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* संन्यास गुणातीत है *
गा कि उसके
अगर आपने कृष्ण से लक्षण सीखे हैं, तो भी कठिनाई आएगी। सब दावेदार थे और सब ने कोशिश की कि बन जाओ शिष्य। वह क्योंकि लक्षण कामचलाऊ हैं। वास्तविक अनुभूति तो स्वयं जब वहां से भाग खड़ा हुआ। तक कोई गुणातीत न हो जाए, तब तक नहीं होगी। लेकिन यह | फिर एक दिन एक जंगल से गुजरते हुए एक गुफा के द्वार पर कहना फिजूल है पूछने वाले से, कि जब तू गुणातीत हो जाएगा, | | उसे बैठा हुआ एक फकीर दिखाई पड़ा। वह थका-मांदा था। वह तब जान लेगा। वह यह कहता है कि मैं नहीं हूं गुणातीत, इसीलिए फकीर अति साधारण मालूम हो रहा था। न कोई गरिमा थी, न कोई तो पूछ रहा हूं। तो उसके पूछने को तृप्त तो करना ही होगा। । | विराट तेज प्रकट हो रहा था। न कोई आभामंडल दिखाई पड़ रहा
इसलिए गौण, कामचलाऊ लक्षण हैं। वे लक्षण भिन्न-भिन्न हो | | था, जैसा कि कृष्ण, बुद्ध, महावीर के सिर के चारों तरफ बना होता सकते हैं। अलग-अलग गुणातीत लोगों में भिन्न-भिन्न रहेंगे। उनके | | है। ऐसा कुछ भी नहीं था। एक साधारण आदमी बैठा था चुपचाप; भीतर की दशा तो एक है। लेकिन उनके बाहर की अभिव्यक्ति | कुछ कर भी नहीं रहा था। अलग-अलग है। वह हजार कारणों पर निर्भर है।
___ इसको प्यास लगी थी, भूख लगी थी। यह रास्ता भटक गया था। पर हमारा मन होता है पछने का. कि लक्षण क्या है? क्योंकि
तो उसके पास गया। जैसे. हम ऊपर से चीजों को जांचना चाहते हैं। हम जानना चाहते हैं कि | पास जाने से इसके भीतर कछ शांत होता जा रहा है। यह थोड़ा कौन आदमी ज्ञान को उपलब्ध हो गया? हम कैसे पहचानें? कोई चौंका। वह आदमी-जब पास गया, तो पता चला—वह आंख सींग तो निकल नहीं आते कि अलग से दिखाई पड़ जाए कि यह बंद किए बैठा है। वह इतना शांत था कि उससे यह कहकर कि मुझे आदमी ज्ञान को उपलब्ध हो गया। वह आदमी आप ही जैसा | प्यास लगी है, बाधा देना इसे उचित नहीं मालूम पड़ा। तो यह आदमी होता है। सच तो यह है कि वह अति साधारण हो जाता है। चुपचाप उसके पास बैठ गया कि जब वह आंख खोलेगा, तब मैं क्योंकि असाधारण होने का जो पागलपन है, वह अहंकार का | | बात कर लूंगा। लेकिन उसके पास बैठे-बैठे यह ऐसा शांत होने लगा हिस्सा है। वैसा आदमी अति साधारण हो जाता है। विशिष्टता की और इसकी आंख बंद हो गई। सांझ का वक्त था। परी रात बीत गई। तलाश उसकी बंद हो जाती है।
सुबह वह फकीर उठा। उस फकीर ने यह भी नहीं पूछा कि कैसे सभी साधारण लोग असाधारण होने की खोज कर रहे हैं। | आए? कहां से आए? कौन हो? वह उठा। उसने चाय बनाई। चाय इसलिए जो वस्तुतः असाधारण है, वह बिलकुल साधारण जैसा पी फकीर ने। उसने इससे भी नहीं कहा, नान-इन से, कि तू एक होगा।
चाय पी ले। फिर अपनी जगह आकर आंख बंद करके बैठ गया। झेन फकीरों ने उसके गुणों में एक गुण गिनाया है, मोस्ट | यह नान-इन भी उठा। जिस भांति फकीर ने चाय बनाई थी, आर्डिनरी। अगर आप झेन फकीरों का गुण सुन लें, तो आपको इसने भी चाय बनाई। पी; और यह जाकर अपनी जगह बैठ गया। . बड़ी कठिनाई होगी। क्योंकि झेन फकीर कहते हैं, गुणातीत को तो | | ऐसा सात दिन चला। सातवें दिन उस फकीर ने कहा कि मैं तुझे
पहचानना ही मुश्किल होगा, यही उसका पहला लक्षण है। क्योंकि | | स्वीकार करता हूं। वह आदमी नान-इन का गुरु हो गया। वह बिलकुल साधारण होगा। उसको विशिष्ट होने का कोई मोह नान-इन ने उससे पूछा कि तुमने मुझे क्यों स्वीकार किया? तो नहीं है। वह दिखाने की कोशिश नहीं करेगा कि मैं विशिष्ट हूं, | उसने कहा, गुरु वही गुरु होने योग्य है, जो दावा न करे; और शिष्य तुमसे ज्यादा जानता हूं, कि तुमसे ज्यादा आचरण वाला हूं। वह यह | भी वही शिष्य होने योग्य है, जो दावा न करे। तू चुप रहा और तूने कोशिश नहीं करेगा।
| यह नहीं कहा कि हम शिष्य होने आए हैं। और तू चुपचाप एक झेन फकीर हुआ, नान-इन। वह अपने गुरु के पास गया। | अनुकरण करता रहा छाया की तरह। सात दिन, जो मैंने किया, तूने वह गुरु की तलाश कर रहा था। पर उसके मन में एक सुनी हुई बात | किया। तूने यह भी नहीं पूछा कि यह करना कि नहीं करना। थी कि जो दावा करे कि मैं गुरु हूं, वहां से भाग खड़े होना। क्योंकि जब वह उठकर बाहर घूमने जाए, तो यह भी बाहर चला जाए। झेन फकीर कहते रहे हैं सदियों से कि वह जो गुरु होने योग्य है, | | वह चक्कर लगाए, यह भी चक्कर लगाए झोपड़े का। जब वह बैठ वह दावा नहीं करेगा। वह उसका लक्षण है।
जाए, तो यह भी बैठ जाए। यह नान-इन खोजता था। बहुत गुरुओं के पास गया। लेकिन वे पर नान-इन ने कहा है कि सात दिन के बाद कुछ पाने को भी