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गीता दर्शन भाग-7
गुणों को उल्लंघन करके जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और सब प्रकार के दुखों से मुक्त हुआ परमानंद को प्राप्त होता है।
जिस काल में, समय की जिस अवधि में, जिस क्षण में... । और यह क्षण अभी भी हो सकता है। इसके लिए कोई जन्मों तक रुकने की जरूरत नहीं है। क्योंकि यह आपके भीतर का जो स्वभाव है, यह कुछ निर्मित करना है। यह है ही। ऐसा है ही, अभी भी, इस क्षण भी। आप साक्षीरूप हैं और सारा कर्तृत्व आपके शरीर की प्रकृति में हो रहा है, गुणों में हो रहा है, तीन गुणों में हो रहा है, जो प्रकृति के तीन नियंता हैं; और आप अभी भी अलग खड़े हैं। यह सिर्फ भ्रांति है कि आप सोचते हैं, आप कर रहे हैं।
जिस काल में, जिस क्षण में, द्रष्टा तीनों गुणों के सिवाय अन्य किसी को कर्ता नहीं देखता है...।
जिस क्षण आपको यह समझ में आ जाता है कि मेरे तीन गुण ही समस्त कर्म कर रहे हैं, मैं करने वाला नहीं हूं; गुण ही कर रहे हैं, करवा रहे हैं...।
कठिन है। क्योंकि अहंकार को कोई जगह न रह जाएगी। इसलिए अहंकार बाधा बनेगा। अहंकार कहेगा, कौन कहता है कि मैं नहीं कमा रहा हूं ? धन मैं कमा रहा हूं। हालांकि आपको पता नहीं है, आपके भीतर जो लोभ का गुण है, वे जो लोभ के परमाणु हैं, वे आपको धक्का दे रहे हैं। लेकिन आप सोचते हैं, मैं धन कमा रहा हूं। धन के लिए तो आपके भीतर लोभ के परमाणु दौड़ा रहे हैं। लेकिन यह आप जो मैं-भाव निर्मित करते हैं, यह बिलकुल थोथा है, यह झूठा है।
आप कहते हैं, मैं प्रेम में पड़ रहा हूं। मैं इस स्त्री के प्रेम में पड़ गया हूं। जब कि सिर्फ आपके वासना कण प्रेम में पड़ गए हैं।
इसलिए जिन लोगों ने सांख्य की इस दृष्टि को ठीक से समझा | था, उन्होंने कई महत्वपूर्ण बातें कही हैं, जो इस युग में समझना मुश्किल हो गई हैं। कठिन भी है समझना । मगर अगर यह सूत्र खयाल में आ जाए, तो समझ में आ सकता है।
महावीर ने अपने साधकों को कहा है कि मरणशय्या पर पड़ी स्त्री से भी दूर रहना ।
इस बात को थोड़ा समझें ।
बुद्ध से आनंद पूछता है कि अगर कोई स्त्री मार्ग पर मिल जाए, तो मैं क्या करूं? तो बुद्ध कहते हैं, देखना मत, आंख नीची कर लेना ।
आनंद जिद्दी है, वह पूछता है, समझ लो कि ऐसी अवस्था आ
वृद्धा
और रुग्ण,
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जाए कि आंख नीचे करना न हो पाए। कोई ऐसा कारण हो जाए। समझो कि स्त्री बीमार पड़ी हो, प्यासी पड़ी हो, रास्ते के किनारे गिर पड़ी हो, गड्ढे में गिर पड़ी हो। मैं अकेला भिक्षु उस मार्ग पर हूं। और मुझे उस स्त्री को उठाना पड़े या पानी पिलाना पड़े, तो देखना तो पड़ेगा ! समझ लो कि कोई ऐसी घटना में देखना पड़े, तो मैं क्या करूं? तो बुद्ध ने कहा, तू छूना मत।
आनंद ने कहा, ऐसी कोई स्थिति भी हो सकती है भंते, कि मुझे छूना भी पड़े, तो उस स्थिति में मैं क्या करूं? तो बुद्ध ने कहा, अब तू मानता ही नहीं, तो मैं आखिरी बात कहता हूं, साक्षी - भाव रखना। अगर तुझे यह करना ही पड़े, तो फिर तू होश रखना कि करने वाला तू नहीं है। छूना भी पड़े, तो समझना कि शरीर छू रहा है। देखना पड़े, तो समझना कि आंख देख रही है। इस भ्रांति में मत पड़ना कि मैं देख रहा हूं, कि मैं छू रहा हूं। तो फिर तू आखिरी बात समझ ले कि तू साक्षी भाव रखना।
महावीर कहते हैं, वृद्ध, रुग्ण, मरणशय्या पर पड़ी कुरूप स्त्री के पास भी भिक्षु न जाए।
तब
हमें लगेगा, बड़े दमन की बात कर हैं। लेकिन महावीर केवल गुणों की बात कर रहे हैं। महावीर यह कह रहे हैं कि जब तक साक्षी न जग गया हो, जब तक अवस्था साधक की तक मरणशय्या पर पड़ी स्त्री के हार्मोन, उसके गुणधर्म भी तुम्हारे भीतर छिपे पुरुष के हार्मोन को आकर्षित करेंगे। वें तुम्हें आकर्षित कर सकते हैं। और साधारण गृहस्थ को शायद न भी करें। लेकिन भिक्षु को कर ही सकते हैं। क्योंकि साधारण गृहस्थ वैसा ही है, जैसे भरा पेट आदमी, भोजन किया हुआ आदमी । उसको रास्ते के किनारे पड़ी हुई जूठन आकर्षित नहीं करेगी। लेकिन उपवासी आदमी को कर सकती है। भूखे आदमी को कर सकती है।
मनु ने कहा है कि अपनी बहन, अपनी बेटी, अपनी मां के साथ भी एकांत में मत रहना बिलकुल अकेले ।
लगते हैं, बड़े दमनकारी लोग हैं। लेकिन उनके सूत्र त्रिगुणों के ऊपर आधारित हैं। वे यह कह रहे हैं, सवाल यह नहीं है कि वह लड़की है तुम्हारी। गहरे में तो वह स्त्री है और तुम पुरुष हो । और हार्मोन न लड़की को जानते हैं, न मां को जानते हैं, न पिता को जानते हैं, न बहन को जानते हैं। हार्मोन की कोई नैतिकता नहीं है। अगर | पिता भी पुत्री के साथ एकांत में बहुत दिन हो, तो धीरे-धीरे लड़की स्त्री रह जाएगी, पिता पुरुष रह जाएगा। और उन दोनों की प्रकृति के जो खिंचाव हैं, वे शुरू हो जाएंगे। यह तभी रुक सकता है, जब