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* संन्यास गुणातीत है *
गिराई जा रही थीं। पुराना क्षत्रिय था। मेरे जिंदा रहते मेरे लड़के को | उस स्थिति से चलायमान नहीं होता है। धोखा दे रहे हैं! अभी मैं जिंदा हूं। क्या समझा है उन्होंने? मुनि हो | | गुण प्रतिपल सक्रिय हैं; उनके कारण जो चलायमान नहीं होता गया, इससे क्या फर्क पड़ता है! अभी आ जाऊं, तो सब का | है। जैसे एक दीया जल रहा है। हवा का झोंका आया; दीए की लौ फैसला कर दूंगा।
कंपने लगी। ऐसी हमारी स्थिति है। कोई भी झोंका आए, किसी भी तो महावीर ने कहा कि इस समय अगर वह मर जाए, तो स्वर्ग | | गुण से हम फौरन कंपने लगते हैं। गुण के झोंके आएं, तूफान चलें, जाएगा। तो बिंबसार ने कहा, अब दूसरी पहेली आप मुझे कह ही | भीतर कोई कंपन न हो। तूफान आएं और जाएं, आप अछूते खड़े दें। अब क्या हो गया इतनी जल्दी?
रहें। न तो बुरा और न भला, कोई भी भाव पैदा न हो। न तो निंदा तो महावीर ने कहा कि जब तलवार उसने वापस रखी, सिर पर | और न प्रशंसा, कोई चुनाव पैदा न हो, च्वाइसलेस, बिना चुने हाथ फेरा अपना ताज सम्हालने को, तो वहां तो कोई ताज नहीं चुपचाप खड़े रहें। था, घुटा हुआ सिर था। जब सिर पर हाथ गया, तो उसने कहा, सारी नीति हमें चुनाव सिखाती है और धर्म अचुनाव सिखाता है। मैं भी पागल हूं। मैं मुनि हो गया; प्रसन्न कुमार तो मर ही चुका | नीति कहती है, यह अच्छा है, यह बुरा है। जब अच्छा उठे, तो है। कैसी तलवार? किसकी हत्या? मैं यह क्या हत्या कर रहा हूं!| | प्रसन्न होकर करना। जब बुरा उठे, तो दुखी होना और करने से सजग हो गया। उसे हंसी आ गई कि मन भी कैसा पागल है। इस रुकना। समय वह बिलकुल साक्षी है। इस समय वह जो परदे से उसका यह गीता का सूत्र तो बिलकुल विपरीत है। यह कह रहा है, बुरा तादात्म्य हो गया था, वह टूट गया। अगर अभी मर जाए, तो स्वर्ग | | उठे कि भला उठे, तुम कोई निर्णय ही मत लेना। बरा उठे, तो बरे जा सकता है।
| को उठने देना। भला उठे, तो भले को उठने देना। न भले में स्तुति • बड़ी कठिनाई है। लक्षण सब बाहर हैं। इसलिए लक्षण आप | मानना, न बुरे में निंदा बनाना। तुम दोनों को देखते रहना कि दूसरों पर मत लगाना। लक्षण आप अपने पर ही लगाना, तो ही | | तुम्हारा जैसे दोनों से कोई प्रयोजन नहीं है। जैसे रास्ते पर लोग चल काम के हो सकते हैं।
| रहे हैं और तुम किनारे खड़े हो। नदी बह रही है और तुम किनारे जो पुरुष सत्वगुण के कार्यरूप प्रकाश को...।
खड़े हो। आकाश में बादल चल रहे हैं और तुम नीचे बैठे हो। जब सत्वगुण का प्रकाश हो, और ज्ञान जन्मे, और वैराग्य का | | तुम्हारा कोई प्रयोजन नहीं। तुम्हारा कुछ लेना-देना नहीं। तुम उदय हो। .
बिलकुल अलग-थलग हो। रजोगुण के कार्यरूप प्रवृत्ति को...।
___ जब इस अलगपन का भाव पूरा उतर जाए, तभी चलायमान होने कर्म उठे, कर्मों का जाल फैले।
| से बचा जा सकता है। अन्यथा हर चीज चलायमान कर रही है। हर तमोगुण के कार्यरूप मोह को...।
| घटना, जो आस-पास घट रही है, आपको हिला रही है। हर घटना तमोगुण के कारण लोभ और मोह और अज्ञान जन्मे। | आपको बदल रही है। तो आप मालिक नहीं हैं। हवाओं में कंपते इन तीनों गुणों की प्रवृत्ति हो या निवृत्ति हो...।।
हुए एक झंडे के कपड़े की तरह हैं। न तो प्रवृत्ति में मानता है कि बुरा है, न निवृत्ति में मानता है कि | एक झेन कथा है। बोकोजू के आश्रम में मंदिर पर झंडा था बौद्धों भला है। न तो प्रवृत्ति से बचना चाहता है, और निवृत्ति होने पर न | का। बोकोजू एक दिन निकलता था, देखा कि सारे भिक्षु इकट्ठे हैं प्रवृत्ति करना चाहता है। न तो आकांक्षा करता है कि ये हों, और न | | और बड़ा विवाद हो रहा है। विवाद यह था, एक भिक्षु ने, जो बड़ा आकांक्षा करता है कि ये न हों। जो भी हो रहा है, उसे चुपचाप | | तार्किक था, उसने सवाल उठाया था कि झंडा हिल रहा है या हवा प्रकृति का खेल मानकर देखता रहता है। इसे कृष्ण ने मौलिक | | हिल रही है? लक्षण कहा गुणातीत का।
उपद्रव हो गया। कई मंतव्य हो गए। किसी ने कहा, हवा हिल तथा जो साक्षी के सदृश स्थित हआ गणों के द्वारा विचलित नहीं | रही है। झंडा कैसे हिलेगा, अगर हवा नहीं हिलेगी तो? हवा हिल किया जा सकता है और गुण ही गुणों में बर्तते हैं, ऐसा समझता | रही है। झंडा तो सिर्फ पीछा कर रहा है। किसी ने कहा, इसका हुआ जो सच्चिदानंदघन परमात्मा में एकीभाव से स्थित रहता है एवं | प्रमाण क्या? हम कहते हैं, झंडा हिल रहा है, इसलिए हवा हिलती
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