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________________ हमारा अहंकार सब जगह खड़ा है। उसे लीप-पोतकर ठीक कर लेते हैं। रवींद्रनाथ के हस्तलिखित पत्र प्रकाशित हुए हैं। वे कविता भी लिखते थे तो कहीं अगर कोई शब्द में भूल हो जाए तो उसको काटना-पीटना पड़े, तो वे काटने-पीटने की जगह, जहां काटते थे, वहां कुछ डिजाइन बना देंगे, कुछ चित्र बना देंगे - कटा हुआ नहीं मालूम पड़े। जहां-जहां भूल होगी, शब्द कोई काटना पड़ेगा, तो उसके ऊपर डिजाइन बना देंगे, कुछ रंग भर देंगे, चित्र बना देंगे। तो उनका पत्र ऐसा मालूम पड़ेगा कि उसमें कहीं कोई भूल-चूक नहीं है। ऐसा लगेगा कि शायद सजाया है, डेकोरेट किया है। भूल भी हो जाए, गीता दर्शन भाग-7 तोह मगर यह आदमी के मन की वृत्ति है । सब जगह सजा रहा है। कहीं भी कुछ ऐसा हो जिससे भूल पता हो, तो छिपा रहा है। हमारा अहंकार स्वीकार नहीं करना चाहता कि कोई भी कमी हम में है। अज्ञानी भी दावा करता है ज्ञान का। शायद अज्ञानी ही दावा करता है ज्ञान का। तो जब ज्ञान की पहली किरण उतरनी शुरू होगी, तो आपका सारे जन्मों का इकट्ठा जो सूक्ष्म अहंकार है, वह उसे पकड़ने की कोशिश करेगा । जिब्रान ने एक छोटी-सी कहानी लिखी है । जिब्रान ने लिखा है कि जब भी इस जगत में कोई नया आविष्कार होता है, तो देवता और शैतान दोनों ही उस पर झपट्टा मारते हैं कब्जा करने को। और अक्सर ही ऐसा होता है कि शैतान उस पर पहले कब्जा कर लेता है; देवता सदा पीछे रह जाते हैं। देवताओं को तो खयाल ही त आता है, जब शैतान निकल पड़ता है। और शैतान तो पहले से ही तैयार है। जब भी आपके जीवन में कोई घटना घटेगी, तो आपके भीतर जो बुरा हिस्सा है, वह तत्क्षण उस पर कब्जा करना चाहेगा। इसके पहले कि अच्छा हिस्सा दावा करे, बुरा हिस्सा उस पर कब्जा कर लेगा | जैसे ही ज्ञान की किरण उतरेगी, वैसे ही अहंकार पकड़ेगा कि मैंने जान लिया । और इस वक्तव्य में ही वह ज्ञान की किरण खो गई और अंधकार हो गया। इस अहंकार के भाव में ही, वह जो उतर रहा था, उसका स्रोत बंद हो गया। और जब तक यह भाव मिटेगा नहीं, तब तक वह स्रोत बंद रहेगा। सैकड़ों-हजारों लोगों पर ध्यान के प्रयोग करने के बाद मैं कुछ नतीजों पर पहुंचा हूं। उनमें एक यह है कि मेरे पास लोग आते हैं; जब उन्हें पहला अनुभव होता है ध्यान का, तो उनकी प्रफुल्लता की कोई सीमा नहीं होती। उनका पूरा हृदय नाचता होता है। लेकिन जब भी वे मुझे आकर खबर देते हैं अ उनकी प्रफुल्लता मैं देखता हूं, तो मैं डरता हूं। मैं जानता हूं कि अब यह गया । अब कठिनाई शुरू हो जाएगी। क्योंकि अब तक इसे कोई अपेक्षा न थी। अब तक इसे कुछ पता न था। अनएक्सपेक्टेड, अपेक्षित न था, घटना घटी है। और यह घटना तभी घटती है, जब अपेक्षा न हो; अपेक्षा होते से ही बाधा पड़ जाती है। अब यह कल से रोज प्रतीक्षा करेगा। ध्यान |इसका व्यर्थ होगा अब । अब यह ध्यान में बैठेगा जरूर, लेकिन पूरा नहीं बैठेगा। मन तो लगा रहेगा उस घटना में, जो कल घटी थी। और निश्चित रूप से वह आदमी एक-दो दिन में मेरे पास आता है; कहता कि वह बात अब नहीं हो रही ! चित्त बड़ा दुखी है। वह जो किरण उठती थी, इसने मार डाली। उसकी बात ही नहीं उठानी थी। उसको पकड़ना ही नहीं था। सिर्फ धन्यवाद देना था परमात्मा को कि तेरी कृपा है। क्योंकि मैं तो कुछ जानता भी नहीं था। हुआ, तू जान और भूल जाना था। दूसरे दिन वह किरण और भी गहरी उतरती । भी जीवन में आए, उसे भूलना सीखना पड़ेगा; अन्यथा वही बंधन हो जाएगा। फिर बड़ी कठिनाई हो जाती है। कई दफा तो सालों लग जाते हैं। जब तक कि वह आदमी भूल ही नहीं जाता उस | घटना को, तब तक दुबारा किरण नहीं उतरती । और वह जितनी | कोशिश करता है, उतना ही कठिन हो जाता है। क्योंकि कोशिश से वह आई नहीं थी । इसलिए कोशिश से उसका कोई संबंध नहीं है। | वह तुम्हारे बिना प्रयत्न के घटी थी। तुम भोले-भाले थे, तुम सरल थे, तुम कुछ मांग नहीं रहे थे। उस निर्दोष क्षण में ही वह संपर्क हुआ था। अब तुम मांग रहे हो । अब तुम चालाक हो । अब तुम भोले-भाले नहीं हो। अब तुमने गणित बिठा लिया है। अब तुम कहते हो कि अब ये तीस मिनट हो |गए ध्यान करते, अभी तक नहीं हुआ ! अब तुम मिनट मिनट उसकी आकांक्षा कर रहे हो। तो तुम्हारा मन बंट गया। अब तुम ध्यान में नहीं हो। अब तुम अनुभव की आकांक्षा कर रहे हो । | इसलिए ध्यान रखें, अनुभव को जो पकड़ेगा, वह वंचित हो जाएगा। और सात्विक अनुभव इतने प्यारे हैं कि पकड़ना बिलकुल सहज हो जाता है । छोड़ना बहुत कठिन होता है, पकड़ना बिलकुल सहज हो जाता है। 124 झेन फकीर, उनका शिष्य जब भी आकर उनको खबर देगा कि उसे कुछ अनुभव हुआ, तो उसकी पिटाई कर देते हैं। डंडा उठा
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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