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असंग साक्षी
जरूरत नहीं | विज्ञान को पूरा अधिकार दो, हम खतम कर देंगे।
अगर आप सोचते हों कि मुल्क बहुत कामुक हो गया है, तो फिजूल ब्रह्मचर्य की शिक्षा दे देकर कुछ न होगा । हम एक छोटा-छोटा यंत्र प्रत्येक शरीर में बिठाए देते हैं। बच्चा पैदा होगा, अस्पताल में ही हम उसको, उसको कभी पता भी नहीं चलेगा...।
आप जानकर हैरान होंगे कि आपकी खोपड़ी के भीतर संवेदनशीलता नहीं है। हालांकि सब कुछ अनुभव आपको खोपड़ी से होता है, लेकिन संवेदनशीलता नहीं है। आपकी खोपड़ी फाड़ी जए और उसमें एक छोटा पत्थर रख दिया जाए भीतर और खोपड़ी बंद कर दी जाए, आपको बिलकुल पता नहीं चलेगा कि पत्थर भीतर है। भीतर कोई संवेदनशीलता नहीं है। पत्थर जिंदगीभर रखा रहेगा, आपको कभी पता नहीं चलेगा।
पहले महायुद्ध में यह पता चला। कुछ लोगों को गोलियां लगीं सिर में, और किसी भूल-चूक के कारण वे गोलियां नहीं निकाली जा सकीं, और उनके घाव भर गए और वे ठीक हो गए। दस साल बाद, किसी और कारण से सैनिक के सिर का आपरेशन किया गया और गोली की खोल भीतर मिली। और उसको पता ही नहीं था दस साल तक । तब पहली दफा पता चला कि भीतर कोई संवेदनशीलता नहीं है।
तो देलगाडो कहता है, हम हर बच्चे को, उसे कभी पता ही नहीं चलेगा, एक छोटा-सा यंत्र उसके सिर में लगा देंगे, अंदर रख देंगे एक रेडियो रिसीवर । सब बच्चों के सिर में वह होगा। फिर आप दिल्ली से रिले करें और सारा मुल्क वैसा व्यवहार करेगा।
तो किसी को कहने की जरूरत नहीं है कि ब्रह्मचर्य साधो । सिर्फ वहां से, दिल्ली से, ठीक सूचना देने की जरूरत है कि सब ब्रह्मचारी हो जाओ। वह आपके भीतर का जो यंत्र है, आपको तत्काल ब्रह्मचर्य की खबर देगा। आप अचानक पाएंगे कि मन में बड़ी साधुता उठ रही है। कोई रस नहीं रहा !
देलगाडो का प्रयोग मूल्यवान है, लेकिन खतरनाक भी है। क्योंकि आश्चर्य नहीं होगा कि कुछ दस बीस-पच्चीस वर्षों के बाद सरकारें इसका उपयोग करना शुरू कर दें। क्योंकि यह तो बड़ा कीमत कम है। अगर पूरे मुल्क को युद्ध पर भेजना हो, तो भेजा जा सकता है। अगर हिंदुओं को भड़काना हो कि सारे मुसलमानों को खतम कर दो हिंदुस्तान में, तो एक दिन में खतम करवाया जा सकता है। कोई ज्यादा उपद्रव की जरूरत नहीं है। सिर्फ उनके भीतर बैठा हुआ यंत्र, उसको खबर होनी चाहिए।
देलगाडो ने स्पेन में बड़े प्रयोग किए। उसने एक सांड के सिर में यंत्र लगा रखा है। भयंकर सांड है। लाखों लोग देखने इकट्ठे हुए थे। देलगाडो अपने हाथ में घड़ी के बराबर यंत्र लगाए हुए है, जो सांड के मस्तिष्क से जुड़ा है वायरलेस से, रेडियो से ।
सांड को भड़काया उसने। लाल झंडी दिखाई। सांड भागा | देलगाडो की तरफ। लाखों लोग उत्सुक होकर देख रहे हैं कि खतरा है; सांड बिलकुल पास आ गया है। सिर्फ एक फीट दूर उसके सींग रह गए हैं। एक सेकेंड और कि वह देलगाडो में सींग डाल देगा, और देलगाडो खतम हो जाएगा। तब तक वह देखता रहा।
तब लोगों ने देखा, उसने घड़ी पर हाथ रखकर कोई चीज दबाई । सांड वहीं के वहीं खड़ा हो गया। सिर्फ एक फीट दूर । एकदम निर्जीव हो गया! देलगाडो दूर गया पचास फीट, फिर उसने बटन दबाई, झंडी दिखाई। सांड भागा। ऐसा उसने बीस दफे करके दिखाया । एक सेकेंड पहले वह घड़ी दबाएगा, सांड वहीं के वहीं खड़ा हो गया, जैसे पत्थर हो गया ।
यह सांड जरूर मन में अपना तर्क सोच रहा होगा, अगर सोच सकता होगा। यह जरूर कुछ सोच रहा होगा कि किस कारण से मैं रुक रहा हूं। सोच रहा होगा, दया खा रहा हूं, कि छोड़ो भी, जाने भी दो। ऐसा कुछ आदमी मार देने जैसा नहीं है। मगर यह कुछ भी नहीं है मामला। सिर्फ उसके भीतर इलेक्ट्रोड है। और वह इलेक्ट्रोड उसके क्रोध के यंत्र को दबा देता है, तो उसका जो रोष है, वह बैठ जाता है।
सांख्य की यह दृष्टि बड़ी प्राचीन है कि आपके भीतर आप जो हैं, वह सिर्फ साक्षी मात्र हैं। सब कर्तृत्व प्रकृति का है। पुरुष का कोई कर्तृत्व नहीं है। इसलिए जो भी हो रहा है, आपके गुणों और शरीर से हो रहा है। और अगर आप इस सत्य को जान जाएं, तो परम सिद्धि आपकी है।
अब हम सूत्र को लें।
जिस काल में द्रष्टा तीनों गुणों के सिवाय अन्य किसी को कर्ता नहीं देखता है...।
एक-एक शब्द को ठीक से समझ लें।
जिस काल में द्रष्टा तीनों गुणों के सिवाय अन्य किसी को कर्ता नहीं देखता है अर्थात गुण ही गुणों में बर्तते हैं, ऐसा देखता है और तीनों गुणों से अति परे सच्चिदानंदघनस्वरूप मुझ परमात्मा को तत्व से जानता है, उस काल में वह पुरुष मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है। तथा यह पुरुष इन स्थूल शरीर की उत्पत्ति के कारण रूप तीनों
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