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* गीता दर्शन भाग-7
समदुःखसुखः स्वस्थः समलोष्टाश्मकाञ्चनः । | शून्य हो जाती हैं। लेकिन यह बात किसी और अर्थ में गलत भी है। तुल्यप्रियाप्रियो धीरस्तुल्यनिन्दात्मसंस्तुतिः ।। २४ ।। | क्योंकि वीतरागता के बाद भी इस देह में कुछ दिन रहना होगा। बुद्ध
मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयोः । | चालीस वर्षों तक इस देह में थे। ज्ञान की उपलब्धि के बाद भी शरीर सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीतः स उच्यते । । २५ ।।। | को भूख लगेगी, प्यास भी लगेगी। शरीर रुग्ण भी होगा। शरीर और जो निरंतर आत्म-भाव में स्थित हुआ, दुख-सुख को | विश्राम भी चाहेगा। शरीर को आक्सीजन की भी जरूरत होगी। जब समान समझने वाला है तथा मिट्टी, पत्थर और सुवर्ण में | तक शरीर है, तब तक शरीर की सारी अपनी प्रकृति के अनुकूल समान भाव वाला और धैर्यवान है; तथा जो प्रिय और अप्रिय जरूरतें होंगी। को बराबर समझता है और अपनी निंदा-स्तुति में भी समान और ये जो तीन गुण हैं, सत्व, रज, तम, ये तीन भी शरीर के भाव वाला है।
| गुण हैं। जैसे भूख-प्यास शरीर को लगेगी, वैसे ही सत्व, रज, तम तथा जो मान और अपमान में सम है एवं मित्र और वैरी के की प्रक्रियाएं भी जारी रहेंगी। फर्क जो हो जाएगा, वह यह कि भूख
पक्ष में भी सम है, वह संपूर्ण आरंभों में कर्तापन के । लगते समय भी बुद्ध जानते हैं कि यह भूख मुझे नहीं लगी है, यह अभिमान से रहित हुआ पुरुष गुणातीत कहा जाता है। | भूख शरीर को लगी है। प्यास लगते समय भी जानते हैं कि इस
प्यास का मैं साक्षी हूं, भोक्ता नहीं हूं, कर्ता नहीं हूं।
लेकिन शरीर को तो प्यास लगेगी ही। शरीर को तो भूख लगेगी पहले कुछ प्रश्न।
ही। शरीर के जो भी गुणधर्म हैं, वे जारी रहेंगे। शुद्धतम रूप में जारी पहला प्रश्नः आमतौर से समझा जाता है कि रहेंगे। उनमें चेतना के जड जाने से जो विक्षिप्तता पैदा होती है. वह ज्ञानोपलब्ध व्यक्ति की समस्त वासनाएं निर्जरा हो | खो जाएगी। इसलिए प्रवृत्ति जारी रहेगी। जाती हैं और वे सभी तरह की प्रवृत्ति के पार हो जाते | बुद्ध भी चलते हैं, उठते हैं, समझाते हैं, बोलते हैं, सोते हैं, हैं। लेकिन आपने कल-परसों के प्रवचन में कहा कि | भोजन करते हैं, जागते हैं। सारी क्रियाएं जारी हैं। लेकिन इन ज्ञानार्जन के बाद भी उनकी प्रकृतिजन्य प्रवृत्तियां काम क्रियाओं के कारण वे बंधते नहीं हैं; वह चीज टूट गई है। इन करती हैं। यहां तक कि वे काम, क्रोध और हिंसा में क्रियाओं से उनका कोई तादात्म्य नहीं है। ये क्रियाएं उनके भी उतरते हैं, यद्यपि वे स्वयं उसकी ओर मात्र | आस-पास हो रही हैं; बीच का केंद्र इनसे मुक्त हो गया है। चेतना साक्षी-भाव रखते हैं। इसे समझाएं।
| इनसे अस्पर्शित और अछूती रह जाती है।
इसलिए जो जन्मों-जन्मों में व्यक्तित्व के आधार बने होंगे, वे
आधार काम करेंगे। इस शरीर के गिर जाने तक शरीर सक्रिय होगा। - स संबंध में कुछ बहुत मूलभूत बातें समझ लेनी | | लेकिन यह सक्रियता वैसी ही हो जाएगी, जैसे आप साइकिल चला र जरूरी हैं।
रहे हों और पैडल चलाना बंद कर दिया हो, फिर सिर्फ पुरानी गति पहली, साधारणतः हम ऐसा मानते रहे हैं, सुनते रहे हैं और मोमेंटम के कारण साइकिल थोड़ी दूर चलती चली जाए। कि जो व्यक्ति वीतरागता को, ज्ञान की पूर्णता को उपलब्ध हो बाहर से देखने वाले को तो ऐसा लगेगा कि अगर आपने साइकिल जाएगा, उसकी समस्त वृत्तियां क्षीण हो जाएंगी। यह ठीक भी है चलानी बंद कर दी है, तो साइकिल रुक क्यों नहीं जाती है! और गलत भी। ठीक तब है, जब उस व्यक्ति का शरीर गिर जाए। आप पैडल चलाने बंद कर दिए हैं, लेकिन आप मीलों से और यह अंतिम शरीर होगा। वीतरागता को उपलब्ध व्यक्ति का साइकिल चला रहे हैं, तो एक गति चकों ने ले ली है, वह गति यह शरीर अंतिम होगा। इसके बाद नए शरीर को ग्रहण करने का अपनी निर्जरा करेगी। अब आप बिना पैडल मारे भी बैठे हैं कोई उपाय नहीं है। क्योंकि वासनाओं के बीज, मूल बीज भस्म हो
साइकिल पर, साइकिल चलती चली जाएगी। यह जो चलना होगा, गए। तो नया जन्म तो नहीं होगा।
इसको आप नहीं चला रहे हैं। अब यह साइकिल ही चल रही है। इसलिए यह बात ठीक है कि वीतराग पुरुष की समस्त प्रवृत्तियां | | इसमें आप कर्ता नहीं हैं। आप सिर्फ साक्षी हैं। आप साइकिल पर