि जीवन में है, इसलिए आप चला रहे होंगे। उसका लगना भी ठीक है। लेकिन चलता रहूं, तो मुझे कोई स्वर्ग मिलने वाला है। न वह सोचता है आप जानते हैं कि अब आप चलाना छोड़ दिए हैं। अब आप सिर्फ | कि रुक जाने से कोई स्वर्ग मिलने वाला है। वह जानता है कि स्वर्ग प्रतीक्षा कर रहे हैं कि साइकिल रुक जाए। तो मैं हूं। चलने और रुकने से उसका कोई भी संबंध नहीं है। यह जो भीतर की भाव-दशा है. इसे हमें पहचानने में कठिनाई | तो अगर वह कोशिश करके ब्रेक भी लगाए, तो समझना कि होती है. क्योंकि हम हमेशा गति दे रहे हैं। और हमें खयाल में भी | अभी पैडल मार रहा है। क्योंकि ब्रेक लगाना भी पैडल मारने का नहीं आता कि बिना गति दिए जीवन कैसे चलेगा। ही हिस्सा है। वह कुछ कर रहा है। अभी कर्तापन उसका नहीं गया लेकिन जीवन चलता है। थोड़े दिन चल सकता है। उन थोड़े दिन | है। साक्षी नहीं हुआ। अभी ब्रेक लगा रहा है। कल पैडल लगा रहा का मजा ही और है। आपने पतवार उठाकर रख ली है, और नाव था; अब वह ब्रेक लगा रहा है। लेकिन अभी साइकिल से उसका अपनी गति से बही चली जाती है। न आपकी अब आकांक्षा है कि कर्तापन जुड़ा हुआ है। नाव चले...। __और साक्षीपन का अर्थ हुआ कि अब वह कुछ भी नहीं कर रहा और ध्यान रहे, आप यह भी कह सकते हैं कि अगर चलाना बंद | | है। अब जो हो रहा होगा, वह जानता है कि प्रकृति से हो रहा है। कर दिया है, तो आप ब्रेक भी लगाकर साइकिल से उतर सकते हैं! वही कृष्ण कह रहे हैं। आप छलांग लगाकर कूद सकते हैं! जब चलाना ही बंद कर दिया । कृष्ण कह रहे हैं कि जिस दिन कोई जान लेता है कि गुण ही गुण है, तो अब साइकिल पर बैठे रहने का क्या प्रयोजन है? में बर्त रहे हैं, मैं पृथक हूं, मैं कुछ भी नहीं कर रहा हूं, मैं करने . इसे थोड़ा समझ लेना जरूरी है। क्योंकि जब तक किसी चीज | वाला ही नहीं हूं, जिस दिन ऐसा द्रष्टा-भाव गहन हो जाता है, उसी को रोकने की आकांक्षा बनी रहे, उसका अर्थ है कि चलाने की दिन व्यक्ति गुणातीत अवस्था को उपलब्ध हो जाता है। उसी दिन आकांक्षा का विपरीत रूप मौजूद है। जब आकांक्षा पूरी ही जाती है, | वह सच्चिदानंदघन हो जाता है, उसी क्षण। तो न चलाने का मन रह जाता है, न रुकने का मन रह जाता है। रुकने की वासना भी चलने की वासना का हिस्सा है। रुकना भी क्योंकि ब्रेक लगाने का तो एक ही अर्थ होगा कि बुद्ध और महावीर | | चलने का एक ढंग है; क्योंकि रुकना भी एक क्रिया है। तो ऐसा को आत्महत्या कर लेनी चाहिए। और कोई अर्थ नहीं हो सकता। व्यक्ति जिसकी प्रवृत्ति खो गई है...। अब कोई प्रयोजन तो रहा नहीं शरीर का, इससे छलांग लगा जानी ध्यान रहे, हम तो हमेशा विपरीत में सोचते हैं, इसलिए कठिनाई चाहिए। लेकिन जीवन में ब्रेक लगाने का तो एक ही अर्थ है कि | होती है। हम सोचते हैं, जिसकी प्रवृत्ति खो गई है, वह निवृत्ति को आप आत्महत्या कर लें, आत्मघात कर लें। साधेगा। निवृत्ति भी प्रवृत्ति का एक रूप है। कुछ करना भी ध्यान रहे, आत्मघात करने वाला व्यक्ति जीवन से मुक्त नहीं | | कर्ता-भाव है; और कुछ न करने का आग्रह करना भी कर्ता-भाव हुआ है। जीवन से बंधे होने के कारण लोग आत्मघात करते हैं। यह | | है। अगर मैं कहता हूं कि यह मैं न करूंगा, तो इसका अर्थ यह हुआ उलटा दिखाई पड़ेगा। लेकिन जो लोग आत्मघात करते हैं, उनका | कि मैं मानता हूं कि यह मैं कर सकता था। यह भी मैं मानता हूं कि 1351
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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