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________________ * संन्यास गुणातीत है * हुआ, लेकिन बराबर ऐसा हुआ कि...। मांस पसंद करते हैं। वह कौए ने जो डाला था, रास्ता खोल गया। अभी भी जैन दिगंबर मुनि ऐसा करता है। लेकिन उसके फिक्स्ड सारा चीन, सारा जापान, लाखों बौद्ध भिक्षु मांसाहार करते हैं। लक्षण हैं। दो-चार हर मुनि के फिक्स्ड हैं। सब भक्त जानते हैं। वे क्योंकि वे कहते हैं कि नियम है, जो भिक्षापात्र में डाला जाए, उसे चारों लक्षण अपने घर के सामने खड़े कर देते हैं। लक्षण ऐसे सरल छोड़ना नहीं। हैं, घर के सामने केला लटका हो। एक केला लटका हो घर के आदमी बेईमान है। वह नकल भी कर सकता है। नकल से सामने, वहां से भिक्षा ले लेंगे। तो सब मुनियों के लक्षण पता हैं। तरकीब भी निकाल सकता है। सब उपाय खोज सकता है। लक्षण महावीर ने यह नहीं कहा कि तुम अपने लक्षण निश्चित कर लेना। की वजह से एक उपद्रव हुआ है कि हम लक्षण को आरोपित कर तुम रोज सुबह जो तुम्हारा पहला भाव हो, वह लेकर निकलना। सकते हैं; हम उसका अभिनय कर सकते हैं। इनके सब तय हैं। तो उलटी हिंसा पच्चीस गुनी ज्यादा होती है। । पर हमारे मन में उठता है कि क्या लक्षण होंगे। क्योंकि एक घर से जो भिक्षा ले लेते, तो पच्चीस घर, जितने उनके कृष्ण ने जो लक्षण बताए हैं, वे कीमती हैं। यद्यपि बाहरी हैं, पर भक्त गांव में होंगे, सब बनाएंगे और सब अपने घर के सामने लक्षण हमारे मन के लिए उपयोगी हैं। लटकाएंगे। और उनका लक्षण रोज मिलता है। तीन महीने तक | किन लक्षणों से युक्त होता है? किस प्रकार के आचरणों वाला चूकने की किसी को नौबत आती नहीं। रोज मिलेगा ही। लक्षण ही होता है? मनुष्य किस उपाय से इन तीनों गुणों के अतीत होता है? वे लेते हैं, जो सबको पता हैं। तो नकल हो सकती है। कृष्ण ने कहा, हे अर्जुन, जो पुरुष सत्वगुण के कार्यरूप प्रकाश एक बौद्ध भिक्षु भिक्षा मांगने गया। एक कौआ मांस का टुकड़ा | | को, रजोगुण के कार्यरूप प्रवृत्ति को तथा तमोगुण के कार्यरूप मोह लेकर उड़ता था, वह छूट गया उसके मुंह से। वह भिक्षापात्र में | को भी न तो प्रवृत्त होने पर बुरा समझता है और न निवृत्त होने पर गिर गया। संयोग की बात थी। बुद्ध ने भिक्षुओं को कहा है कि उनकी आकांक्षा करता है। जो भी तुम्हारे भिक्षापात्र में डल जाए, वह तुम खा लेना, फेंकना | बड़ा जटिल लक्षण है। खतरा भी उतना ही है। क्योंकि जितना मत। बुद्ध को भी नहीं सूझा होगा कि कभी कोई कौआ मांस का | जटिल है, उतना ही आपके लिए सुविधा है। टुकड़ा गिरा देगा। कृष्ण यह कह रहे हैं कि गुण जो भी करवाएं! तमोगुण कुछ अब इस भिक्षु के सामने सवाल खड़ा हुआ कि अब क्या करना! करवाए, तो जब तमोगुण प्रवृत्ति में ले जाता है, तब दुखी नहीं होता क्योंकि बुद्ध कहते हैं... । मांसाहार करना कि नहीं? गिरा तो है पात्र | कि मुझसे बुरा हो रहा है। रजोगुण किसी कर्म में ले जाता है, तो भी में ही। नियम के बिलकुल भीतर है। तो उस भिक्षु ने जाकर बुद्ध | दुखी नहीं होता कि रजोगुण मुझे कर्म में ले जा रहा है। या सत्वगुण को कहा कि क्या करूं? मांस का टुकड़ा पड़ा है, इसे फेंकू, तो | निवृत्ति में ले जाता है, तो भी सुखी नहीं होता कि मुझे सत्वगुण नियम का उल्लंघन होता है। क्योंकि भोजन का तिरस्कार हुआ। | निवृत्ति में ले जा रहा है। न राग से दुखी होता है, न वैराग्य से सुखी मैंने मांगा भी नहीं था, कौए ने अपने आप डाला है। होता है। जो दोनों ही चीजों को गुणों पर छोड़ देता है और समझता बुद्ध ने सोचा होगा। बुद्ध ने सोचा होगा, कौए रोज-रोज तो है, मैं अलग हूं। डालेंगे नहीं। कौओं को ऐसी क्या पड़ी है कि भिक्षुओं को परेशान | इसका मतलब क्या हुआ? करें। यह संयोग की बात है। तो बुद्ध ने कहा कि ठीक है; जो आपको क्रोध आया। अब रजोगुण आपको किसी की हिंसा भिक्षापात्र में पड़ जाए, ले लेना। क्योंकि अगर यह कहा जाए कि | करने में ले जा रहा है। आप कहेंगे, यह तो लक्षण ही है गणातीत फेंक दो इसे, तो अब एक दूसरा नियम बनता है कि भिक्षापात्र में का! इस वक्त दुख करने की कोई जरूरत नहीं है, मजे से जाओ। जो पसंद न हो, वह फेंकना फिर। फिर चुनाव शुरू होगा। फिर | तो ऊपर से तो नकल हो सकती है। क्योंकि आप क्रोधित हो सकते भिक्षु वही जो पसंद है, रख लेगा, बाकी फेंक देगा। इससे व्यर्थ हैं और आप कह सकते हैं, मैं क्या कर सकता हूं; यह तो गुणों का भोजन जाएगा। और भिक्षु के मन में चुनाव पैदा होगा। वर्तन है! आप हिंसा भी कर सकते हैं और कह सकते हैं, मैं क्या तो आज चीन में, जापान में मांसाहार जारी है। क्योंकि भक्त | कर सकता हूं; यह तो गुणों का वर्तन है! मेरे भीतर जो गुण थे, मांस डाल देते हैं भिक्षापात्र में। और सब भक्त जानते हैं कि भिक्षु | | उन्होंने हिंसा की। 129
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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