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* गीता दर्शन भाग-7 *
नहीं था। क्योंकि जब आप कुछ कर ही न रहे हों, तो आपकी कोई अगर आलस्य को कोई साधना बना ले, तो शून्य की अनुभूति मांग नहीं रह जाती। और जब आप कुछ कर ही न रहे हों, तो फल बड़ी सहज हो जाती है। का कोई सवाल नहीं है। जब आप कुछ कर ही न रहे हों, तो जो भी उन दिनों में न मैं ईश्वर को मानता था, न आत्मा को। न मानने मिल जाए...।
का कारण कुल इतना था कि इन्हें मानने से फिर कुछ करना पड़ेगा। तो कभी-कभी कोई मित्र दया करके कमरे को साफ कर जाता, | आलसी के लिए अनीश्वरवाद संगत है। क्योंकि अगर ईश्वर है, तो मैं बड़ा अनुगृहीत होता था। मेरे अध्यक्ष विभाग के, परीक्षा के | तो काम शुरू हो गया। फिर कुछ करना पड़ेगा। अगर आत्मा है, समय सुबह स्वयं उठकर सात बजे मेरे दरवाजे पर गाड़ी लेकर खड़े | तो कुछ करना पड़ेगा। हो जाते थे कि मुझे आठ-दस दिन जब तक परीक्षा चले, मुझे हाल लेकिन कुछ न करते हुए, बिना ईश्वर और आत्मा को मानते में वे छोड़ दें, क्योंकि मैं सोया न रह जाऊं।
हुए, उस चुपचाप पड़े रहने में ही उस सब की झलक मिलनी शुरू सबकी दया और करुणा अनायास मिलती थी। क्योंकि सभी को | | हो गई, जिसको हम आत्मा कहें, ईश्वर कहें। और मैंने तब तक खयाल था कि जिस बात को भी करने से बचा जा सके, मैं बचूंगा। तमस को नहीं छोड़ा, जब तक तमस ने मुझे नहीं छोड़ दिया। तब बड़ी आश्चर्य की घटनाएं घटती थीं। वह इसलिए कह रहा हूं कि | तक मैंने तय किया था कि चलता रहूंगा ऐसा ही, बिना कुछ किए। आपको खयाल आ सके कि जिंदगी बहुत रहस्यपूर्ण है। मेरी अपनी समझ यह है कि अगर आप तमस को ठीक से जी
प्रोफेसर्स परीक्षा के पहले मझे आकर कह जाते कि यह प्रश्न लें. तो उसके बाद रजोगण अपने आप पैदा हो जाएगा। क्योंकि वह जरूर देख लेना। मैं कभी किसी से पूछने नहीं गया। उनके बताने दूसरा गुण है, जो आपकी दूसरी मंजिल में छिपा हुआ है। पहली पर भी उनको भरोसा नहीं था कि मैं देखूगा। वे मेरी तरफ ऐसे देखते | | मंजिल पूरी हो गई; आप सीढ़ियां पार कर आए, रजोगुण शुरू हो कि समझ में आया? इसको जरूर ही देख लेना। इसका आना जाएगा। आपमें सक्रियता का उदय होगा। पक्का है। जाते-जाते वे मुझको कह जाते, यह पेपर मैंने ही निकाला | लेकिन यह सक्रियता बहुत अनूठी होगी। यह सक्रियता है; इसे बिलकल देख ही लेना। इसमें कोई शक-सुबहा ही नहीं है, राजनीतिज्ञ की विक्षिप्तता नहीं होगी। अगर आलस्य को आपने यह आएगा ही। फिर भी उन्हें मैं कभी भरोसा नहीं दिला सका कि साधना बनाया हो और आलस्य आपका शून्यता में जाने का द्वार बना उनको भरोसा आ जाए कि मैं देखूगा।
हो, तो यह सक्रियता वासना की सक्रियता नहीं हो सकती, करुणा मैं यह कह रहा हूं कि अगर आप जगत से छीनने-झपटने जाएं. की ही हो सकती है। यह सक्रियता अब बांटने का एक क्रम होगी। तो हर जगह प्रतिरोध है। और अगर आप कुछ न करने की हालत तो उस सक्रियता को भी मैंने पूरी तरह जी लिया। बीच में कुछ में हों, तो सब द्वार आपको देने को खुल जाते हैं।
| बाधा डालना मेरी वृत्ति नहीं है। जो भी हो रहा हो, उसे होने देना। उन दिनों बिस्तर पर पड़े रहना, ऊपर सीलिंग में देखते रहना, | | और ऐसे अगर कोई होने दे, तो बहुत जल्दी गुणातीत हो जाएगा। वैकेंट, खाली। बहुत बाद में मुझे पता चला कि मेहर बाबा की क्योंकि तब स्वयं करने वाला नहीं रह जाता; गुण ही करने वाले रह साधना वही थी। मझे तो यह अनायास हआ। क्योंकि बिस्तर पर जाते हैं। वह आलस्य का गण था. जिसने अपने को परा कर लिया। पड़े-पड़े करना भी क्या? अगर नींद जा चुकी हो, तो पड़े रहना, फिर रजोगुण था। तो मैं दौड़ता रहा मुल्क में। जितनी यात्रा मैंने सीलिंग को देखते रहना। अगर आप चुपचाप बिना पलक दस-पंद्रह साल में की, दो-तीन जीवन में भी एक आदमी नहीं कर झपाए...और पलक नहीं झपाना, यह कोई साधना नहीं थी। वह सकता। जितना उन दस-पंद्रह सालों में बोला, उतने के लिए भी जैसे कर्म का हिस्सा है, क्यों झपाना! पड़े रहना। वह भी जैसे दस-पंद्रह जीवन चाहिए। सुबह से लेकर रात तक चल ही रहा था, आलस्य का हिस्सा है कि पलक भी क्यों झपाना! पड़े रहना। बोल ही रहा था, सफर ही कर रहा था। रोकने का कृत्य नहीं था। जहां तक बने कुछ न करना। जरूरत, गैर-जरूरत विवाद और उपद्रव भी खड़े कर रहा था।
अगर आप अपने मकान की सीलिंग को ही देखते हुए पड़े रहें| | क्योंकि जितने वे विवाद खड़े हो जाएं, उतना मेरे रजोगुण को घंटे, दो घंटे; आप पाएंगे, चित्त इतना आकाश जैसा कोरा हो निकल जाने की सुविधा थी। तो गांधी की आलोचना हाथ में ले ली, जाता है, शून्य हो जाता है।
या समाजवाद की आलोचना हाथ में ले ली। उनसे मेरा कोई संबंध
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