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* गीता दर्शन भाग-7 *
मालूम पड़ रही है। अगर झंडा न हिले, तो हवा नहीं हिलेगी। किसी ने कहा, दोनों हिल रहे हैं।
बोकोजू वहां आया और उसने कहा कि सब यहां से हटो और अपने वृक्षों के नीचे बैठकर ध्यान करो। न झंडा हिल रहा है, न हवा हिल रही है, न दोनों हिल रहे हैं; तुम्हारे मन हिल रहे हैं। जब तुम्हारा मन न हिलेगा, तब झंडा भी नहीं हिलेगा, हवा भी नहीं हिलेगी। तुम यहां से भागो और इसकी फिक्र करो कि तुम्हारा मन न हिले।
मन तभी रुकेगा हिलने से जब हम निर्णय लेना बंद करें और स्वीकार करने को राजी हो जाएं; और जान लें कि यह वर्तन है गुणों का, यह हो रहा है। इससे मेरा कुछ लेना-देना नहीं है। मैं इसमें छिपा हूं भीतर जरूर। यह मेरे चारों तरफ घट रहा है, मुझमें नहीं घट रहा है। मुझ से बाहर घट रहा है।
जो साक्षी के सदृश स्थित हुआ गुणों के द्वारा विचलित नहीं किया जा सकता। गुण ही गुणों में बर्तते हैं, ऐसा समझता हुआ जो सच्चिदानंदघनरूप परमात्मा में एकीभाव से स्थित रहता है एवं उस स्थिति से चलायमान नहीं होता है।
और जैसे ही कोई व्यक्ति गुणों के वर्तन से वर्तित नहीं होता, गुण कंपते रहते हैं और वह अकंप होता है, दोहरी घटना घटती है। एक तरफ जैसे ही हमारा संबंध गुणों से टूटता है, वैसे ही हमारा संबंध निर्गुण से जुड़ जाता है। इसे ठीक से समझ लें।
जब तक हम गुणों से जुड़े हैं, तब तक पीछे छिपा हुआ निर्गुण परमात्मा हमारे खयाल में नहीं है। क्योंकि हमारे पास ध्यान एक धारा वाला है। वह सारा ध्यान गुणों की तरफ बह रहा है। जैसे ही हम गुणों से टूटते हैं, यही ध्यान परमात्मा की तरफ बहना शुरू हो जाता है।
निर्गुण हमारे भीतर छिपा है। निर्गुण हम हैं और हमारे चारों तरफ गुणों का जाल है। अगर गुणों से बंधे रहेंगे, तो निर्गुण का बोध नहीं होगा। अगर गुणों से मुक्त होंगे, तो निर्गुण में स्थिति हो जाती है। और निर्गुण में स्थिति ही सच्चिदानंदघनरूप परमात्मा में स्थिति है। आज इतना ही।