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* गीता दर्शन भाग-7 *
इसीलिए मैं कह रहा हूं कि लक्षण बाहर हैं और असली बात तो | | मेरा मित्र कैसी पवित्रता को उपलब्ध हो गया! नग्न, पत्थर की तरह भीतर है। असली बात भीतर है। वह आप ही पहचान सकते हैं कि शांत खड़ा है! जब आप क्रोध में गए थे, तो आप सच में क्रोध का सुख ले रहे थे वह नमस्कार करके, बिना बाधा दिए, महावीर के दर्शन को या साक्षी थे। क्योंकि ध्यान रहे, जो आदमी क्रोध का साक्षी है, आया था। महावीर और घने जंगल में किसी वृक्ष के नीचे उसका क्रोध अपने आप निर्बीज हो जाएगा। क्रोध उठेगा भी, तो भी | विराजमान थे। वह वहां गया। वहां जाकर उसने कहा कि एक बात उसमें प्राण नहीं होंगे। क्योंकि प्राण तो हम डालते हैं। उसमें धुआं मुझे पूछनी है। बिंबसार ने कहा कि मेरा मित्र था प्रसन्न कुमार, वह ही होगा, आग नहीं हो सकती।
आपका मुनि हो गया है। उसने सब छोड़ दिया। हम संसारी हैं; कामवासना उठेगी, तो भी आपके साक्षी-भाव के रहने से | अज्ञानी हैं: भटकते हैं। उसे रास्ते में खडे देखकर मेरा चित्त बडा कामवासना आपको ज्यादा दूर ले नहीं जाएगी। थोड़ी आनंदित हुआ। मेरे मन में भी भाव उठा कि कब ऐसा शुभ क्षण हिलेगी-डलेगी: विदा हो जाएगी। क्योंकि आपके बिना सहयोग | आएगा कि मैं भी सब छोड़कर ऐसा ही शांति में लीन हो जाऊंगा! के, आपके साक्षी-भाव को खोए बिना कोई भी चीज बहुत दूर तक | एक सवाल मेरे मन में उठता है। अभी जैसा खड़ा है प्रसन्न कुमार, नहीं जा सकती। जब आप साथ होते हैं, तब चीजें दूर तक जाती | शांत, मौन, अगर उसकी अभी मृत्यु हो जाए, तो वह किस हैं। लेकिन यह तो भीतरी बात है। इसको तय करना कठिन है। महालोक में जन्म लेगा? इसलिए
लिए जैनों ने कृष्ण को नहीं माना कि वे गुणातीत हैं। बड़ा महावीर ने कहा, अगर इस वक्त उसकी मृत्यु हो, तो वह स्वर्ग मुश्किल है। कृष्ण तो गुणातीत हैं। लेकिन बात भीतरी है। कृष्ण उस | | जाएगा। लेकिन तू जब उसके सामने झुक रहा था, उस वक्त अगर युद्ध के मैदान पर खड़े हुए भी भीतर से वहां नहीं खड़े हैं। उस सारे | मरता, तो नरक जाता। जाल-प्रपंच के बीच भी भीतर से साक्षी हैं। लेकिन जैन कहते हैं, | अभी मुश्किल से आधी घड़ी बीती थी! और बिंबसार तो चौंक हम कैसे माने कि वे साक्षी हैं? कौन जाने, वे साक्षी न हों और | | गया। क्योंकि जब वह सिर झुका रहा था, तब इतना शांत खड़ा था प्रवृत्ति में रस ले रहे हों?
प्रसन्न कुमार कि यह सोचता था, वह स्वर्ग में है ही। और महावीर तो जैन तो कहते हैं कि अगर प्रवृत्ति के साक्षी हैं, तो प्रवृत्ति गिर कहते हैं कि अगर उसी वक्त मर जाता, तो सीधा नरक जाता, जानी चाहिए। तो वे कहते हैं, हम महावीर को मानेंगे, क्योंकि वे सातवें नरक जाता। प्रवृत्ति छोड़कर चले गए हैं।
बिंबसार ने कहा कि मैं समझा नहीं। यह पहेली हो गई। महावीर लेकिन दूसरी तरह भी खतरा वही है। आपकी प्रवृत्ति मौजूद हो, | ने कहा कि तेरे आने के पहले तेरा फौज-फांटा आ रहा है। सम्राट आप जंगल जा सकते हैं। क्या अड़चन है? और जंगल में आप | था; उसके वजीर, घोड़े, सेनापति, वे आगे चल रहे हैं। तेरा एक ध्यान कर रहे हों। हम को लगता है, आप ध्यान कर रहे हैं। भीतर | वजीर भी उसके दर्शन करने तुझ से कुछ देर पहले पहुंचा। और उसने पता नहीं आप क्या सोच रहे हैं? कौन-सी फिल्म देख रहे हैं? क्या | जाकर कहा कि यह देखो प्रसन्न कुमार खड़ा है मूरख की भांति। और कर रहे हैं?
यह अपना सारा राज्य अपने वजीरों के हाथ में सौंप आया है। इसका महावीर के जीवन में उल्लेख है। बिंबसार सम्राट, उस समय का | लड़का अभी छोटा है। वे सब लूटपाट कर रहे हैं। वह सारा राज्य एक बड़ा सम्राट, महावीर के दर्शन को आया। जब वह दर्शन को बर्बाद हुआ जा रहा है। और ये बुद्ध की भांति यहां खड़े हैं! आ रहा था, तो उसने रास्ते में अपने एक पुराने मित्र को, जो कभी । उसने सुना प्रसन्न कुमार ने। उसको आग लग गई। वह भूल ही सम्राट था...प्रसन्न कुमार उसका नाम था, वह मुनि हो गया था | गया कि मैं मुनि हूं दिगंबर। उसका हाथ तलवार पर चला गया। महावीर का; राज्य छोड़ दिया था उसने। वह बिंबसार का बचपन | पुरानी आदत! उसने तलवार खींच ली। आंख बंद थीं। उसने तलवार का मित्र था और विश्वविद्यालय में दोनों साथ पढ़े थे। वह प्रसन्न | खींचकर उठा ली। और उसने अपने मन में कहा, क्या समझते हैं वे कुमार उसे खड़ा हुआ दिखाई पड़ा एक पर्वत की कंदरा के पास, | वजीर! अभी मैं जिंदा हूं। एक-एक को गर्द से अलग कर दूंगा। ध्यान में लीन, पत्थर की मूर्ति की तरह। बिंबसार का मस्तक झुक । और जब यह बिंबसार उसके दर्शन कर रहा था, तब वह गर्दने गया। उसने सोचा कि हम अभी भी संसार में भटक रहे हैं और यह काट रहा था। बाहर मर्तिवत खड़ा था: भीतर गर्दनें धड़ से नीचे