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________________ * असंग साक्षी * साक्षी जग गया हो। लेकिन साक्षी कितने लोगों का जगा है? । अर्थात गुण ही गुणों में बर्तते हैं...। तो मनु की बात भी बड़ी गहरी है, पर सांख्य के सूत्रों पर खड़ी । गुण ही गुणों के साथ वर्तन कर रहे हैं; एक्शन-रिएक्शन कर है। सांख्य बड़ा अनूठा खोजी है। सांख्य की खोज गहरी है। खोज रहे हैं। मेरे भीतर का पुरुष-गुण किसी के स्त्री-गुण का पीछा कर का सार यह है कि आपके भीतर दो तत्व हैं, एक प्रकृति और पुरुष। रहा है। मेरे भीतर का क्रोध का गुण किसी के ऊपर क्रोध बरसा रहा पुरुष तो आपकी चेतना है और प्रकृति आपकी देह और मन की है। मेरे भीतर हिंसा का गुण किसी के प्रति हिंसा से भर रहा है। संघटना है। और जो भी क्रियाएं हैं, वे सब प्रकृति से हो रही हैं। कृष्ण यह कह रहे हैं अर्जुन से कि यह जो भी युद्ध हो रहा है, कोई क्रिया चेतना से नहीं निकल रही है। | यह भी तीन गुणों का वर्तन है। इसमें उस तरफ खड़े लोग भी उन्हीं लेकिन चेतना को यह शक्ति है कि वह क्रियाओं के साथ अपने | गुणों से सक्रिय हो रहे हैं। इस तरफ खड़े लोग भी उन्हीं गुणों से को जोड़ ले और कहे कि मैं कर रहा हूं। यह संभावना चेतना की सक्रिय हो रहे हैं। और अगर तू भागेगा, तो तू यह मत सोचना कि है कि वह कहे कि मैं कर रहा हूं। इतना कहते ही संसार निर्मित हो तूने संन्यास लिया। अगर तेरे भीतर भागने के परमाणु हों, तो तू जाता है। भाग सकता है। लेकिन तब भी यह तू जानना कि ये गुण ही बर्त रहे इसलिए सांख्य-सूत्र कहते हैं कि संसार का जन्म अहंकार के हैं। तू इस भ्रांति में मत पड़ना...। जो भी हो, तू एक बात खयाल साथ है। मैं आया, संसार निर्मित हुआ। मैं गया, संसार विलीन हो रखना कि तू देखने वाला है। गया। जैसे ही मैं गया, उसका अर्थ है कि मैं सिर्फ देखने वाला रह गुण ही गुणों में बर्तते हैं, ऐसा जो देखता है और तीनों गुणों से गया। अतीत–तीनों गुणों के पार, बियांड–तीनों गुणों से ऊपर, दूर, और ध्यान रहे, देखना कोई क्रिया नहीं है; द्रष्टा होना कोई क्रिया | अतीत, सच्चिदानंदघनस्वरूप मुझ परमात्मा को तत्व से जानता नहीं है। द्रष्टा होना आपका स्वभाव है। आपको कुछ करना नहीं | पड़ता द्रष्टा होने के लिए, द्रष्टा आप हैं। प्रत्येक के भीतर इन तीन तत्वों के पीछे छिपा हुआ कृष्ण है। ब्रह्म रात सोते हैं, सपना देखते हैं, तब भी आप द्रष्टा हैं। सुबह उठते | कहें, क्राइस्ट कहें, बुद्ध कहें, जो भी कहना हो। इन तीनों तत्वों के हैं एक गहरी नींद के बाद, तो भी आप कहते हैं, बड़ा आनंद आया, भीतर छिपा हुआ आपका परम स्वभाव है, परम ब्रह्म है। नींद बड़ी गहरी थी। इसका मतलब है कि कोई आपके भीतर देखता जो भी इन तीन गुणों को कर्ता की तरह जानता है, और इन तीनों रहा कि नींद बंड़ी गहरी थी। सुबह आप कहते हैं, नींद बड़ी गहरी | के परे मुझ सच्चिदानंदघनरूप परमात्मा को पहचानता है, उस काल थी, बड़ा सुख रहा। में वह पुरुष मुझे प्राप्त हो जाता है। ___जागे, सोएं, सपना देखें, द्रष्टा कायम है। यह द्रष्टा कोई क्रिया वह प्राप्त है ही। सिर्फ यह प्रत्यभिज्ञा, यह रिकग्नीशन, यह नहीं है। यह द्रष्टा आपका सतत स्वभाव है। यह एक क्षण को भी | पहचान प्राप्ति बन जाती है। इस क्षण भी आप आंख मोड़ लें गुणों खोता नहीं है। लेकिन इस द्रष्टा को आप कर्ता बना सकते हैं, यह से और गुणों के पीछे सरककर एक झलक ले लें, तो जो मोक्ष बहुत सुविधा है। चाहे इसे सुविधा कहें, चाहे असुविधा। यह स्वतंत्रता दूर दिख रहा है, वह जरा भी दूर नहीं है। सिर्फ मुड़कर देखने की है। चाहे इसे स्वतंत्रता कहें, और चाहे समस्त परतंत्रता का मूल।। | बात है। क्योंकि इसी स्वतंत्रता के गलत उपयोग से संसार निर्मित होता है। | जो परमात्मा बड़ा जटिल मालूम पड़ता है, जिस पर भरोसा नहीं और इसी स्वतंत्रता के सही उपयोग से मोक्ष निर्मित हो जाता है। आता, तर्क जिसे सिद्ध नहीं कर पाता, जिस पर बड़ा अविश्वास मोक्ष है आपकी स्वतंत्रता का ठीक उपयोग। संसार है आपकी और संदेह पैदा होता है, हजार चिंताएं मन में पकड़ती हैं कि स्वतंत्रता का गलत उपयोग। आपकी चेतना प्रतिपल मात्र साक्षी है। परमात्मा कैसे हो सकता है! वह परमात्मा इतना निकट है कि जिस काल में द्रष्टा तीनों गुणों के सिवाय अन्य किसी को कर्ता जितनी देर परमात्मा शब्द कहने में लगती है, उतनी देर भी उसे पाने नहीं देखता है....। में लगने का कोई कारण नहीं है। मगर एक अबाउट टर्न, एक पूरा बस, ये तीन ही गुण कर रहे हैं। कोई और चौथा मेरे भीतर कर्ता | घूम जाना; जहां पीठ है, वहां चेहरा हो जाए; और जहां चेहरा है, नहीं है। | वहां पीठ हो जाए। 113
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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