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गीता दर्शन भाग-7 *
हूं; एक द्रष्टा हूं।
लक्षणों से युक्त होता है। अर्जुन ऐसा पूछता है कृष्ण से; सारिपुत्त संन्यस्त गुणातीत भाव है। और जब तक वह पैदा न हो जाए, | | बुद्ध से पूछता है; गौतम महावीर से पूछते हैं। निरंतर, जब भी कोई तब तक सब संन्यास ऊपर-ऊपर है। ऊपर-ऊपर है, सिर्फ | | जागरूक पुरुष हुआ है, तो उसके शिष्यों ने निश्चित ही पूछा है कि आकांक्षा की खबर देता है कि आप खोज कर रहे हैं। उपलब्धि की | | लक्षण क्या है? वह जिस दिव्य चेतना के अवतरण की आप बात खबर नहीं देता।
| करते हैं, जिस भगवत्ता की आप बात करते हैं, उस भगवत्ता का अच्छा है कि खोज कर रहे हैं। लेकिन यह मत मानकर बैठ जाना लक्षण क्या है? हम कैसे पहचानेंगे कि कोई उस भगवत्ता को कि संन्यस्त हो गए हैं। जब तक निर्गुणता की प्रतीति न हो, तब तक उपलब्ध हो गया? उसका आचरण कैसा होगा? भीतर संन्यासी का जन्म नहीं हुआ। तब तक आप यात्रा पर है। तब इस प्रश्न को ठीक से समझना जरूरी है। तक आप खोज रहे हैं।
पहली तो बात यह है कि लक्षण तो बाहर से बताए जा सकते यह खोज गुणों के सहारे होगी। लेकिन खोज का जो अंतिम फल हैं। और बाहर की सब पहचान कामचलाऊ होगी। क्योंकि दो है, वह गुणों के पार चला जाता है।
गुणातीत व्यक्तियों के बाहर के लक्षण एक जैसे नहीं होंगे। इससे मैं संन्यस्त किसी गुण-प्रधान व्यक्ति को नहीं कहता, बड़ी अड़चन पैदा हुई है। सत्वगुण-प्रधान व्यक्ति को भी संन्यासी नहीं कहता। साधु कहता जिन्होंने महावीर से पूछा था कि उसके लक्षण क्या हैं, वे कृष्ण हूं। साधु का अर्थ होता है कि सत्व की प्रधानता है, शुभ की प्रधानता को गुणातीत नहीं मान सकते। क्योंकि महावीर ने वे लक्षण बताए, है। अच्छे उसके कर्म हैं। अच्छा उसका व्यवहार है। अच्छा उसका जो महावीर ने अनुभव किए हैं, जो महावीर के जीवन में आए। तो भाव है। लेकिन अच्छे से बंधा है। जंजीर है उसके हाथों पर, फूलों | महावीर का भक्त जानता है कि वह जो गुणातीत व्यक्ति है, वह की है। जंजीर है, सोने की है, लोहे की जंजीर नहीं है। | वस्त्र भी त्याग कर देगा; वह दिगंबर होगा।
लेकिन सोने की जंजीर, में एक खतरा है कि मन होता है माननेइसलिए दिगंबरत्व लक्षण है गुणातीत का। दिगंबर परंपरा में का कि वह आभूषण है। लोहे की जंजीर, तो तोड़ने की इच्छा पैदा दिगंबरत्व लक्षण है। जब तक वस्त्र हैं, तब तक कोई मोक्ष में प्रवेश हो जाती है। सोने की जंजीर, बचाने की इच्छा पैदा होती है। और | नहीं कर सकता। क्योंकि वस्त्र को पकड़ने का मोह बता रहा है कि अगर कोई कहे कि यह जंजीर है, तो हम कहेंगे, क्षमा करो, यह तुम अभी कुछ छिपाना चाहते हो। गुणातीत कुछ भी नहीं छिपाता। जंजीर नहीं है, यह आभूषण है।
वह खुली किताब की तरह है। साधुता सत्वगुण तक संबंधित है। संन्यस्तता गुणातीत है। तो महावीर से जिन्होंने गुणातीत के लक्षण समझे थे, वे बुद्ध को संन्यस्त का अर्थ है, जिसने अब अपने को अपने शरीर, अपने मन | भी गुणातीत नहीं मानते। बुद्ध उसी समय जीवित थे। एक ही जगह से जोड़ना छोड़ दिया। शरीर घर है, मन घर है, इन घर से जो छूट | मौजूद थे। बिहार में एक ही प्रांत में मौजूद थे। कभी-कभी एक ही गया और जो अब भीतर के चैतन्य में थिर हो गया है। और जो एक गांव में एक साथ भी मौजद थे। ही भाव रखता है कि मेरा होना सिर्फ चेतना मात्र है, सिर्फ होश मेरा | महावीर को मानने वाला बुद्ध को गुणातीत नहीं मानता, स्वभाव है। और जहां भी होश मैं खोता हूं, वहीं मैं स्वभाव खो रहा। | स्थितप्रज्ञ नहीं मानता, क्योंकि बुद्ध कपड़ा पहने हुए हैं। वह उतनी हूं और संन्यास से च्युत हो रहा हूं।
अड़चन है। इसलिए महावीर को तो जैन भगवान कहते हैं; बुद्ध को अब हम सूत्र लें।
| महात्मा कहते हैं। करीब-करीब हैं। कभी न कभी वस्त्र भी छूट अर्जुन ने पूछा कि हे पुरुषोत्तम, इन तीनों गुणों से अतीत हुआ जाएंगे और किसी जन्म में यह व्यक्ति भी तीर्थकरत्व को उपलब्ध पुरुष किन-किन लक्षणों से युक्त होता है? और किस प्रकार के | हो जाएगा। लेकिन अभी नहीं है। आचरणों वाला होता है? तथा हे प्रभो, मनुष्य किस उपाय से इन कृष्ण को तो मानने का कोई उपाय ही नहीं रहेगा। राम को तो तीनों गुणों से अतीत होता है?
| किसी तरह नहीं माना जा सकता। मोहम्मद या क्राइस्ट को किसी ___ अर्जुन की जिज्ञासा करीब-करीब सभी की जिज्ञासा है। हम भी | | तरह नहीं माना जा सकता कि ये गुणातीत हैं। अगर महावीर से जानना चाहते हैं कि इन तीनों गुणों से अतीत हुआ पुरुष किन लक्षण सीखे हैं, तो कठिनाई आएगी।
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