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* गीता दर्शन भाग-7 *
उपनिषद कहते हैं कि जो ज्ञानी है, वह तो समझता है, मैं कुछ | जैसे कोई नाव को पकड़ ले। नाव मुक्तिदायी है, उस पार ले जा भी नहीं जानता। साक्रेटीज कहता है कि मुझसे बड़ा अज्ञानी कौन ? सकती है। कोई नाव को पकड़कर बैठ जाए। नाव में बैठ जाए, फिर लेकिन यह अज्ञान मुक्तिदायी है। ऐसे अज्ञान की प्रतीति का अर्थ | नाव से न उतरे। उस किनारे पहुंच जाए, लेकिन इस बीच नाव से हुआ, यह आदमी विनम्र हो गया, आखिरी सीमा तक विनम्र हो | मोह पैदा हो जाए। तो फिर नाव भी बंधन बन गई। गया। अहंकार की आखिरी घोषणा, सूक्ष्मतम घोषणा भी इसके मन जब तक शेष है, तब तक किसी भी चीज को बंधन बना भीतर नहीं रही। यह भी नहीं कहता कि मैं जानता है। यह कहता है, सकता है, यह ध्यान रखना जरूरी है। जब मन में पहली दफा उस मुझे कुछ पता नहीं। मैं हूं नहीं, पता भी किसको होगा! | पारलौकिक की किरणें उतरती हैं, तब यह ध्यान रखना जरूरी है कि
और यह जगत विराट रहस्य है। इसको जानने का दावा वही कर यह भी सात्विक कर्म का वर्तन है। इससे अपने को जोड़ने की सकता है, जिसके पास आंखें अंधी हों। यह इतना विराट है कि | आवश्यकता नहीं है।
सको भी दिखाई पड़ेगा, वह कहेगा, यह रहस्य है। इसका ज्ञान | आपके घर की खिड़की पर कांच लगे हैं। किसी के घर की नहीं हो सकता।
| खिड़की पर कांच लगे हैं, जो बहुत गंदे हैं। उनसे कोई किरण पार ज्ञान का दावा सिर्फ मूढ़ कर सकते हैं, ज्ञानी नहीं कर सकते। ये | नहीं होती। सूरज निकला भी रहता है बाहर, तो भी उनके घर में वक्तव्य विरोधाभासी मालूम पड़ते हैं, क्योंकि हम समझ नहीं पाते। | अंधेरा रहता है। किन्हीं के मकान पर कांच हैं, वे थोड़े साफ हैं; ज्ञानी का अर्थ ही यही है कि जिसने यह जान लिया कि यह रहस्य | उन्हें रोज साफ कर लिया जाता है। सूरज बाहर निकलता है, तो अनंत है।
उसकी धुंधली आभा घर के भीतर आती है। किसी की खिड़की पर अगर रहस्य अनंत है, तो आप दावा नहीं कर सकते कि मैंने जान ऐसे कांच हैं, जो बिलकुल पारदर्शी हैं, कि अगर आप पास जाकर लिया। क्योंकि जिसको भी हम जान लेंगे, वह अनंत नहीं रह न छुएं, तो आपको पता ही नहीं चलेगा कि कांच है। बाहर सूरज जाएगा। जानना उसकी सीमा बन जाएगी। और जिसको मैं जान लूं, | निकलता है, तो ऐसा लगता है, भीतर ही निकल आया। कांच वह मुझसे छोटा हो गया। वह मेरी मुट्ठी में हो गया। बिलकुल पूरा पारदर्शी है। फिर भी कांच है, और जब तक कांच
विज्ञान जानने का दावा कर सकता है, क्योंकि क्षुद्र उसकी खोज है, तब तक आप घर के भीतर बंद हैं। और जब तक कांच है, तब है। धर्म जानने का दावा नहीं कर सकता। वस्तुतः धार्मिक व्यक्ति तक जो किरणें आ रही हैं, उनमें कांच की मिलावट है, उनमें कांच जानने की कोशिश करते-करते धीरे-धीरे खुद ही खो जाता है। का हाथ है। बजाय इसके कि वह जान पाता है, जानने वाला ही मिट जाता है। तो अगर इतना शुद्ध कांच आपके दरवाजे पर लगा हो कि इसलिए मैं का कोई भी दावा बांधने वाला हो जाएगा।
आपको पता भी न चलता हो कि कांच वहां है, क्रिस्टल लगा हो, और सात्विक कर्म इसीलिए बांध सकता है, क्योंकि सात्विक तो आप इस भ्रांति में पड़ सकते हैं कि मैं घर के बाहर आ गया, कर्म में ज्ञान की किरणें उतरनी शुरू होती हैं। मन हलका हो जाता । | क्योंकि सूरज की किरणें बिलकुल मेरे ऊपर बरस रही हैं। और आप है, शुद्ध हो जाता है। लेकिन मन रहता है। शुद्ध हो जाता है। हल्का| घर के भीतर बैठे हैं। हो जाता है, उसका बोझ नहीं होता। सुंदर हो जाता है, सुगंधित हो इसलिए कृष्ण कहते हैं, शुद्ध कर्म भी बांध लेगा, सात्विक कर्म जाता है। उसमें दुर्गंध नहीं रह जाती। उससे दुख पैदा नहीं होता, | | भी बांध लेगा। उससे सुख पैदा होने लगता है। इस सुख की दशा में जीवन के | | सात्विक कर्म शुद्धतम कांच की भांति है। उसको भी तोड़कर रहस्य की किरणें उतरनी शुरू होती हैं।
| बाहर निकल जाना है। तो ही आप घर के बाहर हए: तो ही आप लेकिन मन अभी कायम है, अभी मिट नहीं गया है। अगर आप | सूरज के नीचे सीधे हुए। तो जो साक्षात्कार होगा, वह सीधा होगा, सजग न हुए, तो मन तत्क्षण घोषणा कर देगा कि मैंने जान लिया। उसमें कोई भी माध्यम न रहा। इस घोषणा के साथ ही बंधन शुरू हो गया। और जिससे आप मुक्त __ जब तक माध्यम है, तब तक खतरा है। क्योंकि माध्यम का हो सकते थे, उसको आपने अपना कारागृह बना लिया। जो भरोसा नहीं किया जा सकता। माध्यम कुछ न कुछ बदलाहट तो आपको पार ले जा सकता था, उसको पकड़कर आप रुक गए। | करेगा ही। शुद्धतम माध्यम भी अशुद्ध होगा, क्योंकि उसकी
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