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गीता दर्शन भाग-7*
है, हम उसकी ही खोज कर रहे हैं।
आचार्य थे। और जैसा कि दार्शनिक अक्सर झक्की और एक्सेंट्रिक मनोविज्ञान कहता है, मोक्ष की खोज एक विराट गर्भ की खोज होते हैं; वे भी थे। और उनका जो झक्कीपन था, वह यह था कि वे है। और जब तक यह सारा अस्तित्व हमारा गर्भ न बन जाएगा, तब स्त्री को नहीं देखते थे। दुर्भाग्य से, मैं और एक युवती, दो ही उनके तक यह खोज जारी रहेगी।
विद्यार्थी थे उनके विषय में। तो उनको आंख बंद करके ही पढ़ाना यह बात बड़ी कीमती है, बहुत अर्थपूर्ण है। लेकिन इस संबंध | | पड़ता था। मेरे लिए यह सौभाग्य हो गया, क्योंकि वे पढ़ाते थे और में पहली बात समझ लेनी जरूरी है कि बच्चा नौ महीने अपने मां | | मैं सोता था। वे आंख खोल नहीं सकते थे, क्योंकि युवती थी। के गर्भ में ठीक तमस में पड़ा है। वहां न तो राजसी होने का सवाल | | लेकिन वे मुझ पर बहुत प्रसन्न थे, क्योंकि वे सोचते थे कि मेरा है, न सात्विक होने का सवाल है, गहन तम में पड़ा है, गहन | भी शायद यही सिद्धांत है, युवती को मैं भी नहीं देखता। और आलस्य है। बस सोया है, चौबीस घंटे सो रहा है। नौ महीने की यूनिवर्सिटी में कम से कम उन जैसा एक आदमी और भी है, जो लंबी नींद है।
स्त्रियों की तरफ आंख बंद रखता है। इससे वे बड़े प्रसन्न थे। वे कई फिर जैसे ही बच्चा पैदा होता है, तो फिर बाईस घंटे सोएगा, | बार मुझे कहे भी; जब कभी अकेले में मिल जाते, तो वे मुझे कहते फिर बीस घंटे, फिर अठारह घंटे; धीरे-धीरे जागेगा। वर्षों लग कि तुम अकेले हो, जो मुझे समझ सकते हो। । । जाएंगे, तब वह आकर आठ घंटे की नींद पर ठहरेगा। और जन्मों | लेकिन एक दिन सब गड़बड़ हो गया। लग जाएंगे, जब नींद बिलकुल शून्य हो जाएगी, और वह परिपूर्ण | दूसरी उनकी आदत थी कि एक घंटे का नियम वे नहीं मानते थे। जागरूक हो जाएगा कि निद्रा में भी जागता रहे। जिसको कृष्ण इसलिए उनको अंतिम पीरियड ही यूनिवर्सिटी देती.थी लेने के कहते हैं, जब सभी सोते हैं, तब भी योगी जागता है। इसके लिए | लिए। क्योंकि चालीस मिनट के बाद...वे कहते थे, शुरू करना जन्मों की यात्रा होगी।
मेरे बस में है, अंत करना मेरे बस में नहीं है। तो साठ मिनट में पूरा तमस आधार है और सत्व शिखर है। इस भवन का जिसे हम हो, अस्सी मिनट में पूरा हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। तो घंटा जीवन कहें, तमस बुनियाद है, रजोगुण बीच का भवन है और बजे, उससे मैं बंद नहीं करूंगा; जब मेरी बात पूरी हो जाए, तभी सत्वगुण मंदिर का शिखर है।
| बंद करूंगा। तो करीब अस्सी मिनट, नब्बे मिनट बोलते थे, मैं यह जीवन की व्यवस्था है मेरी दृष्टि में। इसलिए मैंने जीवन के सोता था। और युवती को कह रखा था कि जब घंटा पूरा होने लगे, पहले खंड को तमस की ही साधना बनाया। जीवन के मेरे प्राथमिक तो मुझे इशारा करे। वह कृपा करके इतनी व्यवस्था कर देती थी कि वर्ष ठीक लाओत्से की रसानुभूति में ही बीते। इसलिए लाओत्से से इशारा कर देती, मैं उठ जाता। मेरा लगाव बुनियादी है, आधारभूत है। सब भांति मैं आलस्य में | | एक दिन उसे बीच में जाना पड़ा; कोई बुलावा आ गया, कुछ था और आलस्य ही साधना थी। जहां तक बने कुछ न करना। कारण आ गया, वह बीच से चली गई। मैं सोया रहा, वे बोलते करना मजबूरी ही हो, तो उतना ही करना, जितना अपरिहार्य हो रहे। घंटा पूरा हो गया, उन्होंने आंख खोली, मैं सोया था। उन्होंने जाए। अकारण हाथ भी न हिलाना, पैर भी न चलाना। | मुझे हिलाया और जगाया। बोले कि नींद लग गई? मैंने कहा, अब ___मेरे घर में ही ऐसी हालत हो गई थी कि मैं बैठा हूं और मेरी मां आपको पता ही चल गया, तो मैं कह दूं। मैं रोज ही सो रहा हूं। मेरे सामने ही बैठकर कहती, कोई दिखाई नहीं पड़ता, किसी को मुझे स्त्रियों से कोई ऐतराज नहीं है। और यह बड़ा सुखद है, डेढ़ सब्जी लेने बाजार भेजना है! मैं सुन रहा हूं, मैं सामने ही बैठा हूं। घंटे आप बोलते हैं, मैं सो लेता हूं। और मैं जानता था, घर में आग भी लग जाती, तो भी वह यही कहती, सोना मैंने करीब-करीब ध्यान बना रखा था। जितना ज्यादा सो यहां कोई दिखाई नहीं पड़ता; घर में आग लग गई, कौन बुझाए! सकू, उतना ज्यादा सोता था।
पर चुपचाप अपनी निष्क्रियता को देखना, सिर्फ उसके प्रति | एक बड़े मजे की बात है कि अगर आप जरूरत से ज्यादा सोएं, साक्षी और ध्यान से भरे रहना। कुछ घटनाओं से आपको कहूं, तो तो सोने में जागरण निर्मित होने लगता है। अगर आप जरूरत से खयाल में आ जाए।
कम सोएं, तो नींद एक मूर्छा होगी। अगर आप जरूरत से ज्यादा मेरे विश्वविद्यालय में आखिरी वर्ष में एक दर्शनशास्त्र के सोएं, तो सो तो नहीं सकते। शरीर की जरूरत पूरी हो जाती है।
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