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* गीता दर्शन भाग-7 *
है ।
यह मेरा कर्तृत्व है; चाहूं तो करूं, और चाहूं तो न करूं।। | स्त्रियों के पीछे भागो। अगर इससे रुकना है, तो मन कहता है,
लेकिन साक्षी का अर्थ है कि न तो मैं कर सकता हं, और न न स्त्रियों से भागो। मगर भागते रहो। क्योंकि मन का संबंध स्त्री से कर सकता हूं। न तो प्रवृत्ति मेरी है, न निवृत्ति मेरी है। प्रवृत्ति भी नहीं है, भागने से है। या तो स्त्री की तरफ भागो, या स्त्री की तरफ गुणों की है और निवृत्ति भी गुणों की है। गुण ही बर्त रहे हैं। वे ही | | पीठ करके भागो, लेकिन भागो। अगर भागते रहे, तो कर्तापन बना चल रहे हैं; वे ही रुक जाएंगे। तो जब तक चल रहे हैं, मैं उन्हें | रहेगा। अगर भागना रुका, तो कर्तापन रुक जाएगा। चलता हुआ देखूगा। और जब रुक जाएंगे, तब मैं उन्हें रुका हुआ तो मन ऐसे समय तक भी दौड़ाता रहता है, जब कि दौड़ने में देखूगा। जब तक जीवन है, तब तक मैं जीवन का साक्षी; और जब कोई अर्थ भी नहीं रह जाता है। मृत्यु होगी, तब मैं मृत्यु का साक्षी रहूंगा। कर्ता मैं न बनूंगा। मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन अपने चिकित्सक के पास गया।
इसलिए निवृत्ति को आप मत सोचना कि वह वास्तविक निवृत्ति | | तब वह बहुत बूढ़ा हो गया था। नब्बे वर्ष उसकी उम्र थी। जीर्ण-शीर्ण है। अगर उसमें कर्ता का भाव है. तो वह प्रवत्ति का ही शीर्षासन उसका शरीर हो गया था। आंखों से ठीक दिखाई भी नहीं पड़ता था। करता हुआ रूप है। वह उसका ही उलटा रूप है। कोई दौड़ रहा था हाथ से लकड़ी टेक-टेक बामुश्किल चल पाता था। कर्ता-भाव से, कोई खड़ा है कर्ता-भाव से; लेकिन कर्ता-भाव अपने चिकित्सक से उसने कहा कि मैं बड़ी दुविधा में और बड़ी मौजूद है।
मुश्किल में पड़ा हूं। कुछ करें। चिकित्सक ने पूछा कि तकलीफ बुद्ध ने कहीं कहा है कि न तो मैं प्रवृत्त हूं अब और न निवृत्त; न | क्या है ? नसरुद्दीन ने कहा कि संकोच होता है कहते, लेकिन अपने तो मैं गृहस्थ हूं अब और न संन्यस्त; न तो मैं कुछ पकड़े हूं और चिकित्सक को तो बात कहनी ही पड़ेगी। मैं अभी भी स्त्रियों का न मैं कुछ छोड़ता हूं।
पीछा करता हूं। इतना बूढ़ा हो गया हूं, अब यह कब रुकेगा? मैं इसे ठीक से खयाल में ले लें, क्योंकि जीवन के बहुत पहलुओं अभी भी स्त्रियों का पीछा कर रहा हूं। आंखों से दिखाई नहीं पड़ता, पर यही अड़चन है।
पैरों से चल नहीं सकता; लेकिन स्त्रियों का पीछा करता हूँ! हम सोचते हैं कि कुछ कर रहे हैं, इसको न करें। हमारा ध्यान उसके चिकित्सक ने कहा, नसरुद्दीन, चिंता मत करो। यह कोई क्रिया पर लगा है, हमारा ध्यान कर्ता पर नहीं है। क्योंकि करने में | बीमारी नहीं है। यह तुम्हारे स्वस्थ होने का प्रतीक है कि अभी भी भी मैं कर्ता हूं; न करने में भी मैं कर्ता हूं।
तुम जिंदा हो नब्बे साल में! इससे तुम्हें दुखी नहीं होना चाहिए। सारी चेष्टा द्रष्टा पुरुषों की यह है कि कर्ता का भाव मिट जाए। नसरुद्दीन ने कहा कि वह मेरा दुख भी नहीं है। तुम फिर गलत मैं होने दूं, करूं न। जो हो रहा है, उसे होने दूं; उसमें कुछ छेड़छाड़ | समझे। तकलीफ यह है कि मैं स्त्रियों का पीछा तो करता हूं, लेकिन भी न करूं। जहां कर्म जा रहे हों, जहां गुण जा रहे हों, उन्हें जाने यह भूल गया हूं कि पीछा क्यों कर रहा हूं। आई चेज वीमेन, बट दूं। मैं उन पर सारी पकड़ छोड़ दूं।
आई कांट रिमेंबर व्हाय। तकलीफ मेरी यह है कि मुझे अब याद इसीलिए संतत्व अति कठिन हो जाता है। साधुता कठिन नहीं नहीं पड़ता कि मैं किसलिए पीछा कर रहा हूं। और अगर स्त्री को है। क्योंकि साधुता निवृत्ति साधती है। वह प्रवृत्ति के विपरीत है। | पकड़ भी लिया, तो करूंगा क्या! यह मुझे याद नहीं रहा है। वह गृहस्थ के विपरीत है। वहां कुछ करने को शेष है, विपरीत करने __जिंदगी में आपकी बहुत-सी क्रियाएं एक न एक दिन इसी जगह को शेष है। कोई हिंसा कर रहा है, आप अहिंसा कर रहे हैं। कोई | पहुंच जाती हैं, जब आप करते रहते हैं, और अर्थ भी खो जाता है, धन इकट्ठा कर रहा है, आप त्याग कर रहे हैं। कोई महल बना रहा स्मृति भी खो जाती है कि क्यों कर रहे हैं। लेकिन पुराना मोमेंटम है, आप झोपड़े की तरफ जा रहे हैं। कोई शहर की तरफ आ रहा है, गति है। पहले दौड़ता रहा है, दौड़ता रहा है। अब दौड़ने का है, आप जंगल की तरफ जा रहे हैं। वहां कुछ काम शेष है। | अर्थ खो गया; मंजिल भी खो गई; अब प्रयोजन भी न रहा। लेकिन
मन को काम चाहिए। अगर धन इकट्ठा करना बंद कर दें, तो | पुरानी आदत है, दौड़े चला जा रहा है। मन कहेगा, बांटना शुरू करो। लेकिन कुछ करो। करते रहो, तो शरीर के साथ, शरीर के गुणों के साथ यही घटना घटती है। मन जिंदा रहेगा। इसलिए मन तत्काल ही विपरीत क्रियाएं पकड़ा | रस्सी जल भी जाती है, तो उसकी अकड़ शेष रह जाती है। जली देता है।
| हुई, राख पड़ी हुई लकड़ी में भी उसकी पुरानी अकड़ का ढंग तो
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