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________________ * संन्यास गुणातीत है * मौजूदगी थोड़ा-सा अड़चन तो डाल ही रही है। इसलिए दुख को एकदम अभिशाप मत मानना और सुख को कई बार तो ऐसा होता है कि तमस में पड़े हुए आदमी को यह | | एकदम वरदान मत मानना। अगर समझ हो, तो दुख वरदान हो खयाल नहीं होता. यह अहंकार नहीं होता. कि मैं कछ है। वह | | सकता है। और नासमझी हो, तो सुख अभिशाप हो सकता है। दीनता अनुभव करता है। एक अर्थ में निरअहंकारी होता है। रजस | अक्सर यही होता है। क्योंकि नासमझी सभी के पास है; समझदारी में पड़े हुए व्यक्ति को भी ऐसी भ्रांति नहीं होती कि मैं ब्रह्म को | ना-कुछ के पास है। जब भी आप सुखी होते हैं, तभी आप पतित उपलब्ध हो गया, कि मैंने सत्य को जान लिया। क्योंकि वह जानता | होते हैं, तभी तादात्म्य हो जाता है; तब सुख को आप जोर से पकड़ है, मैं कर्मों के जाल में उलझा हूं। ठीक वैसे ही जैसे गंदे कांच, थोड़े | लेते हैं। और जिसको भी आप पकड़ लेते हैं, वही बंधन हो जाता है। साफ कांच वाले आदमी को यह खयाल नहीं होता कि मैं मकान के ध्यान रहे, बंधन आपको नहीं बांधते, आपकी पकड़ बांधती है। बाहर खुले आकाश के नीचे खड़ा हूं। यह खतरा सात्विक कर्म | | इसलिए सुख बंधन है; ज्ञान बंधन है। अगर अकड़ आ जाए कि मैं वाले को सर्वाधिक है। जानता हूं; अगर यह खयाल आ जाए कि मैं ज्ञानी हूं। और आएगा तो जो लोग भी सत्व के करीब आते हैं, वे एक खतरे के करीब | खयाल। क्योंकि अज्ञानी में पीड़ा है। अज्ञानी में अहंकार को चोट है। आ रहे हैं। वहां चीजें इतनी साफ हो गई हैं कि यह भ्रांति हो सकती कोई भी अपने को अज्ञानी नहीं मानना चाहता। अज्ञानी से है कि मैं बाहर आ गया। और जिसको यह भ्रांति हो गई भीतर बैठे | अज्ञानी आदमी भी अज्ञानी नहीं मानना चाहता। अज्ञानी भी अपने हुए कि मैं बाहर आ गया, वह बाहर जाने का काम बंद कर देगा। | | ज्ञान के दावे करता है। गलत से गलत आदमी भी अपने ठीक होने और यह कांच का कोई भरोसा नहीं है। जो आज शुद्ध है, कल के उपाय खोजता है। अशुद्ध हो जाएगा; धूल जम जाएगी। एक क्षण में जो शुद्ध था, | | मुल्ला नसरुद्दीन का बेटा एक बंदूक ले आया। वह निशाना अशुद्ध हो सकता है। आज जो सात्विक है, वह कल राजस हो | लगा रहा था, सीख रहा था। उसके निशाने पचास प्रतिशत सही सकता है, परसों फिर तामस हो सकता है। पड़ते थे। नसरुद्दीन ने उसे डांटा और कहा कि यह तू क्या कर रहा इसलिए कृष्ण कहते हैं, सात्विक कर्म भी बांधता है। उसके फल | है? निशाने कम से कम नब्बे प्रतिशत के ऊपर ठीक जाने चाहिए। तीन हैं, सुख, ज्ञान और वैराग्य। यह भी कोई निशानेबाजी है? हमारा जमाना था, तब मैं सौ प्रतिशत ध्यान रहे, दुखी आदमी कभी भी पूरा तादात्म्यं नहीं कर पाता | | निशाने ठीक मारता था। उसके लड़के ने कहा, आप एक कोशिश दुख के साथ। उसे लगता ही रहता है, मैं अलग हूं, मैं दुखी हूं। मैं | करके देखें; मैं भी देखू। अलग हूं, दुख अलग है। तब जरा नसरुद्दीन मुश्किल में पड़ा। क्योंकि उसे ठीक से बंदूक दुख के साथ कौन तादात्म्य करेगा? हम जानते हैं कि दुख आया | | पकड़ना भी नहीं आता था। लेकिन बाप बेटे से ज्यादा जानता है, है और चला जाएगा, मैं अलग हूं। और हम पूरी कोशिश करते हैं | | यह दावा छोड़ नहीं सकता किसी भी मामले में। उसने बंदूक ली कि दुख जितनी जल्दी चला जाए, उतना अच्छा। लेकिन जब सुख | | हाथ में। इस बहाने कि माडल थोड़ा नया मालूम पड़ता है, उसने आता है, तब हम तादात्म्य करते हैं। | लड़के से पूछा कि कैसे उपयोग में लाया जाता है? क्योंकि मेरे फकीर जुनैद ने कहा है कि दुख में ईश्वर का स्मरण कुछ भी जमाने में दूसरे ढंग के माडल चलते थे। मगर निशाना तो मेरा मूल्य नहीं रखता, क्योंकि सभी स्मरण करते हैं। सुख में अगर कोई बेचूक है। स्मरण करे, तो उसका कोई मूल्य है। तब उसने निशाना लगाया। एक चिड़िया आकाश में उड़ रही सुख में कोई स्मरण नहीं करता, क्योंकि सुख के लिए ही तो थी। उसने निशाना मारा, बड़ी मेहनत से, बड़ी सोच-समझकर, हम स्मरण करते हैं। जब सुख ही मौजूद हो, तो स्मरण का कोई | सारी ताकत और समझ लगाकर। लेकिन ताकत और समझ से अर्थ न रहा। | निशाने का कोई संबंध नहीं है। जिसने निशाना नहीं लगाया है, यह दुख से हम छूटना चाहते हैं, अलग होना चाहते हैं। सुख के साथ | करीब-करीब असंभव है कि निशाना लग जाए उड़ती चिड़िया पर। हम जुड़ना चाहते हैं, एक होना चाहते हैं। और जिसके साथ हम | गोली तो चल गई, चिड़िया उड़ती रही। नसरुद्दीन ने कहा, देख, जुड़ते हैं, एक होते हैं, वही हमारा वास्तविक बंधन बन सकता है। बेटा देख; चमत्कार देख। मरी हुई चिड़िया उड़ रही है! 123|
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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